माता द्वारा जबरन बच्चे को लाने से क्षेत्राधिकार नहीं बनता: दिल्ली हाईकोर्ट ने अभिभावकता याचिका खारिज की

दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महिला द्वारा दायर उस याचिका को खारिज कर दिया है जिसमें उसने अपने नाबालिग बच्चे की स्थायी अभिभावकता मांगी थी। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि किसी माता-पिता द्वारा बच्चे को जबरन एक स्थान पर लाकर बसाने से वह स्थान बच्चे का ‘सामान्य निवास’ नहीं बन जाता और इससे अदालत को क्षेत्राधिकार प्राप्त नहीं होता।

न्यायमूर्ति नवीन चावला और न्यायमूर्ति रेनू भटनागर की पीठ ने इस निर्णय में दो मामलों की संयुक्त सुनवाई की— एक पारिवारिक अपील जिसमें परिवार न्यायालय द्वारा याचिका खारिज किए जाने को चुनौती दी गई थी, और दूसरा हैबियस कॉर्पस रिट जिसमें नाबालिग बच्चे को अमेरिका लौटाने की मांग की गई थी।

पृष्ठभूमि

विवादित पक्ष अमेरिका के एरिज़ोना में स्थायी रूप से रह रहे थे और वहीं 2013 में विवाह हुआ था। उनका पुत्र 2017 में एरिज़ोना में ही जन्मा और अमेरिका का नागरिक है। नवंबर 2022 में परिवार भारत छुट्टियों के लिए आया था, और 9 जनवरी 2023 की वापसी टिकट भी बुक थी। लेकिन दिल्ली पहुंचने पर महिला ने एयरपोर्ट पर सुरक्षा की मदद से बच्चे को अपने साथ ले लिया और पति से अलग कर दिया।

इसके बाद महिला ने दिल्ली में घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत कार्यवाही शुरू की और गार्जियन एंड वॉर्ड्स एक्ट की धाराओं 7, 8, 9 और 25 के अंतर्गत साकेत पारिवारिक न्यायालय में अभिभावकता याचिका दायर की। परिवार न्यायालय ने अप्रैल 2024 में याचिका खारिज कर दी थी क्योंकि बच्चा दिल्ली में “सामान्य रूप से निवास” नहीं कर रहा था।

कानूनी पक्ष

पुरुष पक्ष ने तर्क दिया कि बच्चा अमेरिका में जन्मा, वहीं पला-बढ़ा, वहीं स्कूल में पढ़ रहा था और भारत में केवल छुट्टियों पर आया था। उन्होंने एरिज़ोना की सुपीरियर कोर्ट के आदेश का हवाला दिया जिसमें मार्च 2023 में बच्चे की कानूनी अभिभावकता उन्हें सौंपी गई थी और बच्चे को 17 मार्च 2023 तक अमेरिका लौटाने का निर्देश दिया गया था।

यह भी कहा गया कि पत्नी द्वारा भारत में रुकने और बच्चे को वहीं रखने का निर्णय एकतरफा और पति की सहमति के बिना था, जिससे भारतीय अदालत को क्षेत्राधिकार नहीं मिल सकता।

वहीं, महिला ने दावा किया कि बच्चा अब दिल्ली के एक प्रतिष्ठित स्कूल में पढ़ रहा है और अच्छी तरह से ढल गया है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के रुचि माजू बनाम संजीव माजू तथा निथ्या आनंद राघवन बनाम राज्य (दिल्ली एनसीटी) जैसे मामलों का हवाला देते हुए कहा कि भारतीय अदालतें विदेशी आदेशों से बाध्य नहीं हैं और स्वतंत्र रूप से बच्चे के हित का मूल्यांकन कर सकती हैं।

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कोर्ट की टिप्पणियाँ

हाईकोर्ट ने पारिवारिक न्यायालय के इस निष्कर्ष को बरकरार रखा कि बच्चा जबरन भारत लाया गया और दिल्ली में उसकी उपस्थिति से वह “सामान्य निवासी” नहीं बन जाता।

कोर्ट ने कहा:

“माता-पिता द्वारा जबरन बच्चे को उसके मूल निवास स्थान से हटाकर किसी नए स्थान पर ले जाने से वह स्थान बच्चे का सामान्य निवास नहीं बन सकता।”

कोर्ट ने लाहरी सकमुरी बनाम शोभन कोडाली और पॉल मोहिंदर गहुन बनाम सेलिना गहुन जैसे निर्णयों का उल्लेख करते हुए कहा कि ऐसे मामलों में क्षेत्राधिकार बलपूर्वक उपस्थिति से उत्पन्न नहीं हो सकता।

निर्णय और निर्देश

महिला की अपील को खारिज करते हुए और पुरुष पक्ष की रिट याचिका को स्वीकार करते हुए कोर्ट ने निम्न निर्देश जारी किए:

  • महिला, यदि चाहे तो 1 जुलाई 2025 तक बच्चे के साथ अमेरिका लौट सकती हैं और 15 जून 2025 तक पति को अपने निर्णय की सूचना दें।
  • यदि वह लौटने का निर्णय लेती हैं, तो पति यात्रा की पूरी व्यवस्था करेंगे और महिला व बच्चे के लिए 2000 अमेरिकी डॉलर मासिक भरण-पोषण देंगे।
  • यदि महिला लौटने से इनकार करती हैं, तो 2 जुलाई 2025 को प्रातः 11:00 बजे हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल के समक्ष बच्चे की अभिरक्षा पिता को सौंपी जाएगी।
  • आवश्यकता पड़ने पर पुलिस सहायता से बच्चे की अभिरक्षा दिलाने का भी निर्देश दिया गया।
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कोर्ट ने यह भी कहा:

“केवल इसलिए कि पत्नी भारत में रहना चाहती हैं और बच्चे को स्कूल में दाखिल करवा चुकी हैं, इससे दिल्ली उस बच्चे का सामान्य निवास नहीं बन जाता।”

मामले का निपटारा बिना किसी पक्ष को लागत दिए कर दिया गया।

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