दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई पर एक वकील द्वारा जूता फेंकने की घटना की कड़ी निंदा की और कहा कि ऐसी घटनाओं से न्यायपालिका की गरिमा को ठेस पहुंचती है। अदालत ने यह भी कहा कि भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए ठोस कदम उठाए जाने चाहिए।
मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की खंडपीठ ने कहा, “हम आपकी चिंता को साझा करते हैं, शायद और अधिक गहराई से। यह घटना न केवल बार के सदस्यों को बल्कि सभी को आहत करने वाली है। यह किसी एक व्यक्ति का मामला नहीं है। ऐसी घटनाओं की निंदा के साथ-साथ उपयुक्त कदम भी उठाए जाने चाहिए।”
यह टिप्पणी अदालत ने अधिवक्ता तेजस्वी मोहन की उस जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान की, जिसमें उन्होंने सोशल मीडिया पर 6 अक्टूबर की घटना के वीडियो को हटाने की मांग की थी। याचिकाकर्ता ने यह भी आग्रह किया कि भविष्य में अगर ऐसी घटनाएं हों तो दोषी व्यक्ति की पहचान सार्वजनिक न की जाए ताकि उन्हें अनुचित प्रसिद्धि न मिले।
केंद्र सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल चेतन शर्मा ने अदालत को बताया कि सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) ने पहले ही शीर्ष अदालत में एक याचिका दाखिल की है, जिसमें उस वकील के खिलाफ अवमानना कार्रवाई की मांग की गई है जिसने मुख्य न्यायाधीश पर जूता फेंकने की कोशिश की थी। शर्मा ने कहा कि चूंकि मामला पहले से ही सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, इसलिए याचिकाकर्ता को वहीं हस्तक्षेप का अनुरोध करना चाहिए।
एएसजी ने एक समाचार रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए John Doe Order जारी करने और दिशा-निर्देश तय करने पर विचार कर रहा है। इस पर दिल्ली हाईकोर्ट की खंडपीठ ने कहा, “आप इस मामले की जानकारी सुप्रीम कोर्ट को दें और वहां हस्तक्षेप की मांग करें। अन्यथा, हम याचिका पर सुनवाई करेंगे।”
हालांकि, अदालत ने मामले को लंबित रखा और इसे 4 दिसंबर को आगे की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया। मुख्य न्यायाधीश ने कहा, “हम देख सकते हैं कि सुप्रीम कोर्ट इस मुद्दे के दायरे को बढ़ाना चाहता है। समानांतर कार्यवाही से बचने के लिए हम फिलहाल प्रतीक्षा करेंगे।”
उल्लेखनीय है कि 6 अक्टूबर को 71 वर्षीय अधिवक्ता राकेश किशोर ने सुप्रीम कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश गवई की ओर जूता फेंकने की कोशिश की थी। मुख्य न्यायाधीश ने शांत रहते हुए अदालत कर्मियों और सुरक्षा अधिकारियों से कहा था कि “इसे नजरअंदाज करें” और वकील को चेतावनी देकर छोड़ दें। इसके बाद बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने अधिवक्ता किशोर का लाइसेंस तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने बाद में एससीबीए की याचिका पर सुनवाई करते हुए उस वकील के खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू करने से इनकार किया, लेकिन यह कहा कि भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए दिशा-निर्देश तैयार करने पर विचार किया जाएगा ताकि अदालत की मर्यादा और न्यायाधीशों की सुरक्षा बनी रहे।




