दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि केवल बाजार दर (market rent) पर किराये की वसूली के लिए दायर किया गया सिविल मुकदमा (Civil Suit) विचारणीय है, बशर्ते उसमें किरायेदार की बेदखली (Eviction) की मांग न की गई हो। कोर्ट ने कहा कि ऐसा मुकदमा दिल्ली रेंट कंट्रोल एक्ट, 1958 (DRC Act) की धारा 50 के तहत वर्जित नहीं है।
जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल और जस्टिस हरीश वैद्यनाथन शंकर की खंडपीठ ने एकल न्यायाधीश (Single Judge) के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) के आदेश VII नियम 11 के तहत वाद पत्र (plaint) को खारिज कर दिया गया था।
कोर्ट ने कहा कि DRC एक्ट की धारा 4, 6 और 9 को असंवैधानिक घोषित किए जाने के बाद मानक किराया (standard rent) तय करने के संबंध में एक “वैधानिक शून्यता” (statutory vacuum) उत्पन्न हो गई है। ऐसे में, जहाँ कानून में कोई उपचार उपलब्ध नहीं है, वहाँ बाजार दर पर किराये के दावों को निपटाने का सिविल कोर्ट का क्षेत्राधिकार पूर्ण (plenary) बना रहता है।
मामले की पृष्ठभूमि
यह अपील आत्माराम बिल्डर्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम एम्बेसी रेस्टोरेंट और अन्य के मामले में दायर की गई थी। अपीलकर्ता (मकान मालिक) ने कनॉट प्लेस, नई दिल्ली के डी ब्लॉक स्थित अपनी संपत्ति के संबंध में वर्ष 2006 में एक मुकदमा (CS(OS) No. 1971/2006) दायर किया था। इस संपत्ति का भूतल और मेजेनाइन फ्लोर 1947 में प्रतिवादी (एम्बेसी रेस्टोरेंट) को किराये पर दिया गया था और अंतिम agreed किराया लगभग 312.69 रुपये प्रति माह था।
अपीलकर्ता ने 10 लाख रुपये प्रति माह की बाजार दर से किराये की वसूली के लिए मुकदमा दायर किया। उनका तर्क था कि रघुनंदन सरन अशोक सरन (HUF) बनाम भारत संघ (2002) मामले में दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा DRC एक्ट की धारा 4, 6 और 9 को रद्द कर दिया गया था, जो मानक किराये से संबंधित थीं।
16 मार्च 2012 को एकल न्यायाधीश ने CPC के आदेश VII नियम 11(d) के तहत वाद पत्र को खारिज कर दिया था। एकल न्यायाधीश का मानना था कि किराये में वृद्धि DRC एक्ट की धारा 6A द्वारा शासित होती है और यह मामला धारा 50 के तहत रेंट कंट्रोलर के विशेष क्षेत्राधिकार में आता है।
पक्षों की दलीलें
अपीलकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता श्री रमेश सिंह ने तर्क दिया कि आदेश VII नियम 11 के तहत रोक तभी लागू होती है जब वाद पत्र को पढ़ने से ही मुकदमा किसी कानून द्वारा वर्जित प्रतीत हो। उन्होंने कहा कि चूंकि धारा 4, 6 और 9 को रद्द कर दिया गया है, इसलिए उचित किराया निर्धारित करने और वसूलने के लिए कोई वैधानिक रोक नहीं है। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि DRC एक्ट की धारा 6A केवल ‘सहमत किराये’ (agreed rent) के संशोधन से संबंधित है, जो उचित किराये के निर्धारण से अलग है।
दूसरी ओर, प्रतिवादियों के वकील ने तर्क दिया कि मुकदमा DRC एक्ट की धारा 50 द्वारा वर्जित है, क्योंकि किराये का निर्धारण रेंट कंट्रोलर के विशेष क्षेत्राधिकार में आता है। उनका कहना था कि भले ही मानक किराये के प्रावधान रद्द कर दिए गए हों, लेकिन किराये में संशोधन से संबंधित धारा 6A अभी भी कानून में मौजूद है।
कोर्ट का विश्लेषण और टिप्पणियाँ
खंडपीठ ने वैधानिक योजना और रघुनंदन सरन के फैसले के प्रभाव का परीक्षण किया। कोर्ट ने नोट किया कि DRC एक्ट की धारा 2(k) ‘मानक किराये’ को धारा 6 के संदर्भ में परिभाषित करती है, जिसे रद्द किया जा चुका है। इसके अलावा, धारा 9, जो रेंट कंट्रोलर को मानक किराया तय करने का अधिकार देती थी, वह भी अब कानून की किताबों में नहीं है।
इस कानूनी स्थिति पर टिप्पणी करते हुए कोर्ट ने कहा:
“परिणामस्वरूप, एक वैधानिक शून्यता (statutory vacuum) उत्पन्न हो गई है, जिससे मकान मालिक इस अनिश्चितता की स्थिति में हैं कि कार्यवाही शुरू करने के लिए उचित मंच कौन सा है, विशेष रूप से इस तथ्य को देखते हुए कि DRC एक्ट की धारा 9 को भी रद्द कर दिया गया है।”
पीठ ने बताया कि धारा 6A हर तीन साल में किराये में 10% की वृद्धि की परिकल्पना करती है। लेकिन धारा 9 के रद्द होने के बाद किराया तय करने के लिए कोई तंत्र नहीं बचा है, इसलिए अधिनियम धारा 6A के विशिष्ट प्रावधानों से परे बढ़ा हुआ किराया निर्धारित करने की प्रक्रिया प्रदान नहीं करता है।
सिविल कोर्ट के क्षेत्राधिकार के संबंध में, पीठ ने सुप्रीम कोर्ट के धुलाभाई और अन्य बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य के फैसले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि सिविल कोर्ट का क्षेत्राधिकार केवल तभी बाहर होता है जब विशेष न्यायाधिकरण के पास वह सब करने की शक्ति हो जो सिविल कोर्ट आमतौर पर करता है।
कोर्ट ने कहा कि वादी द्वारा मांगी गई राहत—बाजार दर पर किराये की वसूली—रेंट कंट्रोलर के अधिकार क्षेत्र में नहीं आती है। पीठ ने कहा:
“मुकदमे की प्रार्थनाओं (prayers) के अवलोकन से यह पूरी तरह स्पष्ट है कि वादी ने किरायेदार की बेदखली की मांग नहीं की है। इन दो मुकदमों में दावा की गई राहत केवल बाजार किराये की वसूली तक सीमित है, जो DRC अधिनियम के तहत नियुक्त रेंट कंट्रोलर के अधिकार क्षेत्र में नहीं आती है।”
कोर्ट ने आगे स्पष्ट किया कि क्या वादी बाजार दर पर किराये का हकदार है या केवल धारा 6A के तहत बढ़े हुए किराये का, यह सुनवाई (trial) का विषय है:
“क्या वादी बाजार किराये का हकदार है या केवल DRC अधिनियम की धारा 6A के अनुसार बढ़े हुए किराये का, यह एक ऐसा मामला है जिसे केवल ट्रायल के बाद ही निर्धारित किया जा सकता है। जैसा कि पहले ही नोट किया गया है, इन परिस्थितियों में, DRC अधिनियम की धारा 50 के तहत रोक आकर्षित नहीं होती है।”
फैसला
हाईकोर्ट ने अपील स्वीकार कर ली और 16 मार्च 2012 के आक्षेपित फैसले (Impugned Judgment) को रद्द कर दिया। मुकदमा संख्या CS(OS) 1971/2006 को उसके मूल नंबर पर बहाल कर दिया गया है। पक्षों को 15 जनवरी 2026 को एकल न्यायाधीश (रोस्टर बेंच) के समक्ष उपस्थित होने का निर्देश दिया गया है।
केस डीटेल्स:
केस टाइटल: आत्माराम बिल्डर्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम एम्बेसी रेस्टोरेंट और अन्य
केस नंबर: RFA(OS) 53/2012
कोरम: जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल और जस्टिस हरीश वैद्यनाथन शंकर

