दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र और भारतीय वायुसेना को आदेश दिया है कि उड़ान शाखा (Flying Branch) की 20 खाली पड़ी रिक्तियों में से एक पर महिला उम्मीदवार की नियुक्ति की जाए। अदालत ने कहा कि मौजूदा समय में पुरुष और महिला उम्मीदवारों के बीच भेदभाव नहीं किया जा सकता, खासकर भारतीय सशस्त्र बलों में।
यह आदेश 25 अगस्त को न्यायमूर्ति सी. हरि शंकर और न्यायमूर्ति ओम प्रकाश शुक्ला की खंडपीठ ने उस याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया, जिसमें एक महिला उम्मीदवार ने अपनी नियुक्ति की मांग की थी। याचिकाकर्ता महिलाओं की मेरिट सूची में सातवें स्थान पर थीं, जबकि दो आरक्षित रिक्तियों पर पहले ही महिलाओं की नियुक्ति हो चुकी थी।
संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) ने 17 मई 2023 को भारतीय वायुसेना की उड़ान शाखा के लिए 92 रिक्तियों का विज्ञापन जारी किया था। इनमें से 70 पुरुष उम्मीदवारों और 2 महिला उम्मीदवारों की नियुक्ति हुई, जबकि 20 रिक्तियां खाली रह गईं।

अदालत ने कहा, “विज्ञापन में यह कहीं नहीं कहा गया कि 90 रिक्तियां पुरुषों के लिए और 2 महिलाओं के लिए आरक्षित हैं। यदि ऐसा होता तो यह शर्त लैंगिक पक्षपातपूर्ण मानी जाती।”
न्यायालय ने टिप्पणी की, “हम अब उस दौर में नहीं हैं जब सशस्त्र बलों में प्रवेश को लेकर पुरुष और महिला उम्मीदवारों में भेदभाव किया जा सकता था। अब केवल ‘फिट टू फ्लाई’ प्रमाणपत्र ही आवश्यक है, जो याचिकाकर्ता के पास था।”
अदालत ने निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता की तत्काल नियुक्ति की जाए और उन्हें सभी सेवा लाभ, वरिष्ठता तथा अन्य सुविधाएं दी जाएं, जैसा कि चयनित 70 पुरुष और 2 महिला उम्मीदवारों को मिला है।
अदालत ने सर्वोच्च न्यायालय के कई निर्णयों का हवाला देते हुए कहा कि किसी भी विज्ञापन या अधिसूचना की व्याख्या लैंगिक पक्षपातपूर्ण तरीके से नहीं की जा सकती। न्यायालय ने कहा कि पुरुष और महिला के बीच का अंतर केवल “एक संयोगवश गुणसूत्रीय परिस्थिति” मात्र है, उसे अधिक महत्व देना अनुचित और कालबाह्य होगा।
