पतंजलि आयुर्वेद ने शुक्रवार को दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाते हुए उस एकल न्यायाधीश के आदेश को चुनौती दी, जिसमें डाबर च्यवनप्राश के खिलाफ भ्रामक और अपमानजनक विज्ञापन प्रसारित करने पर रोक लगाई गई थी। हालांकि, डिवीजन बेंच ने सुनवाई के दौरान तीखी टिप्पणियां करते हुए इसे “सामान्य अपमान” (generic disparagement) का मामला बताया और कंपनी को “लक्जरी मुकदमेबाजी” से बाज रहने की चेतावनी दी।
न्यायमूर्ति सी. हरि शंकर और ओम प्रकाश शुक्ला की पीठ ने कहा कि विज्ञापनों में इस्तेमाल की गई भाषा साफ तौर पर डाबर की ओर इशारा करती है। अदालत ने कहा, “आपने कहा- ‘क्यों चुनें साधारण च्यवनप्राश जो 40 जड़ी-बूटियों से बना है?’ जब आप 40 जड़ी-बूटियों वाली बात कहते हैं तो यह साफ संकेत है कि आप प्रतिवादी (डाबर) के च्यवनप्राश को साधारण बता रहे हैं और अपना उत्कृष्ट।”
पीठ ने कहा कि 3 जुलाई को पारित एकल न्यायाधीश का अंतरिम आदेश सही है और उसमें दखल देने का कोई कारण नहीं है। अदालत ने विज्ञापन की एक और पंक्ति का उल्लेख करते हुए कहा— “जिनको आयुर्वेद और वेदों का ज्ञान नहीं… वे असली च्यवनप्राश कैसे बना पाएंगे।” न्यायाधीशों के अनुसार, इस तरह की भाषा सभी अन्य निर्माताओं को अज्ञानी बताती है और यह संदेश देती है कि वे असली च्यवनप्राश बनाने में सक्षम नहीं हैं।

अदालत ने चेतावनी दी कि यदि यह अपील निरर्थक पाई गई तो पतंजलि पर लागत (cost) लगाई जाएगी। “अगर यह फिजूल अपील साबित हुई तो हम लागत लगाएंगे। हम ‘आलतु-फालतु’ अपीलें स्वीकार नहीं करेंगे। आपके पास बहुत पैसा है, इसीलिए आप हर मामले में अपील कर रहे हैं,” पीठ ने टिप्पणी की।
पतंजलि के वकील ने अदालत से समय मांगा ताकि वे अपने मुवक्किलों से परामर्श कर सकें। इसके बाद अदालत ने सुनवाई की अगली तारीख 23 सितंबर तय की।
इससे पहले, एकल न्यायाधीश ने पतंजलि को “क्यों चुनें साधारण च्यवनप्राश जो 40 जड़ी-बूटियों से बना है” जैसे वाक्यांश वाले प्रिंट विज्ञापनों पर रोक लगाने और इसके हिंदी संस्करण में संशोधन करने का निर्देश दिया था। न्यायाधीश ने यह भी उल्लेख किया था कि टीवी विज्ञापन स्वयं बाबा रामदेव ने सुनाया है, और उनके आयुर्वेदिक विशेषज्ञ होने की छवि के कारण यह संदेश और अधिक प्रभावी हो जाता है।
डाबर ने अपनी याचिका में कहा था कि पतंजलि का “पतंजलि स्पेशल च्यवनप्राश” अभियान सीधे डाबर को निशाना बना रहा है। विज्ञापन में डाबर च्यवनप्राश को “साधारण” बताया गया और अन्य निर्माताओं को आयुर्वेदिक ज्ञान से वंचित बताते हुए झूठे और भ्रामक दावे किए गए। याचिका में इसे झूठे, गुमराह करने वाले और अपमानजनक विज्ञापन करार दिया गया।
मामले में अंतरिम निषेधाज्ञा फिलहाल लागू रहेगी, जब तक अपील का निपटारा नहीं हो जाता।