दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर की उस याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया, जिसमें उन्होंने उपराज्यपाल वी.के. सक्सेना द्वारा दायर मानहानि मामले में अपनी सजा को चुनौती दी है।
न्यायमूर्ति शलिंदर कौर ने दोनों पक्षों को 18 जुलाई तक लिखित दलीलें दाखिल करने की अनुमति दी है।
यह मामला 23 साल पुराना है, जब सक्सेना गुजरात में एक एनजीओ (नेशनल काउंसिल ऑफ सिविल लिबर्टीज) के अध्यक्ष थे। उन्होंने 24 नवंबर 2000 को मेधा पाटकर द्वारा जारी एक प्रेस विज्ञप्ति को अपनी मानहानि बताते हुए मामला दर्ज कराया था। पाटकर ने आरोप लगाया था कि सक्सेना गुजरात की जनता और संसाधनों को विदेशी हितों के हाथों गिरवी रख रहे हैं।

1 जुलाई 2024 को मजिस्ट्रेट कोर्ट ने पाटकर को आईपीसी की धारा 500 (मानहानि) के तहत दोषी पाते हुए पांच महीने की सादी कैद और ₹10 लाख का जुर्माना लगाया था। कोर्ट ने कहा था कि पाटकर के बयान न केवल स्पष्ट रूप से मानहानिजनक थे, बल्कि उन्हें सक्सेना की छवि को धूमिल करने के उद्देश्य से तैयार किया गया था।
पाटकर ने इस फैसले को सत्र न्यायालय में चुनौती दी, लेकिन 2 अप्रैल को कोर्ट ने उनकी सजा को बरकरार रखा और कहा कि उनकी सजा में कोई त्रुटि नहीं है। हालांकि, 8 अप्रैल को उन्हें “अच्छे आचरण की प्रोबेशन” के तहत ₹25,000 के प्रोबेशन बॉन्ड पर जेल भेजे बिना रिहा कर दिया गया और ₹1 लाख जुर्माना जमा करने की शर्त लगाई गई।
इसके बाद पाटकर ने हाईकोर्ट का रुख किया, जिसने उन्हें ₹25,000 के व्यक्तिगत मुचलके पर अंतरिम जमानत दी और उनकी सजा पर रोक लगा दी।
पाटकर की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता संजय पारिख ने दलील दी, जबकि उपराज्यपाल सक्सेना की ओर से अधिवक्ता गजिंदर कुमार ने पैरवी की।
अब हाईकोर्ट 18 जुलाई के बाद इस मामले में अंतिम फैसला सुनाएगा कि पाटकर की दोषसिद्धि बरकरार रहेगी या रद्द की जाएगी।