छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने रायपुर जिले में सार्वजनिक बुनियादी ढांचे की गंभीर उपेक्षा पर स्वत: संज्ञान लिया है और राज्य के अधिकारियों को उनकी “सुस्ती और उदासीनता” के लिए कड़ी फटकार लगाई है। कोर्ट का यह हस्तक्षेप कई समाचार रिपोर्टों के बाद आया, जिनमें सार्वजनिक पार्कों की जर्जर हालत, अवैध अतिक्रमण और खतरनाक शहरी संरचना की स्थिति को उजागर किया गया था।
मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति रवींद्र कुमार अग्रवाल की खंडपीठ ने राज्य और नगर निगम के अधिकारियों की नाकामी पर तीखी टिप्पणी करते हुए कहा:
“जिम्मेदार अधिकारियों ने नागरिक बुनियादी ढांचे के पतन को नजरअंदाज कर दिया है। सार्वजनिक उपयोगिताओं, पार्कों और सड़कों की स्थिति प्रशासनिक लापरवाही को दर्शाती है।”
कोर्ट ने छत्तीसगढ़ सरकार के शहरी प्रशासन एवं विकास विभाग के सचिव को निर्देश दिया कि वे एक व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल कर बताएं कि इस मामले में क्या कदम उठाए गए हैं। मामले की अगली सुनवाई 6 फरवरी 2025 को होगी।
मामले की पृष्ठभूमि
यह स्वत: संज्ञान जनहित याचिका (डब्ल्यूपीपीआईएल संख्या 22/2025) ‘पत्रिका एक्सपोज़’ में 31 जनवरी 2025 को प्रकाशित रिपोर्टों के आधार पर दर्ज की गई थी, जिसमें शहर से जुड़ी तीन प्रमुख समस्याओं पर प्रकाश डाला गया:
1. गांधी बाल उद्यान: खस्ताहाल खेल का मैदान
एक रिपोर्ट में गांधी बाल उद्यान की दयनीय स्थिति उजागर की गई, जो बच्चों के मनोरंजन और फिटनेस के लिए बनाया गया था। रिपोर्ट में बताया गया:
जर्जर और जंग लगे व्यायाम उपकरण, जिससे बच्चों को खतरा हो सकता है।
टूटीफूटी झूले, बेकार पड़ी फिटनेस मशीनें, जिनकी महीनों से कोई मरम्मत नहीं हुई।
नगर निगम द्वारा लगातार अनदेखी, जबकि नागरिक कई बार शिकायत कर चुके थे।
कोर्ट ने सार्वजनिक मनोरंजन स्थलों के रखरखाव में स्थानीय प्रशासन की विफलता पर गहरी चिंता जताई।
2. बीरगांव में अवैध अतिक्रमण
एक अन्य रिपोर्ट में बीरगांव नगर निगम क्षेत्र में बेतहाशा अतिक्रमण की ओर ध्यान दिलाया गया, जिससे:
सरकारी जमीन पर अवैध कब्जे से भारी ट्रैफिक जाम की स्थिति बनी हुई है।
अतिक्रमण क्षेत्रों में असामाजिक गतिविधियों और नशाखोरी जैसी आपराधिक गतिविधियों में बढ़ोतरी हो रही है।
लाखों रुपये के सार्वजनिक वृक्षारोपण प्रोजेक्ट नष्ट कर दिए गए हैं।
हालांकि नगर निगम को बारबार शिकायतें दी गई थीं, लेकिन प्रशासन ने कोई कड़ा कदम नहीं उठाया।
3. मावा अंडरब्रिज: एक खतरनाक सार्वजनिक स्थल
तीसरी रिपोर्ट में मावा अंडरब्रिज की भयावह स्थिति को उजागर किया गया, जहां:
लगातार जलभराव और कूड़े के ढेर ने इसे पैदल यात्रियों और वाहनों के लिए असुरक्षित बना दिया है।
टूटीफूटी संरचना और सुरक्षा उपायों की कमी से दुर्घटनाओं का खतरा बढ़ गया है।
ट्रैफिक मिरर, जो ड्राइवरों की सहायता के लिए लगाया गया था, गिर गया और महीनों से बदला नहीं गया।
कोर्ट ने नागरिक प्रशासन की लापरवाही को गंभीर खतरा बताया और तत्काल सुधारात्मक उपाय करने के निर्देश दिए।
जनहित याचिका में उठाए गए कानूनी मुद्दे
1. सार्वजनिक बुनियादी ढांचे के रखरखाव में नगर निगम की जिम्मेदारी
संविधान के अनुच्छेद 243W के तहत, नगर निगमों को शहरी योजना, स्वच्छता और सार्वजनिक स्थलों के रखरखाव की जिम्मेदारी दी गई है। याचिका में पूछा गया कि इन बुनियादी जिम्मेदारियों की अनदेखी क्यों की जा रही है।
2. स्वच्छ और सुरक्षित पर्यावरण का अधिकार
कोर्ट ने अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) का हवाला देते हुए कहा कि स्वच्छ और सुरक्षित पर्यावरण नागरिकों का मौलिक अधिकार है।
म्युनिसिपल काउंसिल, रतलाम बनाम वर्दीचन (1980) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि स्थानीय निकायों को सार्वजनिक स्वास्थ्य और स्वच्छता सुनिश्चित करनी चाहिए।
3. अवैध अतिक्रमण पर कार्रवाई करने में विफलता
याचिका में बताया गया कि सार्वजनिक भूमि पर अनधिकृत कब्जे से अपराध बढ़ रहे हैं। कोर्ट ने सवाल किया कि क्यों केवल नोटिस जारी किए गए, लेकिन उन्हें लागू नहीं किया गया। कोर्ट ने चेतावनी दी कि लापरवाह अधिकारियों पर सख्त कार्रवाई की जाएगी।
कोर्ट की टिप्पणियां और निर्देश
सुनवाई के दौरान, राज्य सरकार के अतिरिक्त महाधिवक्ता वाई.एस. ठाकुर और विवेक शर्मा ने स्वीकार किया कि मावा अंडरब्रिज की सफाई का कार्य शुरू हो चुका है, लेकिन विस्तृत जवाब देने के लिए और समय मांगा।
बीरगांव नगर निगम के वकील सतीश गुप्ता ने अदालत को बताया कि अतिक्रमणकारियों को नोटिस जारी किए गए हैं और सात दिनों के भीतर कार्रवाई की जाएगी।
लेकिन कोर्ट इस जवाब से असंतुष्ट दिखी और टिप्पणी की:
“अभी हाल ही में, 30 जनवरी 2025 को, पूरे देश ने महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि दी। गांधीजी ने स्वच्छता को जीवन का अभिन्न अंग माना था। लेकिन गांधी बाल उद्यान और मावा अंडरब्रिज की स्थिति प्रशासन की उपेक्षा को दर्शाती है।”
अंतिम निर्देश:
1. छत्तीसगढ़ सरकार के शहरी प्रशासन एवं विकास विभाग के सचिव को यह स्पष्ट करने के लिए एक व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करना होगा कि इन समस्याओं के समाधान के लिए क्या कदम उठाए गए हैं।
2. मामले की अगली सुनवाई 6 फरवरी 2025 को होगी।
3. यदि संतोषजनक कार्रवाई नहीं की गई, तो अदालत लापरवाह अधिकारियों के खिलाफ कड़े आदेश और दंडात्मक कार्रवाई कर सकती है।