छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने बिलासपुर-मुंगेली रोड पर मणियारी नदी के ऊपर बने एक महत्वपूर्ण पुल की “दयनीय” और “खतरनाक रूप से उपेक्षित” स्थिति को लेकर राज्य के अधिकारियों को फटकार लगाई है। 28 मार्च 2025 को हरिभूमि में प्रकाशित एक समाचार रिपोर्ट का स्वत: संज्ञान लेते हुए कोर्ट ने जनहित याचिका (WPPIL No. 40 of 2025) दर्ज कर जिम्मेदारी तय करने और त्वरित कार्रवाई की मांग की है।
मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति रविंद्र कुमार अग्रवाल की खंडपीठ ने राज्य सरकार को कड़े निर्देश जारी करते हुए चिंता जताई कि “ऐसा प्रतीत होता है कि अधिकारीगण किसी दुर्घटना के होने का ही इंतज़ार कर रहे हैं।”
मामला क्या है?
यह जनहित याचिका हरिभूमि में छपी रिपोर्ट “जर्जर पुल पर मौत बनकर दौड़ रहे भारी वाहन” पर आधारित है, जिसमें पुल की खस्ताहाल स्थिति का खुलासा किया गया। रिपोर्ट के साथ प्रकाशित तस्वीरों में पुल के दोनों किनारों पर गहरे गड्ढे और पाइपलाइन से हो रहे जलभराव को दिखाया गया है।

समाचार के अनुसार, यह पुल बहुत संकरा और जर्जर हालत में है, फिर भी भारी वाहन जैसे ट्रक और बसें इस पर नियमित रूप से गुजरती हैं, जिससे रोज़ाना जाम की स्थिति बनती है। रिपोर्ट में पिछले साल एक छात्र की दुर्घटनावश मृत्यु का भी उल्लेख है, जो इन्हीं खराब हालात की वजह से हुई थी।
स्थानीय नागरिकों और जनप्रतिनिधियों द्वारा बार-बार शिकायतों के बावजूद—जिनमें नगर पंचायत बरेला के अध्यक्ष और मुख्य नगरपालिका अधिकारी के बयान भी शामिल हैं—अब तक कोई प्रभावी कदम नहीं उठाया गया।
कोर्ट के समक्ष उठे अहम कानूनी सवाल:
- सरकारी निष्क्रियता: जब अधिकारियों को पुल की खराब स्थिति का प्रत्यक्ष अनुभव है, तो अब तक मरम्मत क्यों नहीं करवाई गई?
- जन सुरक्षा बनाम प्रशासनिक लापरवाही: क्या राज्य सरकार और अधिक जानें जाने का इंतज़ार कर रही है?
- उत्तरदायित्व और सार्वजनिक धन का उपयोग: इस पुल की मरम्मत पर अब तक कितना खर्च हुआ?
- मुआवज़ा: क्या अब तक पुल से संबंधित किसी भी दुर्घटना में मारे गए/घायल लोगों को मुआवज़ा मिला है?
कोर्ट की टिप्पणियाँ और निर्देश:
खंडपीठ ने अपने आदेश में तीखी टिप्पणी करते हुए कहा:
“यह अत्यंत आश्चर्यजनक है कि बिलासपुर और मुंगेली को जोड़ने वाले मुख्य मार्ग पर स्थित इस पुल की स्थिति के बावजूद अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई… यदि समय रहते कदम उठाया गया होता, तो पुल की हालत इतनी नहीं बिगड़ती… जितनी देर होगी, मरम्मत का खर्च उतना ही बढ़ेगा, जिसका बोझ राज्य के खजाने पर पड़ेगा।”
कोर्ट ने यह भी कहा कि सभी विभागीय अधिकारी इस पुल से रोज़ गुजरते हैं और स्थिति से भली-भांति परिचित हैं, फिर भी किसी तरह की तत्परता नहीं दिखाई गई।
कोर्ट ने इन बिंदुओं पर मांगा व्यक्तिगत हलफनामा:
छत्तीसगढ़ सरकार के लोक निर्माण विभाग के सचिव को व्यक्तिगत रूप से हलफनामा दाखिल कर इन प्रश्नों के उत्तर देने को कहा गया है:
- यह खतरनाक स्थिति कितने समय से बनी हुई है?
- अब तक मरम्मत के लिए क्या कदम उठाए गए हैं?
- पुल के निर्माण के बाद से अब तक कितना धन मरम्मत पर खर्च हुआ है?
- क्या किसी दुर्घटना पीड़ित को मुआवज़ा प्रदान किया गया है?
इस मामले की अगली सुनवाई 15 अप्रैल 2025 को निर्धारित की गई है।
हालांकि याचिका कोर्ट द्वारा स्वत: संज्ञान लेकर प्रारंभ की गई है, लेकिन इसने प्रभावी रूप से छत्तीसगढ़ राज्य (मुख्य सचिव के माध्यम से), लोक निर्माण विभाग, लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग और बिलासपुर ज़िला प्रशासन को जवाबदेह प्रतिवादी बना दिया है।