1984 के सिख विरोधी दंगों के मामले में उम्रकैद भुगत रहे पूर्व पार्षद बलवान खोक्खर की फरलो याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट ने मांगा सरकार का जवाब

दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार को दिल्ली सरकार से पूर्व कांग्रेस पार्षद बलवान खोक्खर की उस याचिका पर जवाब मांगा, जिसमें उन्होंने सामाजिक संबंध दोबारा स्थापित करने के लिए फरलो (अल्पावधि रिहाई) पर जेल से रिहाई की मांग की है।

न्यायमूर्ति रविंदर दूडेजा ने दिल्ली सरकार और जेल प्रशासन को नोटिस जारी कर स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया है। अदालत ने इस मामले की अगली सुनवाई 17 नवंबर के लिए निर्धारित की है।

यह याचिका मूल रूप से 16 दिसंबर को सुनवाई के लिए तय थी, लेकिन अदालत ने खोक्खर की शीघ्र सुनवाई याचिका स्वीकार करते हुए आज ही मुख्य मामला सुन लिया।

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खोक्खर ने जेल प्रशासन के 4 सितंबर के आदेश को चुनौती दी है, जिसमें उनकी फरलो याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी गई थी कि उनकी रिहाई से लोक शांति और व्यवस्था को खतरा हो सकता है। उन्होंने अदालत से अनुरोध किया है कि आदेश को निरस्त कर उन्हें 21 दिनों की पहली फरलो अवधि पर रिहा करने का निर्देश दिया जाए ताकि वे अपने परिवार और समाज से दोबारा जुड़ाव स्थापित कर सकें।

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फरलो एक अल्पकालिक रिहाई होती है, जो लंबी सजा भुगत रहे कैदियों को समाज से संबंध बनाए रखने और पुनर्वास के उद्देश्य से दी जाती है। इससे सजा निलंबित या समाप्त नहीं होती।

खोक्खर को चार अन्य व्यक्तियों के साथ वर्ष 2013 में ट्रायल कोर्ट ने हत्या और दंगा फैलाने के अपराधों में दोषी ठहराया था। यह मामला 1 नवंबर 1984 को उत्तर प्रदेश के गाज़ियाबाद के राज नगर क्षेत्र में हुई हिंसा से संबंधित है, जिसमें पांच सिखों की हत्या कर दी गई थी और एक गुरुद्वारा को आग लगा दी गई थी, जो तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भड़के दंगों का हिस्सा था।

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इस मामले में जहां पूर्व कांग्रेस नेता सज्जन कुमार को ट्रायल कोर्ट ने बरी कर दिया था, वहीं दिल्ली हाईकोर्ट ने दिसंबर 2018 में खोक्खर की सजा बरकरार रखते हुए कुमार की बरी को पलट दिया और उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई थी।

खोक्खर की हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ अपील वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट में लंबित है।

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