दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि पति का महज विवाहेतर संबंध (Extramarital Affair) होना भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 306 के तहत आत्महत्या के लिए उकसाने का अपराध नहीं माना जा सकता। जस्टिस विवेक चौधरी और जस्टिस मनोज जैन की खंडपीठ ने राज्य सरकार द्वारा दायर अपील को खारिज करते हुए कहा कि रिकॉर्ड पर ऐसा कोई सबूत नहीं है जो यह दर्शाता हो कि आरोपी ने मृतका को आत्महत्या के लिए सीधे तौर पर उकसाया था।
मामले की पृष्ठभूमि
राज्य सरकार ने ट्रायल कोर्ट के 21 अप्रैल, 2016 के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी, जिसके तहत आरोपी हामिद को आईपीसी की धारा 306 के आरोपों से बरी कर दिया गया था।
यह मामला 30 अक्टूबर, 2010 का है, जब आरोपी की पत्नी श्रीमती बेबी उर्फ नाजरीन को ‘फांसी लगाने के प्रयास’ के बाद गंभीर हालत में एम्स (AIIMS) में भर्ती कराया गया था। लगभग एक महीने बाद, 30 नवंबर, 2010 को उनकी मृत्यु हो गई थी।
जांच के दौरान, मृतका की मां, श्रीमती जैतून (PW2) ने एसडीएम के समक्ष बयान दिया कि उनकी बेटी की शादी 11 अप्रैल, 2004 को आरोपी से हुई थी और उनके दो बच्चे थे। उन्होंने आरोप लगाया कि शादी के अंतिम दो वर्षों में समस्याएं शुरू हुईं क्योंकि आरोपी उसी इलाके में रहने वाली एक अन्य महिला से शादी करना चाहता था। यह भी आरोप लगाया गया कि आरोपी अपनी पत्नी को पीटता था, धमकाता था और उसे वैवाहिक दायित्वों से मुक्त करने के लिए 2 से 4 लाख रुपये की पेशकश करता था ताकि वह दूसरी शादी कर सके।
परिजनों के बयानों के आधार पर एफआईआर की सिफारिश की गई, लेकिन पुलिस ने केवल हामिद के खिलाफ धारा 304-B/306/34 आईपीसी के तहत चार्जशीट दाखिल की। ट्रायल कोर्ट ने दहेज की मांग के सबूत न होने के कारण धारा 304-B (दहेज मृत्यु) को हटा दिया और केवल धारा 306 के तहत आरोप तय किए। बाद में, सबूतों के अभाव में ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को बरी कर दिया था।
दलीले
राज्य की ओर से पेश अतिरिक्त लोक अभियोजक (APP) ने तर्क दिया कि ट्रायल कोर्ट ने उन “स्पष्ट सबूतों” की अनदेखी की है जो आरोपी के विवाहेतर संबंधों की ओर इशारा करते हैं, जो क्रूरता की श्रेणी में आता है। अभियोजन पक्ष का कहना था कि मृतका के माता-पिता और भाई की गवाही को खारिज नहीं किया जाना चाहिए था।
इसके विपरीत, बचाव पक्ष के वकील ने तर्क दिया कि आरोपी की ओर से कोई क्रूरता नहीं की गई थी। सीआरपीसी की धारा 313 के तहत अपने बयान में, आरोपी ने निर्दोष होने का दावा किया और कहा कि जून 2010 में गर्भपात (Abortion) कराने के बाद उसकी पत्नी डिप्रेशन में थी, जिससे उसके व्यवहार में बदलाव आ गया था।
कोर्ट का विश्लेषण और टिप्पणियां
हाईकोर्ट ने इस बात का परीक्षण किया कि क्या कथित विवाहेतर संबंध आत्महत्या के लिए उकसाने या दुष्प्रेरण (Abetment) के दायरे में आता है। पीठ ने जोर दिया कि धारा 107 आईपीसी के तहत, उकसाने के लिए साजिश या जानबूझकर सहायता करना आवश्यक है।
कोर्ट ने कहा: “हम इस बात पर जोर देते हैं कि आत्महत्या के लिए उकसाने के अपराध को आकर्षित करने के लिए, अभियोजन पक्ष के लिए यह साबित करना अनिवार्य है कि उकसाने का कोई प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष कृत्य हुआ हो, जो आत्महत्या के बेहद करीब हो। इस तरह का उकसावा स्पष्ट मानसिक इरादे (mens rea) को दर्शाना चाहिए।”
विवाहेतर संबंधों के आरोपों के संबंध में, पीठ ने सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का हवाला दिया:
- पिनाकिन महीपतरे रावल बनाम गुजरात राज्य: सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि शादी के दौरान किसी अन्य व्यक्ति के साथ केवल अंतरंगता होना इस प्रकृति की “क्रूरता” नहीं है जो जीवनसाथी को आत्महत्या करने के लिए मजबूर करे।
- के.वी. प्रकाश बाबू बनाम कर्नाटक राज्य: सुप्रीम कोर्ट ने कहा था: “सिर्फ इसलिए कि पति विवाहेतर संबंध में शामिल है और पत्नी के मन में कुछ संदेह है, इसे मानसिक क्रूरता नहीं माना जा सकता जो धारा 306 आईपीसी के अवयवों को पूरा करे।”
- घुसाभाई रायसंगभाई चौरसिया बनाम गुजरात राज्य: यह माना गया था कि यदि अवैध संबंध साबित भी हो जाते हैं, तो भी यह अपने आप में क्रूरता स्थापित नहीं करता।
साक्ष्यों का मूल्यांकन
कोर्ट ने पाया कि अभियोजन पक्ष उकसाने का कोई ठोस सबूत पेश करने में विफल रहा।
- संबंधों पर गवाही: मृतका की मां (PW2) ने स्वीकार किया कि वह “दूसरी महिला” से कभी नहीं मिलीं। उस अन्य महिला के पिता (PW8) ने स्वीकार किया कि हालांकि शादी का प्रस्ताव था, लेकिन उन्होंने अपनी बेटी को कभी आरोपी से मिलते नहीं देखा, जिससे उनकी गवाही केवल सुनी-सुनाई बातों पर आधारित साबित हुई।
- बयानों में विरोधाभास: कोर्ट ने मृतका की मां की गवाही में महत्वपूर्ण सुधार (improvements) को भी नोट किया। जबकि उन्होंने शुरू में एसडीएम को बताया था कि आरोपी ने पत्नी को छोड़ने के लिए 2-4 लाख रुपये की पेशकश की थी, कोर्ट में उन्होंने दावा किया कि आरोपी ने 20 लाख रुपये की मांग की थी। पीठ ने कहा, “उक्त भारी सुधार का कोई प्रशंसनीय स्पष्टीकरण नहीं है।”
- निकटता और कारण: कोर्ट ने पाया कि कथित संबंध के बारे में मृतका और उसके माता-पिता को दो साल से पता था। जजों ने नोट किया, “इस प्रकार, वर्तमान तथ्यात्मक मैट्रिक्स में, भले ही विवाहेतर संबंध को सच माना जाए, इसने आत्महत्या करने के लिए उत्प्रेरक (catalyst) के रूप में कार्य नहीं किया।”
चिकित्सीय निष्कर्ष
कोर्ट ने मौत के कारण पर भी विचार किया। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में पुष्टि हुई कि मौत सेप्टीसेमिक शॉक (septicemic shock) के कारण हुई थी जो फांसी लगाने के परिणामस्वरूप हुई थी। पीठ ने अभियोजन पक्ष के इस सुझाव को खारिज कर दिया कि यह गला घोंटने (strangulation) का मामला था। कोर्ट ने कहा, “हमें ऐसा कुछ भी नहीं बताया गया है जो दूर-दूर तक यह संकेत दे सके कि यह हत्या का मामला है।”
फैसला
अपील को खारिज करते हुए, हाईकोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि अभियोजन पक्ष आरोपी के किसी भी ऐसे कृत्य को साबित करने में विफल रहा जिससे मृतका के पास आत्महत्या करने के अलावा कोई विकल्प न बचा हो।
पीठ ने अपने फैसले में कहा: “उपरोक्त चर्चा के मद्देनजर, यह स्पष्ट हो जाता है कि केवल विवाहेतर संबंध का अस्तित्व धारा 306 आईपीसी को आकर्षित करने के लिए पर्याप्त नहीं है। रिकॉर्ड पर ऐसा कोई सबूत नहीं है जो किसी तत्काल या प्रत्यक्ष उकसावे या आचरण को इंगित करता हो, जिसने नाजरीन को आत्महत्या करने के लिए मजबूर किया हो।”
केस विवरण:
- केस टाइटल: राज्य (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार) बनाम हामिद
- केस नंबर: CRL.A. 80/2017
- साइटेशन: 2025:DHC:11261-DB
- कोरम: जस्टिस विवेक चौधरी और जस्टिस मनोज जैन
- अपीलकर्ता के वकील: श्री युद्धवीर सिंह चौहान, ए पी पी (APP)
- प्रतिवादी के वकील: श्री पवन कुमार मित्तल और सुश्री चैतन्य जैन

