यौन अपराध मामलों में पीड़िता से सटीक विवरण की आवश्यकता नहीं: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने POCSO मामले में दोषसिद्धि को बरकरार रखा

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने 75 वर्षीय मुकुंदराव सरजारे की दोषसिद्धि को बरकरार रखते हुए स्पष्ट किया है कि यौन अपराध मामलों में पीड़िता की गवाही में हर विवरण का सटीक होना आवश्यक नहीं है, बशर्ते कि वह विश्वसनीय और सुसंगत हो।

मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति रविंद्र कुमार अग्रवाल की खंडपीठ ने विशेष फास्ट ट्रैक कोर्ट (POCSO), राजनांदगांव द्वारा दिए गए फैसले के खिलाफ दायर अपराध अपील संख्या 358/2022 को खारिज कर दिया। ट्रायल कोर्ट ने अभियुक्त को भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 342 (ग़लत तरीके से बंधक बनाना) और धारा 506 भाग II (आपराधिक धमकी) के अलावा POCSO अधिनियम की धारा 6 (गंभीर लैंगिक हमला) के तहत दोषी ठहराया था। उसे आजीवन कठोर कारावास और ₹2,000 के जुर्माने की सजा सुनाई गई थी।

मामले की पृष्ठभूमि

अभियोजन पक्ष के अनुसार, 19 मार्च 2021 को पीड़िता के पिता ने थाना चिल्हाटी, जिला राजनांदगांव में शिकायत दर्ज कराई थी कि आरोपी ने उनकी 10 वर्षीय बेटी को बहला-फुसलाकर अपने घर बुलाया, उसे कैद किया और उसके साथ दुष्कर्म किया। पुलिस ने अपराध क्रमांक 13/2021 के तहत मामला दर्ज कर IPC की धारा 342, 376AB, 506 और POCSO अधिनियम की धारा 4 व 6 के तहत आरोपी पर आरोप लगाए।

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न्यायालय में कार्यवाही

मुकदमे के दौरान, पीड़िता (PW-3) ने अदालत में गवाही दी कि आरोपी ने जबरदस्ती उसके कपड़े उतारे, उसका मुंह बंद किया और उसके साथ बलात्कार किया। अभियोजन पक्ष ने 12 गवाह प्रस्तुत किए, जिनमें पीड़िता के पिता (PW-1), माता (PW-2) और मौसी (PW-6) शामिल थे, जिन्होंने आंशिक रूप से अपराध को देखा था। पीड़िता का जन्म प्रमाणपत्र और स्कूल के दस्तावेजों से यह पुष्टि हुई कि घटना के समय उसकी उम्र 12 वर्ष से कम थी।

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अदालत की टिप्पणियां

हाईकोर्ट ने यौन अपराध मामलों में पीड़िता की गवाही की विश्वसनीयता पर चर्चा करते हुए सुप्रीम कोर्ट के कई पूर्व निर्णयों का हवाला दिया। अदालत ने कहा:

“जब किसी यौन अपराध की पीड़िता के साक्ष्य पर विचार किया जाता है, तो न्यायालय को घटना का लगभग सटीक विवरण देने की आवश्यकता नहीं होती। बल्कि, यह महत्वपूर्ण है कि पीड़िता अपनी याददाश्त के अनुसार घटना का वर्णन करे, जितना उसके लिए संभव हो।”

अदालत ने यह भी कहा कि किसी बच्चे की गवाही में मामूली विसंगतियां आरोपों को कमजोर नहीं करतीं, विशेषकर जब वे चिकित्सा और दस्तावेजी साक्ष्यों द्वारा समर्थित हों। मेडिकल रिपोर्ट में डॉ. तेजल कुरहड़े (PW-8) ने पीड़िता के जननांगों पर सूजन और लालिमा की पुष्टि की, जो पीड़िता की गवाही के अनुरूप था। इसके अलावा, फॉरेंसिक साक्ष्य भी अभियोजन के पक्ष में रहे।

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बचाव पक्ष की दलीलें और अदालत का निर्णय

बचाव पक्ष की अधिवक्ता इतु रानी मुखर्जी ने तर्क दिया कि अभियोजन पक्ष बलात्कार के आरोप को पूरी तरह साबित करने में विफल रहा, क्योंकि पीड़िता के बयानों में विरोधाभास था और कोई निर्णायक चिकित्सीय प्रमाण नहीं था। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि अभियोजन पक्ष पीड़िता की उम्र को साबित करने में असफल रहा।

हालांकि, हाईकोर्ट ने इन दलीलों को खारिज करते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष ने पीड़िता की उम्र और आरोपी की संलिप्तता को संदेह से परे साबित कर दिया है। राज्य सरकार की ओर से पैनल अधिवक्ता नितांश जायसवाल ने प्रभावी ढंग से बचाव पक्ष के तर्कों का खंडन किया और अदालत को आश्वस्त किया कि पीड़िता की गवाही विश्वसनीय, सुसंगत और दोषसिद्धि के लिए पर्याप्त थी।

अंतिम निर्णय

हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखते हुए कहा कि बाल यौन अपराध के मामलों में किसी प्रकार की नरमी नहीं बरती जा सकती। अदालत ने दोहराया कि POCSO अधिनियम नाबालिगों को यौन अपराधों से बचाने के लिए कठोर दंड का प्रावधान करता है और न्यायालयों को साक्ष्यों का मूल्यांकन करते समय पीड़िता-केंद्रित दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।

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अपील को खारिज करते हुए, अदालत ने अभियुक्त को आजीवन कारावास की सजा भुगतने का आदेश दिया। साथ ही, जेल अधीक्षक को निर्देश दिया कि वह अभियुक्त को उसके सुप्रीम कोर्ट में अपील करने के अधिकार की जानकारी दे।

विधिक मिसालें

हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के निम्नलिखित फैसलों पर भरोसा किया:

  • राय संदीप @ दीनू बनाम दिल्ली राज्य (2012) – जिसमें कहा गया कि पीड़िता की विश्वसनीय और सुसंगत गवाही दोषसिद्धि के लिए पर्याप्त है।
  • नवाबुद्दीन बनाम उत्तराखंड राज्य (2022) – जिसमें स्पष्ट किया गया कि POCSO मामलों में नरमी नहीं दी जा सकती।
  • उत्तर प्रदेश राज्य बनाम सोनू कुशवाहा (2023) – जिसमें कहा गया कि POCSO अधिनियम न्यूनतम अनिवार्य सजा का प्रावधान करता है और इसमें न्यायिक विवेकाधिकार सीमित है।

इस निर्णय के साथ, हाईकोर्ट ने बाल यौन अपराध मामलों में सख्त रुख अपनाने की जरूरत को दोहराया।

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