अलीगढ़ की अपर जिला एवं सत्र न्यायालय (एडीजे) ने अखिलेश नामक व्यक्ति को अपनी पत्नी सावित्री की हत्या के मामले में दोषी ठहराते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई है। यह फैसला इसलिए खास है क्योंकि इसमें मुख्य आधार आरोपी के पाँच वर्षीय बेटे की गवाही रही, जिसने अदालत में मासूमियत से सच बयान किया और पिता की उपस्थिति साबित की। अदालत ने पाँच गवाहों के hostile (शत्रुतापूर्ण) हो जाने के बावजूद बच्चे की गवाही को विश्वसनीय माना और सजा सुनाई।
मामले की पृष्ठभूमि:
यह घटना 10 फरवरी 2022 की है, जब अलीगढ़ ज़िले के गभाना क्षेत्र स्थित घर में 32 वर्षीय सावित्री मृत पाई गई थीं। उनके भाई राम अवतार ने यह शिकायत दर्ज कराई कि बहन के ससुराल वालों ने सूचित किया था कि सावित्री ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। लेकिन पुलिस के पहुँचने पर शव ज़मीन पर पाया गया, जिससे हत्या की आशंका हुई। पोस्टमार्टम में गला दबाकर हत्या की पुष्टि हुई और शरीर पर कई चोटों के निशान मिले। इसके बाद पुलिस ने अखिलेश को गिरफ्तार किया, जो बाद में ज़मानत पर रिहा हो गया।
पक्षों के तर्क:
मुकदमे के दौरान अभियोजन पक्ष के 13 में से 5 गवाह, जिनमें मुख्य शिकायतकर्ता राम अवतार भी शामिल थे, hostile हो गए, जिससे अभियोजन पक्ष को बड़ा झटका लगा।
बचाव पक्ष (डिफेंस) ने दलील दी कि घटना के समय अखिलेश मध्यप्रदेश में था और घटना की खबर मिलने के बाद ही लौटा था। साथ ही, उन्होंने यह भी कहा कि सावित्री “जिद्दी स्वभाव” की थीं और मध्यप्रदेश न ले जाने से नाराज़ थीं। इस पक्ष को hostile हुए अभियोजन गवाहों और बचाव गवाहों ने समर्थन दिया।

अदालत का विश्लेषण:
इस पूरे मुकदमे में निर्णायक भूमिका बच्चे की गवाही ने निभाई। बयान दर्ज करने से पहले अदालत ने यह सुनिश्चित किया कि बच्चा सत्य बोलने की समझ रखता है। उसने अदालत में कहा, “मुझे पता है कि सच बात बोलनी चाहिए, झूठ नहीं बोलना चाहिए। झूठ बोलने से भगवान नाराज़ हो जाते हैं…”
बच्चे ने बताया कि घटना की रात माँ ने भिंडी की सब्ज़ी बनाई थी, जो उसने, भाइयों ने और पिता ने खाई थी। अगले दिन सुबह भी उसी सब्ज़ी को उसने और पिता ने खाया। उसने कहा, “पापा रोज़ पेंट बेचने गभाना जाते थे, उस दिन भी गए थे। सुबह 5 बजे निकलते थे और 10 बजे तक लौट आते थे।”
अदालत ने अपने फैसले में लिखा, “बाल गवाह की गवाही से स्पष्ट है कि आरोपी अखिलेश घटना के समय मध्यप्रदेश में नहीं, बल्कि घर पर मौजूद था, जो कि hostile गवाहों और बचाव पक्ष की गवाही के विपरीत है। वहीं, बच्चे की जिरह में कोई विरोधाभास या कमजोर कड़ी सामने नहीं आई।”
अदालत का निर्णय:
अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश संजय कुमार यादव ने अखिलेश को भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत दोषी पाते हुए उम्रकैद और ₹20,000 जुर्माने की सजा सुनाई। फैसले के साथ ही अखिलेश को ज़मानत से रद्द कर जेल भेज दिया गया।
इसके अलावा अदालत ने मुख्य शिकायतकर्ता और मृतका के भाई राम अवतार के खिलाफ झूठी गवाही (धारा 193 आईपीसी) के तहत मामला दर्ज करने के आदेश दिए।
अभियोजन पक्ष के वकील जेपी राजपूत ने कहा, “पाँच साल के बेटे की गवाही ने साबित किया कि उसके पिता घटना के समय घर पर थे। इसी गवाही के चलते अदालत ने दोष सिद्ध माना।” वर्तमान में मृतका और आरोपी के तीनों बच्चे अपनी नानी के साथ रह रहे हैं।