दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को 2020 के दिल्ली दंगा मामले में यूएपीए (UAPA) के तहत आरोपी को पांच वर्षों से बिना ट्रायल के जेल में रखने पर सवाल उठाए। अदालत ने यह टिप्पणी उस समय की जब वह आरोपी तसलीम अहमद की जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी। अहमद को फरवरी 2020 में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुई सांप्रदायिक हिंसा की कथित बड़ी साजिश के मामले में गिरफ्तार किया गया था।
न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद और न्यायमूर्ति हरीश वैद्यनाथन शंकर की खंडपीठ ने दिल्ली पुलिस से पूछा, “पांच साल बीत चुके हैं। आरोप तय करने पर भी अब तक बहस पूरी नहीं हुई है। ऐसे मामलों में जहां 700 गवाह हैं — किसी व्यक्ति को कितने समय तक जेल में रखा जा सकता है?”
अहमद की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता महमूद प्राचा ने मामले के मेरिट पर बहस न करते हुए केवल समानता और ट्रायल में देरी के आधार पर जमानत की मांग की। उन्होंने सह-आरोपियों देवांगना कालिता, आसिफ इकबाल तनहा और नताशा नरवाल के 2021 में समान आधारों पर हुई रिहाई का हवाला दिया।

प्राचा ने बताया कि अहमद को 24 जून 2020 को गिरफ्तार किया गया था और वह पिछले पांच वर्षों से जेल में हैं, जबकि कार्यवाही में देरी के लिए वह जिम्मेदार नहीं हैं। उन्होंने कहा, “उसने कोई देरी नहीं की है।” प्राचा ने इसे मौलिक अधिकारों का उल्लंघन बताया।
वहीं विशेष लोक अभियोजक अमित प्रसाद ने इसका विरोध करते हुए कहा कि देरी के लिए अभियोजन पक्ष जिम्मेदार नहीं है और उन्होंने कई उदाहरणों का हवाला दिया जहां आरोपियों द्वारा स्थगन की मांग की गई थी।
मामले की अगली सुनवाई 9 जुलाई को होनी है।
फरवरी 2020 की हिंसा में कम से कम 53 लोगों की मौत हुई थी और 700 से अधिक लोग घायल हुए थे। यह मामला अहमद के खिलाफ दर्ज उस व्यापक जांच का हिस्सा है जो कथित साजिश को लेकर की जा रही है। इस जांच की धीमी गति और यूएपीए के तहत लंबे समय तक ट्रायल से पहले की हिरासत को लेकर पहले भी आलोचना हो चुकी है।