दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को कॉमन लॉ एडमिशन टेस्ट (CLAT) पीजी के एक अभ्यर्थी को उस याचिका में अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया, जिसमें नेशनल लॉ यूनिवर्सिटीज (NLUs) के कंसोर्टियम द्वारा वसूले जा रहे ₹20,000 के अग्रिम काउंसलिंग शुल्क को “अत्यधिक” और भेदभावपूर्ण बताया गया था।
न्यायमूर्ति रजनीश कुमार गुप्ता ने इस याचिका पर सुनवाई करते हुए कंसोर्टियम ऑफ एनएलयूज़, बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI), विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC), शिक्षा मंत्रालय और अन्य प्रतिवादियों को नोटिस जारी कर 2 जुलाई तक जवाब मांगा है। हालांकि, न्यायालय ने याचिकाकर्ता को आगामी काउंसलिंग राउंड में शुल्क भुगतान से छूट देने से इनकार कर दिया।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ने दलील दी कि उनके मुवक्किल 20 जून को हुई दूसरी राउंड की काउंसलिंग में ₹20,000 की अनिवार्य जमा राशि के चलते हिस्सा नहीं ले सके, जबकि उन्होंने पहले राउंड में पहले ही ₹30,000 की वापसी योग्य राशि जमा की थी। वकील ने तर्क दिया, “यह देश की एकमात्र ऐसी परीक्षा है जो अभ्यर्थियों पर इतनी भारी वित्तीय बोझ डालती है। सैकड़ों छात्र आर्थिक वजहों से कई राउंड की काउंसलिंग में भाग नहीं ले पाते।”
याचिका में यह मांग की गई थी कि 4 जुलाई को निर्धारित तीसरे राउंड की काउंसलिंग में बिना ₹20,000 अतिरिक्त भुगतान के शामिल होने की अनुमति दी जाए। याचिकाकर्ता ने वर्तमान शुल्क प्रणाली को मनमाना, भेदभावपूर्ण और असंगत रूप से अधिक बताया, जिससे आर्थिक रूप से कमजोर छात्र काउंसलिंग के अवसरों से वंचित हो रहे हैं।
अब इस मामले की अगली सुनवाई 2 जुलाई को होगी।