दिल्ली हाईकोर्ट ने एक अहम आदेश में कहा है कि यदि किसी नाबालिग लड़की की मेडिकल रिपोर्ट (MLC) में चोटों का उल्लेख नहीं है, तो भी उसकी स्पष्ट शिकायत को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। अदालत ने यह टिप्पणी एक मामले में आरोप तय करने के संदर्भ में की, जिसमें एक व्यक्ति और उसकी पत्नी पर नाबालिग लड़की के साथ मारपीट और गलत तरीके से बंधक बनाने के आरोप लगे हैं।
न्यायमूर्ति गिरीश कथपालिया ने 18 जुलाई को पारित आदेश में निचली अदालत को निर्देश दिया कि वह 2016 के इस मामले में मारपीट (IPC की धारा 323) और गलत तरीके से बंधक बनाने (IPC की धारा 342) के आरोपों पर दोबारा विचार करे। पीड़िता उस कंपनी में रिसेप्शनिस्ट के तौर पर काम करती थी, जहां आरोपी पति-पत्नी कार्यरत थे।
निचली अदालत ने आरोपी व्यक्ति के खिलाफ बलात्कार और अप्राकृतिक यौन संबंध के आरोप तय किए थे, लेकिन मारपीट और बंधक बनाने के आरोपों से पति-पत्नी को बरी कर दिया था। अदालत ने कहा था कि मेडिकल रिपोर्ट में कोई चोट नहीं पाई गई, इसलिए IPC की धारा 323 के तहत आरोप नहीं बनता।

हाईकोर्ट ने इस निर्णय को गलत बताया। “केवल इसलिए कि पीड़िता की मेडिकल रिपोर्ट में चोटें नहीं दिखतीं, यह नहीं कहा जा सकता कि उसे पीटा नहीं गया,” अदालत ने कहा।
पीड़िता ने मजिस्ट्रेट के समक्ष धारा 164 सीआरपीसी के तहत दिए गए बयान में कहा था कि उसे पेट में लात मारी गई और उसका सिर दीवार से टकराया गया, लेकिन मेडिकल रिपोर्ट में इसका उल्लेख नहीं था। निचली अदालत ने इसी आधार पर IPC की धारा 323 के तहत आरोप न लगाने का निर्णय लिया था।
वहीं, धारा 342 (ग़लत तरीके से बंधक बनाना) के तहत आरोप को भी खारिज कर दिया गया, यह कहते हुए कि एफआईआर में यह नहीं कहा गया कि लड़की के हाथ बांधे गए थे।
हाईकोर्ट ने इसे भी खारिज करते हुए कहा कि “ग़लत तरीके से बंधक बनाने के लिए जरूरी नहीं कि पीड़िता के हाथ-पैर बांधे जाएं। अगर किसी को एक कमरे में बंद कर दिया गया हो, तो भी यह अपराध की श्रेणी में आता है।” अदालत ने एफआईआर में पीड़िता के बयान “मुझे अपने घर बंद रखा” का हवाला देते हुए कहा कि यह स्पष्ट रूप से confinement (बंधक बनाए जाने) को दर्शाता है।
हाईकोर्ट के इस आदेश के बाद अब निचली अदालत को IPC की धारा 323 और 342 के तहत भी आरोप तय करने होंगे, जिससे मुकदमे में इन पहलुओं पर भी सुनवाई आगे बढ़ सकेगी।