दिल्ली हाईकोर्ट ने भारतीय सेना के अधिकारी लेफ्टिनेंट सैमुअल कमलेसन की सेवा से बर्खास्तगी को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया है। न्यायमूर्ति नवीन चावला और न्यायमूर्ति शालिंदर कौर की पीठ ने 3 मार्च 2021 को सेना द्वारा जारी बर्खास्तगी आदेश को बरकरार रखते हुए कहा कि यह आदेश भारतीय सेना अधिनियम की धारा 19 तथा सेना नियमावली के नियम 14 के अंतर्गत जारी किया गया था, जो पूरी तरह वैध है।
मामले की पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता को 11 मार्च 2017 को 3 कैवेलरी रेजिमेंट में लेफ्टिनेंट के रूप में नियुक्त किया गया था। उन्हें ‘बी’ स्क्वाड्रन का टुकड़ी नेता बनाया गया, जिसमें सिख जवान तैनात थे। सैमुअल कमलेसन ने दावा किया कि वे एक आस्थावान ईसाई हैं और रेजिमेंट में “सर्व धर्म स्थल” के नाम पर केवल मंदिर और गुरुद्वारा था, चर्च जैसी किसी संरचना की व्यवस्था नहीं थी। वे धार्मिक परेड में भाग लेते थे लेकिन मंदिर या गुरुद्वारे के गर्भगृह (sanctum sanctorum) में प्रवेश नहीं करते थे।
उन्होंने आरोप लगाया कि इस आस्था-आधारित निर्णय के कारण उन्हें प्रताड़ित किया गया, प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों से वंचित किया गया, गोपनीय रिपोर्ट में नकारात्मक टिप्पणियाँ दी गईं और पदोन्नति से भी रोक दिया गया।
याचिकाकर्ता की दलीलें
याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता श्री गोपाल शंकरनारायणन ने तर्क दिया कि:
- मंदिर में प्रवेश और धार्मिक अनुष्ठानों में भाग लेना कोई सैन्य कर्तव्य नहीं, बल्कि व्यक्तिगत धार्मिक आस्था का मामला है।
- याचिकाकर्ता ने कभी रेजिमेंट की परेड में भाग लेने से इनकार नहीं किया, केवल मंदिर के गर्भगृह में जाने से परहेज़ किया।
- अनुच्छेद 25 के अंतर्गत धार्मिक स्वतंत्रता की संवैधानिक गारंटी प्राप्त है।
- बिना कोर्ट मार्शल किए सेवाएं समाप्त करना कानून विरुद्ध है।
- धार्मिक गतिविधियों से इनकार करने के कारण करियर को रोकना अनुचित भेदभाव है।
उन्होंने बिजो इम्मैनुएल बनाम केरल राज्य तथा आर. विश्वन बनाम भारत सरकार जैसे निर्णयों का हवाला दिया।
सरकार की ओर से पक्ष
भारत सरकार की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल श्री चेतन शर्मा ने तर्क दिया कि:
- भारतीय सेना का संगठनात्मक ढांचा रेजीमेंटेशन और एकता पर आधारित है, जिसमें धार्मिक परेड महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
- याचिकाकर्ता का गर्भगृह में प्रवेश से इनकार करना, आदेश की अवज्ञा है और यह सैनिकों के मनोबल को प्रभावित करता है।
- उन्हें कई स्तरों पर समझाया गया, स्थानीय चर्च के पादरी से मिलवाया गया, किंतु उन्होंने आदेशों का पालन करने से इनकार किया।
- अनुशासन बनाए रखने के लिए यह कार्रवाई आवश्यक थी।
कोर्ट का अवलोकन
पीठ ने कहा कि सशस्त्र बलों में अनुशासन सर्वोपरि है और आम नागरिकों की तुलना में वहां अपेक्षित आचरण अलग होता है। कोर्ट ने टिप्पणी की:
“याचिकाकर्ता ने अपने धर्म को अपने वरिष्ठ अधिकारी के वैध आदेश से ऊपर रखा, जो स्पष्ट रूप से अनुशासनहीनता है।”
कोर्ट ने आगे कहा:
“सेना का नेतृत्व यह तय करने में सक्षम है कि उनके अधिकारियों से क्या अपेक्षित है ताकि वे अपने अधीनस्थों में उत्साह और एकता उत्पन्न कर सकें। कोर्ट इसमें हस्तक्षेप नहीं करेगा जब तक आदेश मनमाना या असंवैधानिक न हो।”
कोर्ट का निष्कर्ष
कोर्ट ने माना कि याचिकाकर्ता को कई अवसर दिए गए, उन्हें समझाया गया, परंतु उन्होंने आदेशों का पालन नहीं किया। सेना प्रमुख द्वारा सभी रिकॉर्ड की समीक्षा के बाद यह निष्कर्ष निकाला गया कि सेवा में उनकी निरंतरता अब वांछनीय नहीं है।
कोर्ट ने यह भी माना कि सेना नियम 14(2) के तहत कोर्ट मार्शल न कर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जा सकती है यदि यह ‘अनुपयुक्त’ या ‘अव्यवहारिक’ हो।
याचिका खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता के धर्म का सम्मान है, लेकिन एक सैन्य अधिकारी के रूप में उन्हें सैनिकों की एकता और मनोबल को प्राथमिकता देनी थी। उनके बार-बार इनकार और अनुशासनहीनता के चलते सेना द्वारा की गई कार्रवाई उचित थी।
- मामला: सैमुअल कमलेसन बनाम भारत सरकार
- मामला संख्या: रिट याचिका (सिविल) 7564/2021