दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को भ्रष्टाचार के एक मामले में अदालतकर्मी के खिलाफ जांच कर रही एंटी करप्शन ब्रांच (ACB) को जांच अधिकारी बदलने पर विचार करने की सलाह दी। याचिकाकर्ता ने जांच अधिकारी पर पूर्वाग्रह का आरोप लगाया था और मामले की सीबीआई से जांच की मांग की थी।
न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला ने अहलमद (अदालती लिपिक) की अग्रिम जमानत याचिका और मामले को सीबीआई को स्थानांतरित करने की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा, “हम आपको इसे लेकर सोचने की सलाह देते हैं। केवल पारदर्शी होना ही पर्याप्त नहीं, पारदर्शिता दिखनी भी चाहिए। हम उस अधिकारी की नहीं, आपकी विश्वसनीयता की परीक्षा ले रहे हैं। यदि पक्षपात की आशंका भी है, तो उसे दूर करें।”
यह मामला एक 38 वर्षीय अहलमद से जुड़ा है जो 14 सितंबर 2023 से 21 मार्च 2025 तक राउज एवेन्यू जिला अदालत में एक विशेष जज की अदालत में तैनात था। एसीबी ने 16 मई 2025 को उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी, जिसमें उन पर जमानत दिलाने के लिए रिश्वत मांगने का आरोप लगाया गया था।
याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि मौजूदा जांच अधिकारी द्वारा की जा रही जांच हर दिन उनके मुवक्किल के लिए कठिनाई बढ़ा रही है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि यह एफआईआर विशेष न्यायाधीश को फंसाने और “पुराना हिसाब चुकता करने” के लिए दर्ज की गई है, जिन्होंने एसीबी के संयुक्त आयुक्त को कारण बताओ नोटिस जारी किया था कि उनके द्वारा अदालतकर्मियों को धमकाने के आरोप में अवमानना संदर्भ क्यों न भेजा जाए।
न्यायालय ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए कहा, “हम भ्रष्टाचार को बर्दाश्त नहीं करेंगे। हम अपने कर्मचारियों को नहीं छोड़ेंगे। यदि हमें पता चला कि स्टाफ कुछ कर रहा था, तो हम इसे हल्के में नहीं लेंगे। यह संस्था है।”
एसीबी की ओर से पेश अधिवक्ता ने कहा कि वे मामले में कुछ अतिरिक्त सामग्री रिकॉर्ड पर लाने के लिए स्थिति रिपोर्ट दाखिल करेंगे।
स्टाफर के वकील ने बताया कि हाईकोर्ट की प्रशासनिक समिति पहले ही कह चुकी है कि संबंधित विशेष जज के खिलाफ कोई मामला नहीं बनता, फिर भी 16 मई को एफआईआर दर्ज की गई, जबकि याचिकाकर्ता नौ बार जांच में सहयोग कर चुका था।
इससे पहले 14 फरवरी को हाईकोर्ट प्रशासन ने विशेष जज के खिलाफ जांच शुरू करने के लिए एसीबी के अनुरोध को यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया था कि उनके पास न्यायिक अधिकारी के खिलाफ कोई “पर्याप्त साक्ष्य” नहीं हैं। हालांकि एसीबी को यह स्वतंत्रता दी गई थी कि वह अपनी जांच जारी रखे और यदि कोई ठोस साक्ष्य मिले तो दोबारा अनुरोध करे।
इस बीच, 22 मई को निचली अदालत ने अभियोजन पक्ष की कस्टोडियल पूछताछ की मांग को स्वीकार करते हुए अहलमद की अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी थी।
हाईकोर्ट में लंबित एक अन्य याचिका में, अहलमद ने एफआईआर और आगे की कार्यवाही को रद्द करने की मांग की है, और वैकल्पिक रूप से मामले की निष्पक्ष जांच के लिए इसे सीबीआई को सौंपने की प्रार्थना की है।