राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने आज राष्ट्रपति भवन में आयोजित एक समारोह में न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई को भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश (CJI) के रूप में शपथ दिलाई। न्यायमूर्ति गवई का कार्यकाल 23 नवम्बर 2025 तक रहेगा। उनके इस पद पर आसीन होने से एक ऐतिहासिक उपलब्धि भी जुड़ गई है—वह इस सर्वोच्च संवैधानिक पद तक पहुँचने वाले पहले बौद्ध और केवल दूसरे दलित न्यायाधीश हैं। इससे पहले न्यायमूर्ति के.जी. बालकृष्णन ने यह पद संभाला था, जो वर्ष 2010 में सेवानिवृत्त हुए थे।
महाराष्ट्र के अमरावती में 24 नवम्बर 1960 को जन्मे न्यायमूर्ति गवई ने 1985 में वकालत प्रारंभ की थी। वर्ष 2003 में उन्हें बॉम्बे हाईकोर्ट में न्यायाधीश नियुक्त किया गया, और 2019 में वह सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नत हुए। अपने न्यायिक करियर के दौरान उन्होंने कई महत्वपूर्ण निर्णयों में भागीदारी की, जिनमें अनुच्छेद 370 की समाप्ति और नोटबंदी से संबंधित फैसले उल्लेखनीय हैं।
सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम का नया स्वरूप
मुख्य न्यायाधीश के रूप में न्यायमूर्ति गवई की नियुक्ति के साथ ही सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की संरचना में भी परिवर्तन हुआ है। कॉलेजियम वह निकाय है जो सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्टों के जजों की नियुक्ति और ट्रांसफर की सिफारिश करता है।

वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम में निम्नलिखित सदस्य शामिल हैं:
- मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई
- न्यायमूर्ति सूर्यकांत
- न्यायमूर्ति ए. एस. ओका (24 मई 2025 को सेवानिवृत्त हो रहे हैं)
- न्यायमूर्ति विक्रम नाथ
सामान्यतः कॉलेजियम में मुख्य न्यायाधीश के साथ शीर्ष दो वरिष्ठतम न्यायाधीश ही शामिल होते हैं, परन्तु चूंकि न्यायमूर्ति ए.एस. ओका आगामी 10 दिनों में सेवानिवृत्त होने वाले हैं, ऐसे में वरिष्ठता क्रम में अगले न्यायाधीश—न्यायमूर्ति विक्रम नाथ—को भी कॉलेजियम में शामिल किया गया है।
इस प्रकार न्यायिक नियुक्तियों से जुड़ी शीर्ष संस्था, कॉलेजियम, अब इस नए स्वरूप में कार्य करेगी।