दिल्ली हाईकोर्ट ने पतंजलि आयुर्वेद को डाबर इंडिया द्वारा अपमानजनक विज्ञापनों के संबंध में लगाए गए आरोपों का जवाब देने के लिए कहा है। कानूनी कार्रवाई पतंजलि द्वारा अपने च्यवनप्राश उत्पाद के चित्रण से संबंधित है, जिसके बारे में डाबर का दावा है कि इससे उसके खुद के बाजार में अग्रणी च्यवनप्राश की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा है।
न्यायमूर्ति मिनी पुष्करणा ने 24 दिसंबर को समन जारी किया, जिसमें पतंजलि आयुर्वेद और पतंजलि फूड्स लिमिटेड को तीस दिनों के भीतर अपने लिखित बयान दाखिल करने को कहा गया। यह विवाद विज्ञापनों की एक श्रृंखला पर केंद्रित है, जिसमें पतंजलि ने अपने विशेष च्यवनप्राश को प्राचीन आयुर्वेदिक परंपराओं के आधार पर “मूल” और “सर्वश्रेष्ठ” बताया, कथित तौर पर अन्य उत्पादों को यह कहकर अपमानित किया कि उनमें प्रामाणिकता का अभाव है।
60% से अधिक की महत्वपूर्ण बाजार हिस्सेदारी रखने वाली डाबर का आरोप है कि पतंजलि के विज्ञापन न केवल उनके उत्पाद को बदनाम करते हैं, बल्कि आयुर्वेदिक तैयारी विधियों के बारे में उपभोक्ताओं को गुमराह भी करते हैं। विज्ञापनों में दावा किया गया है कि पतंजलि का उत्पाद “चरक, सुश्रुत, धन्वंतरि, च्यवन ऋषि परंपरा” के अनुसार बनाया गया है, जिसे पतंजलि श्रेष्ठ मानता है।
अदालत ने डाबर द्वारा अंतरिम राहत के लिए दायर याचिका पर भी विचार किया, जिसमें अगली सुनवाई 30 जनवरी तय की गई। इस याचिका में विवादित विज्ञापनों के प्रसारण को रोकने के लिए एक स्थायी निषेधाज्ञा और डाबर की साख और उसके च्यवनप्राश उत्पाद की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने वाली किसी भी अन्य कार्रवाई को रोकने का अनुरोध शामिल है।