दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को दिल्ली पुलिस से यह स्पष्ट करने को कहा कि जम्मू-कश्मीर के सांसद इंजीनियर राशिद को संसद के मानसून सत्र में शामिल होने के लिए लगाए गए करीब 4 लाख रुपये के यात्रा खर्च की गणना कैसे की गई।
न्यायमूर्ति विवेक चौधरी और न्यायमूर्ति अनूप जयराम भंभानी की पीठ ने राज्य को निर्देश दिया कि वह 26 मार्च 2025 को दिल्ली आर्म्ड पुलिस द्वारा तिहाड़ जेल के अधीक्षक को भेजे गए पत्र में उल्लिखित गणना का विस्तृत ब्योरा पेश करे। दिल्ली पुलिस के वकील की अनुपस्थिति के कारण अदालत ने मामले की सुनवाई 18 अगस्त तक टाल दी।
अदालत, बारामूला सांसद की उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें उन्होंने 25 मार्च के एक आदेश में संशोधन की मांग की थी। उस आदेश में उन्हें हिरासत में रहते हुए संसद जाने के लिए जेल प्रशासन को करीब 4 लाख रुपये जमा कराने का निर्देश दिया गया था।

राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) के वकील ने कहा कि यात्रा खर्च का ब्योरा देने के लिए दिल्ली पुलिस ही उपयुक्त पक्ष है, क्योंकि उसकी बटालियन को सांसद को संसद तक ले जाने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी।
राशिद के वकील ने दलील दी कि संसद में उपस्थित होना किसी सांसद का विशेषाधिकार नहीं, बल्कि एक सार्वजनिक कर्तव्य है। “मेरे संसद जाने को सुविधाजनक बनाइए, इसे बाधा मत बनाइए,” उन्होंने कहा।
न्यायमूर्ति भंभानी ने हालांकि यह सवाल उठाया कि यदि इस तरह की अनुमति दी जाए तो इसकी सीमा कहां तय होगी — क्या फिर सांसद को अपने संसदीय क्षेत्र, राजनीतिक बैठकों या चुनाव प्रचार के लिए भी यही छूट दी जाएगी? न्यायमूर्ति चौधरी ने कहा कि सांसद देश और क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं, लेकिन यह तर्क आगे चलकर पूरे देश में बिना रोक-टोक यात्रा की मांग में बदल सकता है।
राशिद के वकील ने स्पष्ट किया कि उनका अनुरोध केवल संसद सत्र के दौरान उपस्थिति तक सीमित है, क्योंकि यह सांसदों का संवैधानिक दायित्व है कि वे अपने निर्वाचन क्षेत्र के हितों का प्रतिनिधित्व करें।
रिकॉर्ड में पहले यह बात आ चुकी है कि बारामूला सांसद पर अब तक संसद में आने-जाने के लिए 17 लाख रुपये से अधिक का यात्रा खर्च डाला गया है। 2019 से तिहाड़ जेल में बंद राशिद पर आरोप है कि उन्होंने जम्मू-कश्मीर में अलगाववादियों और आतंकी संगठनों को धन मुहैया कराया। एनआईए ने उन्हें 2017 के आतंकी फंडिंग मामले में गिरफ्तार किया था।