सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 216 अदालत को पहले से तय किए गए आरोपों को हटाने का अधिकार नहीं देती। यह प्रावधान केवल आरोपों को जोड़ने या संशोधित करने के लिए है, न कि हटाने के लिए। यह निर्णय न्यायमूर्ति जे.बी. पारडीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने Directorate of Revenue Intelligence बनाम राज कुमार अरोड़ा एवं अन्य मामले में सुनाया।
पृष्ठभूमि
यह अपीलें दिल्ली हाईकोर्ट के उन आदेशों से जुड़ी थीं, जिनमें ट्रायल कोर्ट द्वारा दो आपराधिक मामलों को ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट, 1940 (D&C एक्ट) के तहत चलाए जाने को सही ठहराया गया था, जबकि मूलतः इन मामलों में बुप्रेनॉर्फिन (Buprenorphine) नामक साइकोट्रॉपिक पदार्थ शामिल था और आरोप NDPS अधिनियम, 1985 के तहत तय किए गए थे।
विशेष न्यायाधीश ने दोनों मामलों में पहले ही NDPS अधिनियम की धारा 8, 22 और 29 के अंतर्गत आरोप तय कर दिए थे। इसके बाद अभियुक्तों ने CrPC की धारा 216 के तहत आवेदन देकर इन आरोपों को हटाने की मांग की। उनका तर्क था कि बुप्रेनॉर्फिन हाइड्रोक्लोराइड NDPS नियमों की अनुसूची-I में सूचीबद्ध नहीं है, इसलिए NDPS अधिनियम के तहत कोई अपराध नहीं बनता।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियाँ: CrPC की धारा 216
सुप्रीम कोर्ट ने अभियुक्तों की इस दलील को खारिज करते हुए कहा:
“धारा 216 CrPC अदालत को दो शक्तियाँ देती है – एक, आरोप में संशोधन करना और दो, आरोप में जोड़ करना। कहीं भी यह नहीं कहा गया है कि आरोप को पूरी तरह हटाया जा सकता है।”
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि आरोप तय हो जाने के बाद किसी आरोपी को धारा 216 के तहत डिस्चार्ज के लिए दोबारा आवेदन देने का कोई अधिकार नहीं है:
“धारा 216 आरोपी को आरोप तय होने के बाद पुनः डिस्चार्ज के लिए नया आवेदन देने का अधिकार नहीं देती।”
इस प्रक्रिया के दुरुपयोग पर टिप्पणी करते हुए कोर्ट ने कहा:
“यह एक आम प्रथा बन गई है कि आरोपी धारा 227 CrPC के तहत डिस्चार्ज के लिए आवेदन खारिज होने के बाद धारा 216 CrPC के तहत आवेदन दायर करते हैं – कभी कानून के अज्ञान में, तो कभी जानबूझकर ट्रायल की प्रक्रिया को भटकाने के उद्देश्य से।”
कोर्ट ने विधायी मंशा पर जोर देते हुए कहा:
“धारा 216 CrPC की भाषा केवल आरोप जोड़ने या संशोधित करने की अनुमति देती है, हटाने या आरोपी को डिस्चार्ज करने की नहीं। यदि विधायिका का इरादा ट्रायल कोर्ट को इस स्तर पर आरोप हटाने की शक्ति देने का होता, तो वह इसे स्पष्ट रूप से कानून में शामिल करती।”
अंतिम निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट और विशेष न्यायाधीश के आदेशों को रद्द करते हुए कहा कि NDPS अधिनियम के तहत जो आरोप तय किए गए थे, वे पूरी तरह वैध थे और उन्हें धारा 216 CrPC के तहत हटाया नहीं जा सकता था।
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि बुप्रेनॉर्फिन, जो NDPS अधिनियम की अनुसूची में सूचीबद्ध एक साइकोट्रॉपिक पदार्थ है, भले ही वह NDPS नियमों की अनुसूची-I में न हो, फिर भी NDPS अधिनियम की धारा 8(c) के तहत इसके कब्जे और प्रयोग पर प्रतिबंध लागू होता है। अतः अभियुक्तों पर NDPS अधिनियम के अंतर्गत मुकदमा चलाया जाना सही है।