केवल योग्यता नहीं, वास्तविक आमदनी मायने रखती है: दिल्ली हाईकोर्ट ने पत्नी और बच्ची को अंतरिम भरण-पोषण देने के फैमिली कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा

दिल्ली हाईकोर्ट की खंडपीठ, जिसमें न्यायमूर्ति नवीन चावला और न्यायमूर्ति रेनू भटनागर शामिल थे, ने एक पति द्वारा दायर उस अपील को खारिज कर दिया जिसमें फैमिली कोर्ट द्वारा उसकी पत्नी और नाबालिग बेटी को अंतरिम भरण-पोषण देने के आदेश को चुनौती दी गई थी। कोर्ट ने कहा कि केवल शैक्षणिक योग्यता और कमाने की क्षमता के आधार पर पत्नी को भरण-पोषण से वंचित नहीं किया जा सकता, जब तक यह प्रमाणित न हो कि वह वास्तव में आय अर्जित कर रही है।

पृष्ठभूमि:

विवाह दिसंबर 2019 में हुआ था और मार्च 2021 से पति-पत्नी अलग रह रहे हैं। एक नाबालिग बेटी है जो पत्नी की अभिरक्षा में है। पति ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13(1)(i) और 13(1)(ia) के तहत तलाक की याचिका दायर की थी, जिसमें पत्नी पर विवाह के बाद व्यभिचार के आरोप लगाए गए।

इस दौरान पत्नी ने धारा 24 के तहत अंतरिम भरण-पोषण की मांग करते हुए याचिका दाखिल की थी। फैमिली कोर्ट ने पत्नी को ₹10,000 प्रति माह (पूर्व में ₹30,000 की राशि) और बेटी को ₹15,000 प्रति माह अंतरिम भरण-पोषण देने का आदेश दिया था।

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अपीलकर्ता की दलीलें:

  • पत्नी कथित तौर पर एक फाइनेंस एग्जीक्यूटिव के रूप में काम कर रही थी और विभिन्न बीमा कंपनियों से जुड़ी थी, लेकिन उसने अपनी आय छिपाई।
  • उसने B.Tech और MBA की डिग्रियां प्राप्त की हैं, जिससे वह आत्मनिर्भर हो सकती है।
  • बैंक खातों और आईटीआर से आय के साक्ष्य छिपाने का आरोप लगाया गया।
  • पहले के फैसलों का हवाला देकर कहा गया कि जब पत्नी की आय पर्याप्त हो, तो भरण-पोषण नहीं दिया जाना चाहिए।
  • यह भी कहा गया कि वह पहले से अपनी मां को ₹35,000 प्रतिमाह भरण-पोषण दे रहा है, जिसे फैमिली कोर्ट अहमदाबाद ने आदेशित किया था।
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कोर्ट का विश्लेषण:

  • कोर्ट ने कहा कि पत्नी भले ही शिक्षित और योग्य हो, लेकिन यह साबित नहीं हुआ कि वह वर्तमान में कहीं कार्यरत है।
  • पुराने इनकम टैक्स रिटर्न्स से केवल यह पता चलता है कि पहले वह लगभग ₹3 लाख वार्षिक कमा रही थी।
  • यह दावा कि वह एक अकादमी में पढ़ा रही है, पहली बार अपील में किया गया और फैमिली कोर्ट के समक्ष कोई सबूत पेश नहीं किया गया था।
  • कोर्ट ने कहा:


    “कमाने की क्षमता और वास्तविक कमाई दो अलग-अलग बातें हैं… केवल योग्यता के आधार पर पत्नी को भरण-पोषण से वंचित नहीं किया जा सकता।”

  • कोर्ट ने माना कि फैमिली कोर्ट ने पत्नी की संभावित आमदनी ₹25,000–30,000 मासिक मानी, लेकिन पति की ₹1,74,354 मासिक आय को देखते हुए ₹10,000 पत्नी और ₹15,000 बेटी को देना उचित है।
  • यह राशि जीवन यापन की बढ़ती लागत, बच्चे की जरूरतों और सामाजिक स्तर को देखते हुए उचित है।
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पति की माँ को भरण-पोषण देने की बात पर कोर्ट ने कहा:

“पति के पिता को ₹35,000 पेंशन मिलती है और बहन स्वयं कमाती है, इसलिए माँ पिता पर अधिक निर्भर मानी जाएंगी।”

  • व्यक्तिगत ऋण या घर की किस्तों को भरण-पोषण में छूट का आधार मानने से भी कोर्ट ने इनकार किया।

निर्णय:

कोर्ट ने अपील खारिज करते हुए कहा कि फैमिली कोर्ट का आदेश उचित है और इसमें कोई त्रुटि नहीं है। सीआरपीसी की धारा 340 और इंटरोगेटरी से जुड़ी याचिकाओं पर विचार करना फैमिली कोर्ट का क्षेत्राधिकार है।

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“वर्तमान अपील और इससे जुड़ी सभी लंबित अर्जियां निराधार पाई जाती हैं और खारिज की जाती हैं।”

कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि इस आदेश की कोई भी टिप्पणी लंबित मामलों के निपटारे में पूर्वग्रह के रूप में न ली जाए।

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