दिल्ली सरकार इस साल दिवाली के मौके पर ‘ग्रीन क्रैकर’ जलाने की अनुमति के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाने की तैयारी कर रही है। मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने दिवाली को “भारतीय संस्कृति का सबसे महत्वपूर्ण त्योहार” बताते हुए कहा कि सरकार परंपरा और पर्यावरण—दोनों के बीच संतुलन बनाना चाहती है।
दिवाली, जिसे प्रकाश पर्व भी कहा जाता है, इस वर्ष 21 अक्टूबर को मनाई जाएगी। राजधानी दिल्ली में इस समय प्रदूषण का स्तर हर साल खतरनाक स्तर पर पहुंच जाता है। इसी कारण सुप्रीम कोर्ट ने बीते वर्षों में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में पटाखों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया था। यह प्रतिबंध विवाद का विषय रहा है क्योंकि बहुत से लोग पटाखों को दिवाली उत्सव का अहम हिस्सा मानते हैं।
इसी पृष्ठभूमि में दिल्ली सरकार नियंत्रित रूप से प्रदूषण रहित ‘ग्रीन क्रैकर’ के इस्तेमाल की अनुमति के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करने जा रही है।

ग्रीन क्रैकर पर्यावरण के अनुकूल नई पीढ़ी के पटाखे हैं, जिन्हें काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च–नेशनल एनवायरनमेंटल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (CSIR-NEERI) ने विकसित किया है। पारंपरिक पटाखों में उपयोग होने वाले बैरियम, सीसा और कैडमियम जैसे हानिकारक रसायनों की जगह इनमें ऐसे पदार्थ मिलाए जाते हैं जो धूल को दबाते हैं और जलवाष्प (water vapour) छोड़ते हैं। इससे वायु और ध्वनि प्रदूषण में उल्लेखनीय कमी आती है।
CSIR-NEERI के एक शोध पत्र के अनुसार, ग्रीन क्रैकर पूरी तरह प्रदूषण-मुक्त नहीं हैं, लेकिन पारंपरिक पटाखों की तुलना में कहीं अधिक सुरक्षित विकल्प हैं। ये मुख्य रूप से तीन प्रकार के होते हैं:
- SWAS (Safe Water Releaser): इस प्रकार के पटाखे फूटते समय जलवाष्प छोड़ते हैं, जो धूल को दबाने और गैसों को पतला करने का काम करता है। इससे पार्टिकुलेट मैटर (PM) में कमी आती है।
- STAR (Safe Thermite Cracker): इसमें पारंपरिक पटाखों की तुलना में कम हानिकारक रासायनिक मिश्रण होता है, जिससे ध्वनि और वायु प्रदूषण दोनों में कमी आती है।
- SAFAL (Safe Minimal Aluminium): इसमें एल्युमिनियम की मात्रा न्यूनतम रखी जाती है और उसकी जगह मैग्नीशियम का इस्तेमाल होता है, जिससे ध्वनि और प्रदूषण दोनों कम होते हैं।
हर साल अक्टूबर के अंत में दिल्ली की वायु गुणवत्ता “बहुत खराब” से “गंभीर” श्रेणी में पहुंच जाती है। इसका कारण पराली जलाना, मौसमी परिस्थितियां और पटाखों से निकलने वाला धुआं होता है। सुप्रीम कोर्ट पहले भी कई बार साफ कर चुका है कि स्वच्छ हवा में सांस लेना लोगों का मौलिक अधिकार है, और इसी आधार पर उसने पटाखों की बिक्री व इस्तेमाल पर कड़े प्रतिबंध लगाए थे।
दिल्ली सरकार की याचिका में यह दलील दी जाएगी कि ग्रीन क्रैकर एक व्यावहारिक मध्य मार्ग हैं, जिनसे परंपरागत तरीके से त्योहार मनाना भी संभव है और प्रदूषण में भी कमी लाई जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट का फैसला तय करेगा कि इस साल राजधानी में दिवाली का जश्न किस रूप में मनाया जाएगा।