दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को जम्मू-कश्मीर के जेल में बंद सांसद इंजीनियर राशिद की उस याचिका पर आदेश सुरक्षित रख लिया, जिसमें उन्होंने संसद में उपस्थिति दर्ज कराने के लिए लगभग ₹4 लाख जमा कराने के निर्देश को चुनौती दी है।
न्यायमूर्ति विवेक चौधरी और न्यायमूर्ति अनुप जयराम भंभानी की पीठ ने इस मामले में राशिद के वकील, दिल्ली पुलिस और राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) के तर्क सुने। अदालत ने सवाल उठाया कि जब राशिद न्यायिक हिरासत में हैं तो उन पर इतना खर्च क्यों डाला जाए।
अदालत की टिप्पणी
न्यायमूर्ति भंभानी ने कहा, “जेल उनके साथ ही चल रही है। वह हिरासत में हैं। जब जेल उनके साथ यात्रा कर रही है तो खर्च भी जेल को ही वहन करना चाहिए।” यह टिप्पणी इस तर्क के जवाब में की गई कि खर्च राशिद से वसूलना उचित है।

खर्च की गणना पर विवाद
पहले हाईकोर्ट ने दिल्ली पुलिस से लगभग ₹4 लाख के हिसाब का ब्योरा मांगा था। पुलिस ने जो ब्रेकअप दिया, उसमें तैनात अधिकारियों का वेतन भी शामिल था। राशिद के वकील ने आपत्ति जताई कि दिल्ली जेल नियमावली के तहत वेतन को खर्च में नहीं जोड़ा जा सकता।
उन्होंने कहा कि राशिद उचित खर्च, जैसे पुलिसकर्मियों के भोजन आदि की राशि देने को तैयार हैं, लेकिन अधिकारियों का वेतन वहन करना उनके लिए संभव नहीं है।
पूर्व आदेश और आर्थिक बोझ
25 मार्च को एक समन्वय पीठ ने आदेश दिया था कि राशिद संसद के मानसून सत्र में शामिल होने के लिए करीब ₹4 लाख जमा करें। रिकॉर्ड में यह भी दर्ज है कि इससे पहले भी राशिद संसद में उपस्थिति के लिए ₹17 लाख से अधिक खर्च वहन कर चुके हैं।
बारामूला से निर्दलीय सांसद इंजीनियर राशिद 2019 से दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद हैं। उन्हें 2017 के आतंकी फंडिंग मामले में एनआईए ने गिरफ्तार किया था। एजेंसी का आरोप है कि राशिद ने अलगाववादी नेताओं और आतंकी संगठनों को आर्थिक मदद दी।
अक्टूबर 2019 में एनआईए ने उनके खिलाफ आरोपपत्र दाखिल किया और मार्च 2022 में विशेष अदालत ने उनके खिलाफ आईपीसी की धारा 120बी (आपराधिक साजिश), 121 (सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ना), 124ए (राजद्रोह) और यूएपीए की धाराओं के तहत आरोप तय किए।
अब हाईकोर्ट यह तय करेगा कि संसद में सांसद की उपस्थिति सुनिश्चित कराने का खर्च राशिद खुद वहन करेंगे या जेल प्रशासन को इसे उठाना होगा।