पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने आईएनएक्स मीडिया मामले में उनके खिलाफ लगाए गए धन शोधन के आरोपों की वैधता को चुनौती देते हुए दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। चिदंबरम की कानूनी टीम का तर्क है कि ट्रायल कोर्ट ने धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत उन पर मुकदमा चलाने के लिए अपेक्षित मंजूरी के बिना आरोपपत्र पर गलत तरीके से संज्ञान लिया।
चिदंबरम का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ वकील एन हरिहरन ने इस बात पर जोर दिया कि जिस समय कथित अपराध किए गए थे, उस समय चिदंबरम एक लोक सेवक थे, इसलिए आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) और पीएमएलए के प्रावधानों के अनुसार अभियोजन के लिए मंजूरी लेना आवश्यक था। उनका तर्क है कि आगे बढ़ने से पहले इस मंजूरी को हासिल न करने में ट्रायल कोर्ट की लापरवाही आरोपों के संज्ञान को अमान्य बनाती है।
15 मई, 2017 को सीबीआई द्वारा प्रारंभिक फाइलिंग के बाद से ही यह मामला जांच के दायरे में है, जिसमें 2007 के दौरान आईएनएक्स मीडिया को दी गई विदेशी निवेश संवर्धन बोर्ड (एफआईपीबी) की मंजूरी में अनियमितताओं के आरोप शामिल हैं, जो वित्त मंत्री के रूप में चिदंबरम के कार्यकाल के दौरान ही दी गई थी। कथित तौर पर इस मंजूरी से विदेशी फंडों से 305 करोड़ रुपये की आमद हुई।
आईएनएक्स मीडिया भ्रष्टाचार मामले के सिलसिले में चिदंबरम को 21 अगस्त, 2019 को सीबीआई द्वारा और उसके बाद 16 अक्टूबर, 2019 को संबंधित मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपों के लिए प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा गिरफ्तार किया गया था।
न्यायमूर्ति मनोज कुमार ओहरी के समक्ष दलील देते हुए, जो 28 नवंबर को मामले की सुनवाई करने वाले हैं, हरिहरन ने वकीलों अर्शदीप सिंह खुराना और अक्षत गुप्ता के साथ कहा कि 24 मार्च, 2021 को बिना पूर्व मंजूरी के ईडी की चार्जशीट पर संज्ञान लेने का ट्रायल कोर्ट का फैसला प्रक्रियात्मक रूप से त्रुटिपूर्ण था। चिदंबरम के वकील द्वारा प्रस्तुत याचिका में न केवल संज्ञान को रद्द करने की मांग की गई है, बल्कि आरोपों से संबंधित सभी परिणामी कार्यवाही को भी रद्द करने की मांग की गई है।
यह कानूनी कदम दिल्ली हाईकोर्ट में चिदंबरम के लिए हाल ही में मिली सफलता के बाद उठाया गया है, जहां ईडी द्वारा आरोपपत्र के संज्ञान के संबंध में इसी तरह की चुनौती के बाद एयरसेल-मैक्सिस मामले में उनके खिलाफ कार्यवाही रोक दी गई थी।