दिल्ली हाई कोर्ट ने गुरुवार को तुर्की की विमानन सेवा प्रदाता कंपनी सेलेबी एयरपोर्ट सर्विसेज की उस याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया, जिसमें कंपनी ने भारत सरकार द्वारा उसकी सुरक्षा मंजूरी अचानक रद्द किए जाने को चुनौती दी है।
न्यायमूर्ति सचिन दत्ता की एकल पीठ के समक्ष इस मामले की सुनवाई के दौरान दोनों पक्षों के बीच तीखी दलीलें हुईं। कोर्ट ने याचिकाकर्ता कंपनी और केंद्र सरकार को 26 मई तक लिखित बहस दाखिल करने का निर्देश दिया।
यह मामला उस वक्त उठा जब ब्यूरो ऑफ सिविल एविएशन सिक्योरिटी (BCAS) ने 15 मई को सेलेबी की सुरक्षा मंजूरी रद्द कर दी। यह कदम तुर्की द्वारा भारत के आतंकवाद विरोधी सैन्य अभियानों की आलोचना और पाकिस्तान के समर्थन में बयान देने के कुछ ही समय बाद उठाया गया था।
सेलेबी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने दलील दी कि यह निर्णय प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है और विमान सुरक्षा नियमों के तहत निर्धारित प्रक्रिया के विरुद्ध है। उन्होंने यह भी कहा कि कंपनी को न तो कोई पूर्व सूचना दी गई और न ही जवाब देने का अवसर।
वहीं सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सरकार का बचाव करते हुए कहा कि यह निर्णय एक “अभूतपूर्व” सुरक्षा स्थिति के चलते लिया गया और यह पूरी तरह वैध और आवश्यक था। उन्होंने कहा, “असाधारण परिस्थितियों में असाधारण कदम उठाने पड़ते हैं।” उन्होंने यह भी जोड़ा कि सेलेबी का संचालन देश के कई बड़े हवाई अड्डों पर होता है और उसे उच्च सुरक्षा वाले क्षेत्रों में पहुंच प्राप्त है, जिससे यह निर्णय आवश्यक हो गया।
मेहता ने कहा कि ऐसी स्थितियों में देरी या सूचना का खुलासा राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डाल सकता है, हालांकि उन्होंने कोर्ट को आश्वस्त किया कि कंपनी की आपत्तियों पर विचार किया गया है और न्यायिक निगरानी मनमाने निर्णयों के विरुद्ध एक सुरक्षा कवच प्रदान करती है।
सेलेबी पिछले 15 वर्षों से भारत के विमानन क्षेत्र में सक्रिय है और देश के 9 प्रमुख हवाई अड्डों पर 10,000 से अधिक कर्मचारियों के साथ काम करती है। कंपनी सालाना लगभग 58,000 उड़ानों का संचालन करती है और 5.4 लाख टन कार्गो का प्रबंधन करती है।
BCAS के आदेश में कहा गया, “… राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में सेलेबी एयरपोर्ट सर्विसेज इंडिया प्राइवेट लिमिटेड की सुरक्षा मंजूरी तत्काल प्रभाव से रद्द की जाती है।” यह मंजूरी नवंबर 2022 में दी गई थी।