मुख्य अपराध से आरोपी को बरी करना लेकिन भारी सबूतों के बावजूद केवल साजिश के लिए दोषी ठहराना अनुचित: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में स्पष्ट किया है कि जब आरोपियों के खिलाफ मुख्य अपराध में शामिल होने के पुख्ता सबूत हों, तो उन्हें उस अपराध से बरी कर केवल आपराधिक साजिश (Criminal Conspiracy) के लिए दोषी ठहराना न्यायसंगत नहीं है। कोर्ट ने कहा कि सबूतों के गलत आकलन के आधार पर दिया गया ऐसा फैसला कानूनन सही नहीं है।

चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस रविंद्र कुमार अग्रवाल की डिवीजन बेंच ने इस मामले में मृतक के पिता और भाई को आईपीसी की धारा 120-B (आपराधिक साजिश) के तहत मिली सजा को रद्द कर दिया। हालांकि, कोर्ट ने इस बात पर अफसोस जताया कि राज्य सरकार द्वारा अपील न किए जाने के कारण, पर्याप्त सबूत होने के बावजूद उन्हें मुख्य अपराध (हत्या) में सजा नहीं दी जा सकती। वहीं, कोर्ट ने भाड़े के हत्यारे (Contract Killer) संतकुमार बंधे की उम्रकैद की सजा को बरकरार रखा है।

क्या है पूरा मामला?

यह मामला धर्मेंद्र देशलहरे की हत्या से जुड़ा है, जिसका शव 21 जुलाई 2022 को बेमेतरा जिले के बोरािया बांध के पास करो कन्या मंदिर के पीछे मिला था। मृतक के सिर और गर्दन पर धारदार हथियार और पत्थर से वार कर उसकी हत्या की गई थी।

अभियोजन पक्ष के अनुसार, मृतक धर्मेंद्र शराब का आदी था और शराब के लिए घर की जमीन-जायदाद बेच रहा था, जिससे उसका परिवार परेशान था। इसी वजह से उसके पिता प्रेमचंद देशलहरे (65) और भाई रेखचंद उर्फ जितेंद्र देशलहरे (27) ने उसकी हत्या की साजिश रची। आरोप है कि उन्होंने संतकुमार बंधे (21) और एक फरार आरोपी पारस उर्फ टेकू रात्रे को 50,000 रुपये की सुपारी देकर धर्मेंद्र की हत्या करवाई।

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बेमेतरा के प्रथम अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने 6 अप्रैल 2023 को दिए अपने फैसले में संतकुमार बंधे को हत्या (धारा 302/34) का दोषी मानते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई। लेकिन, हैरान करने वाले फैसले में ट्रायल कोर्ट ने साजिशकर्ता पिता और भाई को हत्या के मुख्य आरोप से बरी कर दिया, जबकि उन्हें केवल आपराधिक साजिश (धारा 120-B) का दोषी मानते हुए 10 साल की सजा सुनाई।

कोर्ट में क्या दलीलें दी गईं?

अपीलकर्ता पिता और भाई की ओर से अधिवक्ता पुष्पेंद्र कुमार पटेल ने तर्क दिया कि जब निचली अदालत ने उन्हें हत्या के मूल अपराध (Substantive Offence) से बरी कर दिया है, तो केवल साजिश के लिए उनकी सजा बरकरार नहीं रह सकती। उन्होंने कहा, “साजिश को संदेह से परे साबित नहीं किया गया है। जब मुख्य अपराध में बरी कर दिया गया है, तो धारा 120-B के तहत दोषसिद्धि को भी रद्द किया जाना चाहिए।”

वहीं, आजीवन कारावास की सजा पाए संतकुमार बंधे के वकील पलाश तिवारी ने ‘लास्ट सीन थ्योरी’ (Last Seen Theory) और सीसीटीवी फुटेज को नाकाफी बताते हुए सजा को चुनौती दी।

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राज्य की ओर से डिप्टी एडवोकेट जनरल शशांक ठाकुर ने तर्क दिया कि भले ही राज्य ने हत्या के आरोप में बरी किए जाने के खिलाफ अपील नहीं की है, लेकिन साजिश के आरोप में मिली सजा सबूतों पर आधारित है।

हाईकोर्ट का विश्लेषण और फैसला

हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले में विरोधाभास पाया। बेंच ने नोट किया कि ट्रायल कोर्ट ने पिता और भाई की संलिप्तता की परिस्थितियों को स्वीकार तो किया, लेकिन बिना किसी ठोस कारण के उन्हें हत्या के आरोप से बरी कर दिया।

सुप्रीम कोर्ट के सचिन बनाम महाराष्ट्र राज्य (2025) के फैसले का हवाला देते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि अगर राज्य सरकार ने बरी किए जाने के खिलाफ अपील नहीं की है, तो हाईकोर्ट केवल आरोपी द्वारा दायर अपील में उसकी सजा को बढ़ा नहीं सकता या उसे बरी किए गए आरोप में दोषी नहीं ठहरा सकता।

कोर्ट ने अपनी बेबसी जाहिर करते हुए कहा:

“भारी मन से (With a heavy heart), हम अपीलकर्ता रेखचंद और प्रेमचंद देशलहरे को बरी करने के लिए बाध्य हैं।”

कोर्ट ने माना कि पिता और भाई के खिलाफ धारा 302/34 (हत्या) के तहत दोषी ठहराने के लिए “पर्याप्त सबूत” थे, लेकिन चूंकि राज्य ने उनके बरी होने को चुनौती नहीं दी, इसलिए कोर्ट के पास उन्हें रिहा करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था।

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दूसरी ओर, हत्यारे संतकुमार के मामले में कोर्ट ने सीसीटीवी फुटेज और खून से सने कपड़ों की बरामदगी को पुख्ता सबूत माना। सीसीटीवी में उसे घटना से ठीक पहले मृतक के साथ देखा गया था।

निर्णय

हाईकोर्ट ने क्रिमिनल अपील नंबर 1647/2023 को स्वीकार करते हुए रेखचंद और प्रेमचंद देशलहरे को धारा 120-B के आरोप से मुक्त कर दिया और उन्हें तत्काल रिहा करने का आदेश दिया। वहीं, संतकुमार बंधे की अपील (क्रमांक 1428/2023) खारिज कर दी गई और उसकी उम्रकैद बरकरार रखी गई।

निचली अदालतों के लिए एक महत्वपूर्ण टिप्पणी (Headnote) में हाईकोर्ट ने कहा:

“जब मुख्य अपराध में आरोपी की भागीदारी के संबंध में बहुत अधिक सबूत हों, तो उसे मुख्य अपराध से बरी करना और सबूतों के गलत मूल्यांकन पर केवल साजिश के लिए दोषी ठहराना उचित नहीं ठहराया जा सकता।”

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