एडवोकेट्स (संशोधन) विधेयक, 2025 भारतीय कानूनी पेशे और अधिवक्ताओं के नियमन में महत्वपूर्ण सुधार प्रस्तुत करता है। इस विधेयक में सबसे उल्लेखनीय प्रावधानों में से एक धारा 45B है, जो अधिवक्ता द्वारा की गई जानबूझकर की गई कार्रवाई या लापरवाही के कारण क्लाइंट को हुए वित्तीय नुकसान की जिम्मेदारी तय करता है। इस प्रावधान का उद्देश्य जवाबदेही बढ़ाना और पीड़ित पक्षों के लिए शिकायत निवारण का मार्ग खोलना है। हालांकि, इससे वकालत की स्वतंत्रता और “अवचार” (Misconduct) की परिभाषा को लेकर गंभीर चिंताएँ भी उत्पन्न होती हैं।
धारा 45B: दुराचार के लिए दायित्व
धारा 45B का पाठ
प्रस्तावित संशोधन के अनुसार:
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“यदि कोई व्यक्ति, अधिवक्ता द्वारा जानबूझकर किए गए कार्य या अवचार के कारण हुए नुकसान का शिकार होता है, तो वह व्यक्ति भारतीय बार काउंसिल द्वारा निर्धारित नियमों के तहत अधिवक्ता के विरुद्ध शिकायत दर्ज करा सकता है।“
यह प्रावधान पारंपरिक व्यावसायिक दुराचार के मामलों से आगे बढ़कर अनुशासनात्मक कार्रवाई के दायरे को विस्तारित करता है और क्लाइंट को अधिवक्ता द्वारा किए गए कार्यों से हुए वित्तीय नुकसान के लिए उत्तरदायी ठहराने का अधिकार देता है।
मुख्य मुद्दे और चिंताएँ
1. ‘अवचार’ (Misconduct) की परिभाषा का विस्तार
अब तक, कानूनी पेशे में “अवचार” का अर्थ व्यावसायिक नैतिकता के उल्लंघन जैसे कि धोखाधड़ी, गलत बयानी, या गोपनीयता के उल्लंघन तक सीमित था। लेकिन धारा 45B इस परिभाषा को विस्तारित कर क्लाइंट को हुए वित्तीय नुकसान को भी सम्मिलित कर रहा है। इसके कारण निम्नलिखित समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं:
- दायित्व की अस्पष्टता: “जानबूझकर” नुकसान और अनपेक्षित परिणामों के बीच अंतर कैसे किया जाएगा?
- अधिवक्ताओं के खिलाफ बढ़ता मुकदमेबाजी जोखिम: यदि क्लाइंट को प्रतिकूल फैसला मिलता है, तो वे अधिवक्ता के विरुद्ध शिकायत कर सकते हैं, भले ही अधिवक्ता ने ईमानदारी से कार्य किया हो।
2. कानूनी पेशे पर नकारात्मक प्रभाव
अधिवक्ताओं को वित्तीय नुकसान के लिए उत्तरदायी ठहराने से वे जटिल या विवादास्पद मामलों को लेने से हिचकिचाएंगे, विशेषकर वे मामले जिनमें बड़े वित्तीय दांव होते हैं। इससे निम्नलिखित समस्याएँ हो सकती हैं:
- शक्तिशाली संस्थाओं या सरकार के खिलाफ मामले लेने की अनिच्छा बढ़ सकती है।
- अधिवक्ता अपने बचाव को प्राथमिकता देंगे, जिससे न्याय के प्रति उनकी निष्ठा प्रभावित हो सकती है।
3. बार की स्वतंत्रता पर खतरा
कानूनी पेशे का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत यह है कि अधिवक्ता बाहरी दबावों से स्वतंत्र रहकर कार्य करें। यदि अधिवक्ताओं को उनके कानूनी तर्कों या रणनीतियों के लिए वित्तीय रूप से उत्तरदायी बनाया जाता है, तो यह उनके पेशेवर निर्णय और स्वायत्तता को खतरे में डाल सकता है।
4. भारतीय बार काउंसिल की भूमिका
धारा 45B भारतीय बार काउंसिल (BCI) को अधिवक्ता की जिम्मेदारी तय करने के लिए नियम बनाने की शक्ति प्रदान करता है। लेकिन:
- दुराचार की परिभाषा स्पष्ट नहीं है।
- BCI की अनुशासनात्मक प्रक्रियाएँ पहले से ही अत्यधिक दबाव में हैं और वित्तीय दायित्व संबंधी शिकायतों की संख्या बढ़ने से यह और अधिक जटिल हो सकती हैं।
- निर्णय लेने की प्रक्रिया में मनमानेपन की संभावना बढ़ सकती है।
वैश्विक दृष्टिकोण: अधिवक्ताओं की जवाबदेही का तुलनात्मक अध्ययन
संयुक्त राज्य अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम: क्लाइंट वकीलों पर “कानूनी लापरवाही” के लिए मुकदमा कर सकते हैं, लेकिन इसके लिए स्पष्ट रूप से लापरवाही और उसके कारण हुए वित्तीय नुकसान को साबित करना आवश्यक होता है।
यूरोपीय संघ: जर्मनी और फ्रांस जैसे देशों में अधिवक्ताओं पर पेशेवर उत्तरदायित्व लगाया जाता है, लेकिन केवल गंभीर लापरवाही के मामलों में।
भारत (वर्तमान प्रणाली): अब तक, अवचार के लिए केवल अनुशासनात्मक कार्रवाई होती थी, जिसे राज्य बार काउंसिल और भारतीय बार काउंसिल द्वारा नियंत्रित किया जाता था।
संभावित सुधार और सुरक्षा उपाय
इस संशोधन को संतुलित करने के लिए निम्नलिखित बदलाव किए जा सकते हैं:
- “अवचार” की स्पष्ट परिभाषा: उत्तरदायित्व की सीमा तय करने के लिए गंभीर लापरवाही या धोखाधड़ी को दायरे में लाया जाए, जिससे अनावश्यक शिकायतों को रोका जा सके।
- शिकायत निवारण तंत्र: सीधे वित्तीय दायित्व तय करने के बजाय क्लाइंट और अधिवक्ता के बीच मध्यस्थता प्रक्रिया को अपनाया जाए।
- अधिवक्ताओं को अनुचित दावों से बचाव: ऐसे क्लाइंट जो आधारहीन या प्रतिशोधात्मक शिकायतें दर्ज कराते हैं, उनके लिए दंडात्मक प्रावधान शामिल किए जाएँ।
निष्कर्ष
एडवोकेट्स (संशोधन) विधेयक, 2025 की धारा 45B एक महत्वपूर्ण बदलाव प्रस्तुत करती है, जिसमें अधिवक्ताओं के लिए वित्तीय दायित्व का प्रावधान किया गया है। हालाँकि, इसकी व्यापक और अस्पष्ट प्रकृति अधिवक्ताओं के खिलाफ अत्यधिक मुकदमेबाजी को बढ़ावा दे सकती है और उनकी स्वतंत्रता को बाधित कर सकती है। इसलिए, इस प्रावधान को परिष्कृत करने की आवश्यकता है ताकि जवाबदेही और कानूनी स्वायत्तता के बीच संतुलन बना रहे।
लेखक का मत है कि इस प्रावधान को कानून का रूप नहीं दिया जाना चाहिए, क्योंकि इससे कानूनी पेशे पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
लेखक
(रजत राजन सिंह)
अधिवक्ता
इलाहाबाद उच्च न्यायालय, लखनऊ