गुर्जर रेजिमेंट की मांग वाली याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट ने सुनवाई से किया इनकार, कहा – “पूरी तरह से विभाजनकारी”

दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को एक जनहित याचिका (PIL) पर सुनवाई से इनकार कर दिया, जिसमें केंद्र सरकार को भारतीय सेना में एक अलग “गुर्जर रेजिमेंट” गठित करने का निर्देश देने की मांग की गई थी। अदालत ने इस याचिका को “पूरी तरह से विभाजनकारी” करार दिया।

मुख्य न्यायाधीश डी. के. उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने याचिका की वैधानिकता पर सवाल उठाए और इस तरह की याचिकाओं पर उचित शोध करने की नसीहत दी। अदालत ने यहां तक संकेत दिया कि यदि याचिका पर जोर दिया गया तो याचिकाकर्ता पर जुर्माना लगाया जा सकता है। इसके बाद याचिकाकर्ता के वकील ने याचिका वापस ले ली।

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पीठ ने अपने आदेश में कहा, “कुछ समय तक बहस करने के बाद, याचिकाकर्ता की ओर से पेश अधिवक्ता ने कहा कि उन्हें याचिकाकर्ता से निर्देश मिला है, जो अदालत में उपस्थित हैं, कि वह याचिका वापस लेना चाहते हैं। अतः यह याचिका वापस लेने के आधार पर खारिज की जाती है।”

यह याचिका रोहन बसोया नामक व्यक्ति द्वारा दायर की गई थी, जिसमें कहा गया था कि गुर्जर समुदाय का एक वीरतापूर्ण इतिहास रहा है और उन्होंने 1857 की क्रांति, 1947, 1965, 1971 की भारत-पाक युद्धों, कारगिल युद्ध (1999) और जम्मू-कश्मीर में आतंक विरोधी अभियानों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसके बावजूद, उन्हें सेना में कोई समर्पित रेजिमेंट नहीं दी गई है, जबकि सिख, जाट, राजपूत, गोरखा और डोगरा जैसी अन्य समुदायों को यह सम्मान मिला है।

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याचिका में कहा गया था कि एक गुर्जर रेजिमेंट के गठन से प्रतिनिधित्व में संतुलन आएगा, संवैधानिक अधिकारों की रक्षा होगी और सामरिक दृष्टिकोण से भी यह राष्ट्र की सुरक्षा को मजबूत करेगा।

हालांकि, सुनवाई के दौरान अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा, “आप एक मैंडमस (न्यायिक निर्देश) मांग रहे हैं। इसके लिए यह आवश्यक है कि आपके पास कोई विधिक अधिकार हो, जो किसी क़ानून, संविधान या नियम द्वारा प्रदान किया गया हो। ऐसा कौन सा क़ानून या संवैधानिक प्रावधान है, जो किसी समुदाय विशेष के लिए रेजिमेंट का अधिकार देता है?”

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अदालत ने कहा कि भारतीय सेना की एकता और अखंडता को ऐसे समुदाय-आधारित विभाजन से क्षति पहुंच सकती है और यह संवैधानिक ढांचे के विरुद्ध है।

याचिका में यह भी मांग की गई थी कि सरकार गुर्जर रेजिमेंट की व्यवहार्यता पर अध्ययन कर उसे स्थापित करने के लिए आवश्यक कदम उठाए, लेकिन याचिका वापस लेने के बाद अदालत ने इस पर कोई निर्देश नहीं दिया।

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