सीएम योगी का ऐलान: हर जिला जज के चैंबर में लगेगा एसी, महिला न्यायिक अधिकारियों की सुरक्षा पर भी सरकार लाएगी प्रस्ताव

उत्तर प्रदेश न्यायिक सेवा संघ के 42वें वार्षिक अधिवेशन में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने न्यायपालिका को सशक्त और सुविधाजनक बनाने के लिए कई महत्वपूर्ण घोषणाएं कीं। कार्यक्रम का आयोजन इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ परिसर में हुआ, जहां सीएम ने कहा कि सरकार न्यायिक अधिकारियों को बेहतर कार्य वातावरण देने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है।

सीएम योगी की बड़ी घोषणाएं

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने संबोधन में कहा:

  • हर जिला जज के चैंबर में एसी लगवाया जाएगा, जिसकी व्यवस्था राज्य सरकार करेगी।
  • न्यायिक अधिकारियों के लिए एक कॉर्पस फंड बनाया जाएगा, ताकि उन्हें आवश्यक आर्थिक सहायता मिल सके।
  • महिला न्यायिक अधिकारियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एक प्रस्ताव सरकार लाएगी

उन्होंने कहा, “हमारा उद्देश्य है कि हर नागरिक को सस्ता, सुलभ और समयबद्ध न्याय मिले। न्याय प्रणाली की मजबूती के बिना विकसित भारत का सपना पूरा नहीं हो सकता।”

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सीएम ने बताया कि वर्ष 2024 में प्रदेश की जिला और ट्रायल अदालतों में 72 लाख मामलों का निस्तारण हुआ है, जो न्यायिक तंत्र की सक्रियता का प्रमाण है। उन्होंने यह भी जोड़ा कि न्यायपालिका में जन विश्वास तभी बनेगा जब न्याय की गति और गुणवत्ता—दोनों बनी रहें।

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बुनियादी ढांचे में निवेश

सीएम योगी ने न्यायिक अधोसंरचना को मज़बूत करने के लिए राज्य सरकार की ओर से किए गए निवेश का विवरण दिया:

  • प्रयागराज स्थित इलाहाबाद हाईकोर्ट में न्यायाधीशों के लिए ₹62.41 करोड़ की लागत से आवास निर्माण की प्रशासनिक एवं वित्तीय स्वीकृति।
  • लखनऊ खंडपीठ और अन्य न्यायिक परिसरों के विकास के लिए संसाधन आवंटन।
  • छह जनपदों में इंटीग्रेटेड कोर्ट कॉम्प्लेक्स की मंजूरी।

नए कानूनों के क्रियान्वयन में न्यायपालिका की भूमिका

सीएम योगी ने वर्ष 2024 में लागू नए आपराधिक कानूनों के त्वरित और संवेदनशील क्रियान्वयन में न्यायिक अधिकारियों की भूमिका की सराहना की। उन्होंने कहा कि:

“इन नए कानूनों ने दंड आधारित दृष्टिकोण से आगे बढ़कर न्याय आधारित दृष्टिकोण को प्राथमिकता दी है, जिससे लोकतंत्र की नींव और गहरी होगी।”

यूपी में जजों की भारी कमी: संघ अध्यक्ष रणधीर सिंह

उत्तर प्रदेश न्यायिक सेवा संघ के अध्यक्ष रणधीर सिंह ने अधिवेशन में प्रदेश में न्यायाधीशों की बेहद कम संख्या को लेकर चिंता जताई। उन्होंने बताया:

  • सुप्रीम कोर्ट की अनुशंसा है कि 10 लाख जनसंख्या पर 50 जज होने चाहिए, जो 2007 तक पूरा होना था।
  • वर्तमान में यूपी में केवल 11 जज प्रति 10 लाख की आबादी हैं। अन्य राज्यों की तुलना में यह बेहद कम है: गुजरात में 15, दिल्ली में 20 और मध्य प्रदेश में 23।
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उन्होंने कहा कि:

“उत्तर प्रदेश में 29.83 लाख मामले लंबित हैं। नए केस बहुत ज़्यादा आ रहे हैं, इसलिए औसत से बेहतर निष्पादन के बावजूद पेंडेंसी बढ़ रही है।”

उन्होंने ओल्ड पेंशन स्कीम, डिजिटल सुविधाओं, इन्फ्रास्ट्रक्चर, और स्टाफ की कमी जैसे मुद्दों को भी उठाया। साथ ही बताया कि विशेष न्यायालय (पारिवारिक, भूमि अधिग्रहण, मोटर दुर्घटना) का गठन योगी सरकार के कार्यकाल में हुआ है, लेकिन उन्हें अभी भी पर्याप्त संसाधनों की आवश्यकता है।

“जिला न्यायपालिका ही न्याय का असली चेहरा है”: जस्टिस मनीष गुप्ता

अधिवेशन में जस्टिस मनीष कुमार गुप्ता ने जिला न्यायपालिका की भूमिका पर बल देते हुए कहा:

“सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट आम जनता से दूर हैं, लेकिन ज़िला अदालत ही वह जगह है जहां से आम आदमी न्याय की शुरुआत देखता है।”

उन्होंने कहा कि डॉ. भीमराव अंबेडकर का यह कथन आज भी प्रासंगिक है कि:

“संविधान चाहे जितना अच्छा हो, अगर उसे लागू करने वाले निष्पक्ष और साहसी नहीं हैं, तो वह असफल हो जाएगा।”

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तकनीकी बदलाव समय की मांग

जस्टिस गुप्ता ने न्यायिक सुधारों में ई-फाइलिंग, वर्चुअल हियरिंग, और रिकॉर्ड्स के डिजिटलीकरण को समय की जरूरत बताया। उन्होंने कहा:

“तकनीकी बदलाव चुनौतीपूर्ण जरूर हैं, लेकिन ये न्याय प्रक्रिया को तेज, पारदर्शी और प्रभावी बनाते हैं।”

सीएम द्वारा स्वीकृत छह जिलों में इंटीग्रेटेड कोर्ट कॉम्प्लेक्स को भी उन्होंने न्यायिक बुनियादी ढांचे के क्षेत्र में बड़ा कदम बताया।

“न्याय का अर्थ केवल फैसले नहीं, गरिमा लौटाना है”

जस्टिस गुप्ता ने कहा:

“सिर्फ हेडलाइन बनाने वाले फैसले नहीं, बल्कि वह न्याय जो किसी मजदूर को पेंशन या किसी विधवा को उसका अधिकार लौटाए—वही असली न्याय है।”

उन्होंने यह भी जोड़ा:

“सोचना कि हमने सब सीख लिया, वहीं से हमारी प्रगति रुक जाती है। इसलिए सतत शिक्षा और संवेदनशीलता जरूरी है।”

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