मंगलवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने न्यायपालिका द्वारा नैतिक पुलिसिंग की अवधारणा की आलोचना की और पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के उस आदेश को पलट दिया, जिसमें राजनीतिक विश्लेषक तहसीन पूनावाला पर भारी जुर्माना लगाया गया था। हाईकोर्ट का यह फैसला जैन मुनि तरुण सागर के बारे में पूनावाला की विवादास्पद टिप्पणी के जवाब में आया है।
जस्टिस अभय एस. ओके और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने 2019 के हाईकोर्ट के उस निर्देश को रद्द कर दिया, जिसमें पूनावाला और संगीतकार विशाल ददलानी को 10-10 लाख रुपये का जुर्माना भरने का आदेश दिया गया था। यह जुर्माना शुरू में उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने के फैसले के तहत लगाया गया था, जिसका उद्देश्य धार्मिक हस्तियों का मजाक उड़ाने से रोकना था।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के तर्क में खामी पाई और अपीलकर्ताओं को बरी करने के बावजूद जुर्माना लगाने पर सवाल उठाया। कार्यवाही के दौरान पीठ ने टिप्पणी की, “यह किस तरह का आदेश है? जुर्माना लगाने का कोई सवाल ही नहीं था। अदालत ने अपीलकर्ताओं को बरी कर दिया, लेकिन जुर्माना लगाया। अदालतों को नैतिक पुलिसिंग नहीं करनी चाहिए।”

हाईकोर्ट के आदेश को रद्द करने का सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय नैतिक निर्णय के क्षेत्र में अतिक्रमण के विरुद्ध एक महत्वपूर्ण न्यायिक दृष्टिकोण को रेखांकित करता है।