वेतनमान और संवर्ग का निर्धारण नीतिगत विषय: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने स्टेनोग्राफर्स की मिनिस्टीरियल कैडर में जाने की याचिका खारिज की

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने जिला न्यायपालिका में कार्यरत वरिष्ठ निजी सहायकों (स्टेनोग्राफर ग्रेड-I) द्वारा दायर एक रिट याचिका को खारिज कर दिया है। याचिकाकर्ताओं ने राज्य सरकार को सेवा नियमों में संशोधन करने का निर्देश देने की मांग की थी, ताकि उन्हें मिनिस्टीरियल/सुपरवाइजरी कैडर (लिपिकीय/पर्यवेक्षी संवर्ग) में जाने (switch-over) का विकल्प मिल सके।

चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस बिभु दत्त गुरु की डिवीजन बेंच ने छत्तीसगढ़ जिला न्यायपालिका स्थापना (भर्ती और सेवा की शर्तें) कर्मचारी नियम, 2023 की वैधता को बरकरार रखते हुए स्पष्ट किया कि वेतनमान और संवर्ग (cadre) का निर्धारण पूरी तरह से नीति निर्माण (policy-making) के अधिकार क्षेत्र में आता है।

मामले का विवरण:

  • केस टाइटल: ओम प्रकाश राम और अन्य बनाम छत्तीसगढ़ राज्य और अन्य (WPS No. 3976 of 2025)
  • कोरम: चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस बिभु दत्त गुरु
  • आदेश की तिथि: 08 दिसंबर, 2025

मामले की पृष्ठभूमि

छत्तीसगढ़ के विभिन्न जिला और सत्र न्यायालयों में वरिष्ठ निजी सहायक (स्टेनोग्राफर ग्रेड-I) के रूप में कार्यरत याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट में छत्तीसगढ़ जिला न्यायपालिका स्थापना (भर्ती और सेवा की शर्तें) कर्मचारी नियम, 2023 को चुनौती दी थी।

उनका कहना था कि इन नियमों में जस्टिस शेट्टी आयोग की सिफारिशों, विशेष रूप से स्टेनोग्राफर्स को एक निश्चित सेवा अवधि पूरी करने के बाद मिनिस्टीरियल/सुपरवाइजरी कैडर में जाने का विकल्प देने वाली सिफारिश को शामिल नहीं किया गया है। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि आयोग ने सिफारिश की थी कि स्टेनोग्राफर्स को एक ही पद पर सीमित नहीं रखा जाना चाहिए और उनके अनुभव का उपयोग प्रशासन की अन्य शाखाओं में किया जाना चाहिए।

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याचिकाकर्ताओं ने 2023 नियमों की अनुसूची II में सीरियल नंबर 1 कॉलम नंबर 3 की प्रविष्टि को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की थी। उन्होंने प्रशासनिक अधिकारी (कोर्ट अधीक्षक) के कैडर में शामिल करने या ठहराव (stagnation) को दूर करने के लिए नए पद सृजित करने की मांग भी रखी थी।

पक्षकारों की दलीलें

याचिकाकर्ताओं का तर्क: याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता श्री समर्थ सिंह मरहास ने तर्क दिया कि ‘स्विच-ओवर’ का विकल्प न देना संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लंघन है। उन्होंने मुख्य रूप से निम्नलिखित बिंदु रखे:

  1. सुप्रीम कोर्ट के ऑल इंडिया जजेज एसोसिएशन बनाम भारत संघ के निर्देशानुसार जस्टिस शेट्टी आयोग की सिफारिशें सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों पर बाध्यकारी थीं।
  2. मध्य प्रदेश और दिल्ली हाईकोर्ट ने इन सिफारिशों को लागू करते हुए स्टेनोग्राफर्स को मिनिस्टीरियल कैडर में जाने की अनुमति दी है।
  3. छत्तीसगढ़ राज्य ने 20 साल की देरी के बाद 2023 के नियम बनाए, लेकिन मनमाने ढंग से इस लाभ को बाहर रखा, जिससे स्टेनोग्राफर कैडर अलग-थलग पड़ गया है और वेतन विसंगति का सामना कर रहा है।

राज्य का बचाव: राज्य की ओर से डिप्टी एडवोकेट जनरल श्री प्रवीण दास ने याचिका का विरोध करते हुए तर्क दिया:

  1. 2023 के नियम संविधान के अनुच्छेद 309 और 235 के तहत हाईकोर्ट के परामर्श के बाद बनाए गए हैं और इन्हें संवैधानिक माना जाना चाहिए।
  2. सुप्रीम कोर्ट ने शेट्टी आयोग की सिफारिशों को “व्यावहारिकता और प्रशासनिक उपयुक्तता” (feasibility and administrative suitability) के अधीन स्वीकार किया था। अंतर-संवर्ग गतिशीलता (inter-cadre mobility) की सिफारिश केवल निर्देशकारी (directory) थी, अनिवार्य नहीं।
  3. स्टेनोग्राफर कैडर एक विशेष तकनीकी कैडर है जिसके लिए शॉर्टहैंड और प्रतिलेखन (transcription) जैसी दक्षताओं की आवश्यकता होती है, जो मिनिस्टीरियल कैडर के कार्यों से भिन्न है।
  4. 2023 के नियमों में पहले से ही पदोन्नति का एक संरचित मार्ग (ग्रेड-III से ग्रेड-II और फिर ग्रेड-I) मौजूद है, जो करियर में प्रगति सुनिश्चित करता है।
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कोर्ट का विश्लेषण और निष्कर्ष

हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ताओं के इस दावे को खारिज कर दिया कि अंतर-संवर्ग गतिशीलता पर शेट्टी आयोग की सिफारिशें अनिवार्य थीं। बेंच ने ऑल इंडिया जजेज एसोसिएशन के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि उसमें “कहीं भी यह नहीं कहा गया है कि हर सिफारिश—विशेष रूप से कैडर संरचना और अंतर-संवर्ग गतिशीलता से संबंधित—को सभी राज्यों द्वारा शब्दशः लागू किया जाना चाहिए।”

नीतिगत विषय और न्यायिक हस्तक्षेप: कोर्ट ने जोर देकर कहा कि कैडर और वेतनमान की संरचना करना एक प्रशासनिक विशेषाधिकार है। बेंच ने टिप्पणी की:

“वेतनमान और कैडर पदानुक्रम नीति-निर्माण के विशेष अधिकार क्षेत्र में आते हैं, और जब तक यह मनमाना या भेदभावपूर्ण न हो—जो कि यहाँ नहीं है—न्यायालय आमतौर पर इसमें हस्तक्षेप नहीं करते हैं।”

कार्यों में भिन्नता: कोर्ट ने माना कि स्टेनोग्राफर्स और मिनिस्टीरियल स्टाफ के बीच कार्यात्मक अंतर संवैधानिक रूप से जायज है।

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“स्टेनोग्राफर कैडर एक विशेष कैडर है जिसके लिए शॉर्टहैंड दक्षता, प्रतिलेखन की सटीकता और कोर्ट को निरंतर सहायता की आवश्यकता होती है। मिनिस्टीरियल और सुपरवाइजरी कैडर में वित्तीय, प्रक्रियात्मक और स्थापना संबंधी जिम्मेदारियां शामिल हैं… कोर्ट इस बात से संतुष्ट है कि यहाँ एक स्पष्ट अंतर (intelligible differentia) मौजूद है।”

अन्य राज्यों से तुलना: मध्य प्रदेश जैसे अन्य राज्यों द्वारा स्विच-ओवर लागू करने के तर्क पर कोर्ट ने कहा:

“महज इस तथ्य से कि छत्तीसगढ़ ने एक अलग मॉडल अपनाया है, इसके नियम असंवैधानिक नहीं हो जाते। देश भर में शेट्टी आयोग की सिफारिशों का कार्यान्वयन कभी भी एक समान नहीं रहा है और यह स्थानीय प्रशासनिक व्यवहार्यता पर निर्भर करता है।”

निर्णय

हाईकोर्ट ने यह मानते हुए याचिका खारिज कर दी कि याचिकाकर्ता 2023 के नियमों में किसी भी तरह की मनमानी या शत्रुतापूर्ण भेदभाव (hostile discrimination) को साबित करने में विफल रहे हैं।

कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला:

“अंततः, याचिकाकर्ता जो चाहते हैं वह राज्य को अपने कैडर को एक विशेष तरीके से पुनर्गठित करने के लिए बाध्य करने वाला निर्देश है। ऐसा कार्य पूरी तरह से नीति के दायरे में आता है, और इस क्षेत्र में न्यायिक निर्देश… प्रशासनिक विशेषाधिकार में अनुचित हस्तक्षेप होगा।”

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