दिल्ली की एक अदालत ने एक दशक पुराने सड़क दुर्घटना मामले में फैसला सुनाने में देरी की, जब अदालत का नियमित स्टेनोग्राफर अचानक अदालत कक्ष छोड़कर चला गया और आत्महत्या करने की धमकी दी। न्यायिक मजिस्ट्रेट सुश्री नेहा गर्ग (जेएमएफसी-02, पूर्वी जिला, कड़कड़डूमा कोर्ट) ने 29 अप्रैल 2025 के आदेश में उल्लेख किया कि स्टेनोग्राफर की अनुपस्थिति के कारण निर्णय की डिक्टेशन नहीं हो सकी। इसके बाद मामला 9 मई 2025 के लिए पुनः सूचीबद्ध किया गया, जब अंतिम फैसला सुनाया गया।
मामला और पृष्ठभूमि
न्यायालय ने अपने विस्तृत निर्णय में सुखदेव उर्फ सुखा, पुत्र बलबीर सिंह, निवासी सनलाइट कॉलोनी नं. 2, आश्रम, नई दिल्ली को लापरवाहीपूर्वक और तेज गति से वाहन चलाकर एक मोटरसाइकिल चालक की मृत्यु का कारण बनने का दोषी ठहराया। उन्हें भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 279 और 304A के तहत दोषी ठहराया गया। यह मामला एफआईआर संख्या 108/2012, थाना गीता कॉलोनी से संबंधित है।
अभियोजन के अनुसार, 9 अप्रैल 2012 को प्रातः लगभग 5:50 बजे, आरोपी ट्रक संख्या HR-55J-1919 को तेजी और लापरवाही से चला रहा था। शमशान घाट, पुश्ता रोड, गीता कॉलोनी के सामने, उसने एक काली अपाचे मोटरसाइकिल (DL-7SBB-5830) को पीछे से टक्कर मार दी, जिससे चालक आकाश कश्यप की मृत्यु हो गई।
आरोपी के खिलाफ आरोपपत्र आईपीसी की धारा 279 और 304A के अंतर्गत दायर किया गया था। आरोपी ने आरोपों से इनकार किया और मुकदमे का सामना किया। उसके विरुद्ध 19 अगस्त 2014 को आरोप तय किए गए और 26 मार्च 2025 को धारा 313 सीआरपीसी के तहत उसका बयान दर्ज किया गया।
अभियोजन पक्ष की साक्ष्य
प्रमुख अभियोजन गवाहों में शामिल थे:
- PW-2 हेड कांस्टेबल नरेंद्र और
- PW-8 सेवानिवृत्त एसआई कुलदीप सिंह, जो उस समय पीसीआर ड्यूटी पर थे और प्रत्यक्षदर्शी के रूप में पेश हुए।
PW-2 ने अदालत को बताया कि उन्होंने शमशान घाट रेड लाइट के पास ट्रक को मोटरसाइकिल को टक्कर मारते देखा और आरोपी को यमुना खादर के पास पकड़ लिया।
PW-8 ने भी घटनाक्रम की पुष्टि करते हुए बताया कि उन्होंने घायल को पीसीआर वाहन R-28 से एसडीएन अस्पताल पहुँचाया, जहाँ आकाश कश्यप को मृत घोषित किया गया।
अदालत के समक्ष दुर्घटनास्थल और क्षतिग्रस्त वाहनों की तस्वीरें प्रस्तुत की गईं। ट्रक के अगले हिस्से और मोटरसाइकिल के पिछले हिस्से की यांत्रिक जांच रिपोर्ट से यह सिद्ध हुआ कि ट्रक ने पीछे से टक्कर मारी थी।
न्यायालय के विश्लेषण और टिप्पणियाँ
जज नेहा गर्ग ने पुलिस गवाहों की गवाही को विश्वसनीय और सुसंगत मानते हुए कहा:
“उपरोक्त चर्चा से यह स्पष्ट है कि अभियोजन पक्ष ने ऐसे पर्याप्त साक्ष्य प्रस्तुत किए हैं, जो आरोपी की दोषसिद्धि की संभावना को प्रमाणित करते हैं।”
जब बचाव पक्ष ने स्वतंत्र सार्वजनिक गवाहों की गैर-मौजूदगी पर आपत्ति जताई, तो न्यायालय ने निर्णय में लिखा:
“कोई भी विधि या साक्ष्य का सिद्धांत ऐसा नहीं है, जो यह कहता हो कि जब तक पुलिस अधिकारियों की गवाही स्वतंत्र साक्ष्यों से पुष्टि न हो, उसे स्वीकार नहीं किया जा सकता।”
न्यायालय ने यह भी कहा कि दुर्घटना स्थल पर वाहन की स्थिति को लेकर बयानों में आई मामूली असंगतियां इस तथ्य को प्रभावित नहीं करतीं कि ट्रक मौके के निकट था, जैसा कि स्थल योजना (प्रद. PW9/A) और अन्य दस्तावेज़ी साक्ष्यों से स्पष्ट होता है।
धारा 313 सीआरपीसी के तहत आरोपी का यह बयान कि वह शौच के लिए गया था और उसका ट्रक वहीं खड़ा था, ट्रक पर हुई क्षति की व्याख्या करने में असमर्थ पाया गया।
अंतिम आदेश
अदालत ने अपने निर्णय में कहा:
“अभियोजन पक्ष यह सिद्ध करने में सफल रहा है कि आरोपी ट्रक संख्या HR-55J-1919 को इतनी तेजी और लापरवाही से चला रहा था कि उसने मोटरसाइकिल संख्या DL-7SBB-5830 को टक्कर मार दी, जिससे उसके चालक आकाश कश्यप की मृत्यु हो गई।”
इस प्रकार, सुखदेव उर्फ सुखा को भारतीय दंड संहिता की धारा 279 और 304A के तहत दोषी ठहराया गया। सजा पर आगे की कार्यवाही अपेक्षित है।