सुप्रीम कोर्ट में दाखिल एक हलफनामे में दिल्ली वन विभाग ने चौंकाने वाला खुलासा किया है कि वसंत कुंज स्थित रिज क्षेत्र में एक आवासीय परियोजना के लिए पेड़ों की कटाई की “नकली अनुमति” उप वन संरक्षक के नाम पर जारी की गई थी।
यह हलफनामा वेस्ट फॉरेस्ट डिवीजन के उप वन संरक्षक द्वारा पर्यावरण कार्यकर्ता भवरीन कंधारी की अवमानना याचिका पर दाखिल किया गया, जिसमें दावा किया गया था कि यह जमीन “मॉरफोलॉजिकल रिज” क्षेत्र में आती है, जिसकी सुरक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 9 मई 1996 को विशेष आदेश दिया था। आदेश के अनुसार, किसी भी प्रकार की पेड़ कटाई या भूमि परिवर्तन से पहले सुप्रीम कोर्ट से अनुमति अनिवार्य है।
“यह उल्लेखनीय है कि उत्तरदाता के संज्ञान में यह बात आई कि उप वन संरक्षक के कार्यालय के नाम से एक नकली अनुमति जारी की गई थी, जो कि राकेश कुमार शर्मा के नाम पर थी,” हलफनामे में कहा गया है।

हलफनामे में बताया गया कि 13 दिसंबर, 2024 को उप वन संरक्षक ने वसंत कुंज थाने के थाना प्रभारी को पत्र लिखकर मामले में प्राथमिकी दर्ज करने और कानूनी कार्रवाई की मांग की थी।
हालांकि, मामले की जांच कर रहे सहायक उप निरीक्षक ने जवाब में कहा कि कथित फर्जी अनुमति पत्र पढ़ने योग्य नहीं है, विवादित स्थान का पता नहीं चल रहा है और पूछताछ के दौरान राकेश कुमार शर्मा ने सभी आरोपों से इनकार किया है। उन्होंने यह भी कहा कि यदि अनुमति पत्र की मूल प्रति नहीं दी गई तो शिकायत बंद कर दी जाएगी।
इसके जवाब में वन अधिकारी ने 13 मार्च, 2025 को थाने को सूचित किया कि उनके पास उपलब्ध केवल यही एक प्रति है, जिसे पहले ही सौंपा जा चुका है। इस मुद्दे की जानकारी केंद्रीय सशक्त समिति (CEC) को भी दी गई है।
याचिका में यह भी आरोप लगाया गया है कि दिल्ली नगर निगम (MCD) ने इस निर्माण परियोजना की मंजूरी दे दी, जबकि सुप्रीम कोर्ट से कोई पूर्व अनुमति नहीं ली गई। साथ ही यह भी कहा गया कि दिल्ली सरकार के वन विभाग, रिज प्रबंधन बोर्ड और अन्य संबंधित अधिकारियों ने इस गैरकानूनी गतिविधि को रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठाया।
गौरतलब है कि दिल्ली का रिज क्षेत्र एक पारिस्थितिक दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र है, जिसे पांच भागों — नॉर्दर्न रिज, सेंट्रल रिज, साउथ सेंट्रल रिज, साउदर्न रिज और नानकपुरा साउथ सेंट्रल रिज — में विभाजित किया गया है। इस क्षेत्र की सुरक्षा के लिए समय-समय पर न्यायालयों और प्राधिकरणों द्वारा कई आदेश पारित किए गए हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने 7 मई को इस मामले में संबंधित अधिकारियों को कारण बताओ नोटिस जारी कर पूछा था कि 9 मई 1996 के आदेश के उल्लंघन के लिए उनके खिलाफ अवमानना की कार्यवाही क्यों न की जाए। यह मामला अब 21 जुलाई को न्यायमूर्ति सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए सूचीबद्ध है।