छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने ₹411 करोड़ के “हमर लैब” घोटाले में आरोपी मोक्शित कॉरपोरेशन के निदेशक शशांक चोपड़ा की नियमित ज़मानत याचिका खारिज कर दी है। मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा की एकलपीठ ने कहा:
“इस स्तर पर आवेदक को ज़मानत देना न केवल भ्रष्ट प्रथाओं को बढ़ावा देगा बल्कि समाज में एक अत्यंत हानिकारक संदेश देगा, जिससे न्याय वितरण प्रणाली में सार्वजनिक विश्वास कमजोर होगा।”
मामला क्या है
आवेदक के विरुद्ध अपराध क्रमांक 05/2025, आर्थिक अपराध अन्वेषण शाखा / भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो, रायपुर थाने में दर्ज किया गया है। आरोप भारतीय दंड संहिता की धारा 409 व 120बी तथा भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 13(1)(ए), 13(2) एवं 7(सी) के अंतर्गत हैं।

एफआईआर में आरोप है कि स्वास्थ्य सेवाएं निदेशालय और छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेस कॉरपोरेशन लिमिटेड (CGMSCL) के अधिकारियों ने मोक्शित कॉरपोरेशन सहित अन्य निजी कंपनियों से मिलीभगत कर मार्च–अप्रैल 2023 में “हमर लैब” योजना के तहत मशीनें व रिएजेंट्स बिना मांग मूल्यांकन, बजट या प्रशासनिक स्वीकृति के अत्यधिक दरों पर खरीदे। इससे राज्य को ₹411 करोड़ का नुकसान हुआ।
आवेदक की दलीलें
वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ मृदुल और अजय मिश्रा (सहायक: प्रगल्भ शर्मा, रुचि नगर, प्रशांत बाजपेई) ने कहा:
- आवेदक केवल निविदा में भाग लेने वाला एक बोलीदाता था; सप्लाई आदेश CGMSCL ने दिए थे।
- EDTA ट्यूब्स की दर ₹2352 नहीं बल्कि ₹23.52 प्रति पीस थी; आरोप में टाइपो है।
- मशीनों की आपूर्ति नियमानुसार की गई, और मूल्य निर्धारण मनमाना नहीं था।
- CGMSCL द्वारा भुगतान न किए जाने के बावजूद सप्लाई पूरी की गई।
- सभी प्रक्रिया ऑनलाइन थी; साक्ष्य से छेड़छाड़ की संभावना नहीं है।
- एक सह-आरोपी (राजेश गुप्ता) की गिरफ्तारी पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगाई है, इसलिए समानता के आधार पर ज़मानत दी जानी चाहिए।
उन्होंने यह भी बताया कि मोक्शित कॉरपोरेशन की खुद की निर्माण इकाई नहीं है, लेकिन CGMSCL के अधिकारियों से मिलीभगत कर निविदाएं अपने पक्ष में करवाकर सप्लाई दी गई।
राज्य की आपत्ति
राज्य की ओर से उपमहाधिवक्ता डॉ. सौरभ कुमार पांडे ने ज़मानत का विरोध करते हुए तर्क दिया:
- आवेदक इस षड्यंत्र का सूत्रधार है और निविदा शर्तें अपने अनुसार बनवाने के लिए CGMSCL अधिकारियों को प्रभावित किया।
- ₹150 करोड़ की फर्जी इनवॉइसें निकट संबंधियों के नाम पर बनाई गई फर्जी कंपनियों के माध्यम से तैयार की गईं।
- रिएजेंट्स की जरूरत का आकलन बिना किसी डिजिटल प्रणाली या स्थान-वार डेटा के किया गया, जिससे खरीद अधिक मात्रा में हुई।
- जिन मशीनों की आपूर्ति की गई, वे ‘क्लोज सिस्टम’ हैं, जिनमें केवल उसी कंपनी के रिएजेंट्स चल सकते हैं, जिससे भविष्य में आपूर्ति पर एकाधिकार स्थापित होता है।
- पाँच सह-आरोपी सरकारी अधिकारी गिरफ्तार हो चुके हैं, और शेष की जांच जारी है। ज़मानत पर छूटने पर साक्ष्य से छेड़छाड़ या गवाहों को प्रभावित करने की आशंका है।
न्यायालय का विश्लेषण
मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा ने कहा:
“ऐसे आर्थिक अपराध पारंपरिक अपराधों से अधिक गंभीर माने जाते हैं, जो देश की अर्थव्यवस्था और समाज की भलाई को प्रभावित करते हैं।”
न्यायालय ने State of Gujarat v. Mohan Lal Jitamalji Porwal में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का हवाला दिया, जिसमें कहा गया:
“एक हत्या आवेग में हो सकती है, लेकिन आर्थिक अपराध शांति और सुनियोजित तरीके से स्वार्थवश समाज की कीमत पर किए जाते हैं।”
न्यायालय ने Nimmagadda Prasad v. CBI निर्णय का उल्लेख करते हुए कहा कि:
“आर्थिक अपराधों में वृद्धि देश की विकास संरचना पर गहरा प्रभाव डालती है और जनता का व्यवस्था पर से विश्वास हटता है।”
निर्णय
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि:
“आवेदक द्वारा किए गए कार्य न केवल गंभीर आर्थिक अपराध हैं, बल्कि समाज की भलाई के विरुद्ध भी हैं। ऐसे में ज़मानत देना भ्रष्टाचार को बल देगा और समाज में नकारात्मक संदेश भेजेगा।”
राजेश गुप्ता की गिरफ्तारी पर स्थगन के बावजूद, चोपड़ा की भूमिका प्रत्यक्ष लाभार्थी के रूप में अलग पाई गई। अतः उसे समानता का लाभ नहीं दिया जा सकता।
न्यायालय ने ज़मानत याचिका खारिज कर दी।
मामला: शशांक चोपड़ा बनाम राज्य छत्तीसगढ़
मामला संख्या: MCRC No. 3159 of 2025