न्यायिक नियुक्तियों में देरी को लेकर बढ़ती चिंताओं के बीच अधिवक्ता श्वेताश्री मजूमदार ने दिल्ली हाईकोर्ट की न्यायाधीश पद के लिए अपनी सहमति वापस ले ली है। यह निर्णय तब आया है जब सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम द्वारा उनका नाम अनुशंसित किए जाने के लगभग एक वर्ष बाद भी केंद्र सरकार ने उस पर कोई निर्णय नहीं लिया।
बौद्धिक संपदा कानून की विशेषज्ञ और ‘फिडस लॉ चैम्बर्स’ की प्रबंध भागीदार मजूमदार का नाम सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने 21 अगस्त 2024 को हाईकोर्ट में न्यायाधीश पद के लिए अनुशंसित किया था। उनके साथ वरिष्ठ अधिवक्ता अजय डिगपॉल और हरीश वैद्यनाथन शंकर के नाम भी भेजे गए थे।
हालांकि, केंद्र सरकार ने डिगपॉल और शंकर की नियुक्तियों को 6 जनवरी 2025 को मंजूरी दे दी, लेकिन मजूमदार का नाम बिना कोई कारण बताए लंबित रखा गया। इस निर्णयहीनता की पारदर्शिता और निष्पक्षता पर सवाल उठाते हुए विधि समुदाय के कई सदस्यों ने आलोचना की है।

बेंगलुरु स्थित नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी की स्नातक मजूमदार ने सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न उच्च न्यायालयों में 500 से अधिक मामलों में पक्षकारों की ओर से प्रस्तुतियाँ दी हैं। उन्हें दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा कई मामलों में एमिकस क्यूरी नियुक्त किया गया है, और वे दिल्ली उच्च न्यायालय (मूल पक्ष) नियम, 2018 को तैयार करने वाली समिति की सदस्य भी रह चुकी हैं।