दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) के उस 2016 के आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें दिल्ली विश्वविद्यालय (DU) को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की स्नातक डिग्री से संबंधित अभिलेखों का निरीक्षण कराने का निर्देश दिया गया था।
न्यायमूर्ति सचिन दत्ता ने छह याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए खुले अदालत में कहा कि “CIC का विवादित आदेश रद्द किया जाता है।” विस्तृत आदेश अभी आना बाकी है। अदालत ने यह फैसला लगभग छह महीने बाद सुनाया, जब 27 फरवरी को सुनवाई पूरी कर इसे सुरक्षित रख लिया गया था।
दिसंबर 2016 में CIC ने दिल्ली विश्वविद्यालय को निर्देश दिया था कि वह 1978 में बीए प्रोग्राम पास करने वाले छात्रों के अभिलेखों का निरीक्षण करने की अनुमति दे। यही वह साल था जब मोदी ने दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री प्राप्त की थी। यह निर्देश कई आरटीआई आवेदनों के जवाब में दिया गया था, जिन्हें नीरज कुमार, मोहम्मद इरशाद, आर. के. जैन और अन्य ने दाखिल किया था।

दिल्ली विश्वविद्यालय ने 2017 में इस आदेश को चुनौती दी, यह दलील देते हुए कि डिग्री संबंधी रिकॉर्ड “फिड्यूशियरी क्षमता” (विश्वासगत अभिरक्षा) में रखे जाते हैं और यह व्यक्तिगत जानकारी के दायरे में आते हैं। विश्वविद्यालय ने CIC के उस हिस्से पर भी आपत्ति जताई, जिसमें केंद्रीय जन सूचना अधिकारी (CPIO) के वेतन से ₹25,000 की वसूली का निर्देश दिया गया था, क्योंकि उन्होंने आरटीआई शुल्क न जमा होने के आधार पर एक आवेदन खारिज कर दिया था।
हाईकोर्ट में लंबित छह याचिकाओं में से चार दिल्ली विश्वविद्यालय ने अलग-अलग आरटीआई आवेदकों के खिलाफ दायर की थीं।
- पांचवीं याचिका केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) ने दायर की थी, जिसमें जनवरी 2017 के CIC आदेश को चुनौती दी गई थी। उस आदेश में रिकॉर्ड के निरीक्षण और प्रमाणित प्रतियां उपलब्ध कराने का निर्देश था — हालांकि एडमिट कार्ड और मार्कशीट के व्यक्तिगत विवरण को छोड़कर। यह जानकारी मोदी के स्कूली रिकॉर्ड से संबंधित थी।
- छठी याचिका दिल्ली के वकील मोहम्मद इरशाद ने दायर की थी, जिसमें उनकी आरटीआई अर्जी खारिज किए जाने को चुनौती दी गई थी। आवेदन को इस आधार पर ठुकराया गया था कि समय पर आरटीआई शुल्क जमा नहीं किया गया।
दिल्ली विश्वविद्यालय ने 2023 में गुजरात हाईकोर्ट के आदेश का हवाला दिया, जिसमें गुजरात विश्वविद्यालय को पीएम मोदी के 1983 के परास्नातक रिकॉर्ड खोजने का CIC का आदेश रद्द कर दिया गया था। DU का कहना था कि मांगी गई जानकारी आरटीआई कानून के तहत निजी सूचना के रूप में अपवाद के दायरे में आती है और इसे विश्वविद्यालय विश्वासगत अभिरक्षा में रखता है।