‘सरकार की इच्छा से’ पद पर कार्यरत पदाधिकारी को बिना कारण या नोटिस के कभी भी हटाया जा सकता है: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में छत्तीसगढ़ राज्य अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की बर्खास्तगी को सही ठहराया है। कोर्ट ने कहा कि सरकार की इच्छा के अधीन नियुक्त व्यक्तियों को किसी भी समय बिना नोटिस, कारण या सुनवाई के हटाया जा सकता है। यह फैसला जस्टिस बिभु दत्ता गुरु ने डब्ल्यूपीसी संख्या 206/2024 में सुनाया, जिसमें नई सरकार द्वारा उनकी बर्खास्तगी को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया गया।  

मामले की पृष्ठभूमि  

इस मामले में चार याचिकाकर्ता—भानु प्रताप सिंह (अध्यक्ष), गणेश ध्रुव, अमृत लाल टोप्पो और अर्चना पोर्टे (सदस्य)—शामिल थे, जिन्हें 16 जुलाई 2021 को पिछली सरकार ने छत्तीसगढ़ राज्य अनुसूचित जनजाति आयोग में नियुक्त किया था। ये नियुक्तियां छत्तीसगढ़ राज्य अनुसूचित जनजाति आयोग (संशोधन) अधिनियम, 2020 की धारा 3 के तहत हुई थीं, जिसमें कहा गया है कि अध्यक्ष और सदस्य “राज्य सरकार की इच्छा के अधीन” पद पर रहेंगे।  

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हालांकि, 2023 के विधानसभा चुनावों के बाद नई सरकार ने 15 दिसंबर 2023 को एक आदेश जारी कर राजनीतिक नियुक्तियों को हटाने का निर्देश दिया। इसी आदेश के तहत याचिकाकर्ताओं को भी उसी दिन बिना कोई नोटिस या सुनवाई के उनके पद से हटा दिया गया।  

कानूनी मुद्दे और दलीलें  

याचिकाकर्ताओं की दलीलें  

याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता के. रोहन ने तर्क दिया कि:  

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1. हटाने का फैसला 2020 अधिनियम की धारा 4(3) का उल्लंघन करता है, जिसमें कहा गया है कि किसी सदस्य को हटाने के लिए दिवालियापन, आपराधिक दोषसिद्धि, मानसिक अक्षमता या दुराचार जैसे कारण होने चाहिए।  

2. धारा 4(3) में यह भी प्रावधान है कि बर्खास्तगी से पहले सुनवाई का अवसर दिया जाना चाहिए, जो कि नहीं दिया गया।  

3. ‘डॉक्ट्रिन ऑफ प्लेजर’ (सरकारी इच्छा का सिद्धांत) सरकार को मनमाने तरीके से कार्य करने की अनुमति नहीं देता, और यह बर्खास्तगी राजनीतिक प्रतिशोध का मामला है।  

राज्य सरकार की दलीलें  

राज्य सरकार की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता आर. एस. मरहास ने तर्क दिया कि:  

1. नियुक्तियां पूरी तरह से सरकार की इच्छा पर आधारित थीं और ‘डॉक्ट्रिन ऑफ प्लेजर’ के तहत बिना कारण या नोटिस के हटाया जा सकता है।  

2. 15 दिसंबर 2023 का आदेश केवल एक प्रशासनिक निर्णय था, जिसमें याचिकाकर्ताओं पर कोई व्यक्तिगत आक्षेप (stigma) नहीं लगाया गया था।  

3. चूंकि याचिकाकर्ता न तो चुने गए थे और न ही किसी चयन प्रक्रिया के माध्यम से नियुक्त हुए थे, इसलिए उन्हें अपने पद पर बने रहने का कोई संवैधानिक अधिकार नहीं है।  

4. सुप्रीम कोर्ट के फैसले (ओम नारायण अग्रवाल बनाम नगर पालिका और बी.पी. सिंगल बनाम भारत सरकार) यह स्थापित करते हैं कि नामित पदधारी को सरकार की इच्छा से हटाया जा सकता है।  

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हाईकोर्ट के अवलोकन और निर्णय  

जस्टिस बिभु दत्ता गुरु ने राज्य सरकार के पक्ष में फैसला सुनाते हुए निम्नलिखित महत्वपूर्ण टिप्पणियां कीं:  

1. डॉक्ट्रिन ऑफ प्लेजर लागू होता है – याचिकाकर्ताओं की नियुक्ति सरकार की इच्छा पर आधारित थी और नई सरकार की नीति से मेल नहीं खाने के कारण उन्हें हटाना उचित था। कोर्ट ने कहा:  

“याचिकाकर्ताओं की नियुक्ति पिछली सरकार की इच्छा पर हुई थी, और उनकी विचारधारा वर्तमान सरकार की नीतियों के अनुरूप नहीं है, इसलिए उनकी बर्खास्तगी को उनके कार्य या चरित्र पर कलंक (stigma) नहीं माना जा सकता।”

2. सुनवाई की आवश्यकता नहीं थी – धारा 4(3) में दी गई सुनवाई का अवसर केवल तब लागू होता है जब किसी को दुराचार (misconduct) के आधार पर हटाया जाता है, लेकिन यह एक प्रशासनिक निर्णय था।  

3. नियुक्तियां राजनीतिक थीं – कोर्ट ने स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ताओं की नियुक्ति किसी चयन प्रक्रिया से नहीं, बल्कि राजनीतिक आधार पर नामांकन (nomination) द्वारा हुई थी, इसलिए उन्हें हटाया जाना न्यायसंगत है।  

4. सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का पालन किया गया – कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि:  

   – ओम नारायण अग्रवाल बनाम नगर पालिका (1993)  

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   – एम. रामनाथ पिल्लई बनाम केरल सरकार (1973)  

   – बी.पी. सिंगल बनाम भारत सरकार (2010)  

   इन मामलों में नामित पदधारकों की बर्खास्तगी को न्यायसंगत ठहराया गया था।  

5. राजनीतिक नियुक्तियां वापस ली जा सकती हैं – कोर्ट ने कहा:  

“नामित सदस्य को पद पर बने रहने का कोई संवैधानिक अधिकार नहीं है। यदि नियुक्ति नामांकन द्वारा हुई है, तो सरकार को अधिकार है कि वह ऐसी नियुक्ति को अपनी इच्छा पर समाप्त कर सके।”

अंतिम निर्णय  

हाईकोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया और याचिकाकर्ताओं की बर्खास्तगी को वैध ठहराया। कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा:  

“सरकार की इच्छा के अधीन पदधारी को किसी भी समय, बिना नोटिस, बिना किसी कारण, और बिना किसी कारण की आवश्यकता के हटाया जा सकता है।”  

मामले का विवरण:  

मामला: भानु प्रताप सिंह एवं अन्य बनाम छत्तीसगढ़ राज्य सरकार एवं अन्य  

मामला संख्या: WPC No. 206/2024  

पीठ: जस्टिस बिभु दत्ता गुरु  

याचिकाकर्ताओं के वकील: के. रोहन  

राज्य सरकार के वकील: आर. एस. मरहास, अतिरिक्त महाधिवक्ता

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