8 अप्रैल, 2025 को, केंद्र सरकार ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं के संबंध में सुप्रीम कोर्ट में कैविएट दाखिल करके एक सक्रिय कदम उठाया। इस कानूनी कदम का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि इन चुनौतियों पर अदालत द्वारा कोई निर्णय लेने से पहले सरकार की बात सुनी जाए।
कैविएट, उच्च न्यायालयों और सुप्रीम कोर्ट में एक नियमित कानूनी प्रक्रिया है, जो इसे दायर करने वाले पक्ष की भागीदारी के बिना किसी भी निर्णय को जारी करने से रोकती है। केंद्र द्वारा की गई यह कार्रवाई नए अधिनियमित कानून की न्यायिक समीक्षा प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भाग लेने के उसके इरादे को रेखांकित करती है।
वक्फ (संशोधन) अधिनियम के खिलाफ याचिकाएं राजनेताओं, अखिल भारतीय मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और जमीयत उलमा-ए-हिंद सहित विभिन्न तिमाहियों से आई हैं। इन समूहों ने संशोधनों पर चिंता जताई है, संवैधानिक सिद्धांतों के साथ उनके संरेखण पर सवाल उठाया है।

कानूनी विशेषज्ञों का अनुमान है कि ये याचिकाएँ 15 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट की बेंच के समक्ष प्रस्तुत की जाएँगी, हालाँकि इस तिथि की अभी तक न्यायालय की वेबसाइट पर आधिकारिक पुष्टि नहीं की गई है। यह अपेक्षित सुनवाई मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना द्वारा वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल को याचिकाओं की संभावित समय-सारिणी के बारे में दिए गए आश्वासन के बाद हो रही है, जो जमीयत उलमा-ए-हिंद का प्रतिनिधित्व करते हैं।
इस न्यायिक जाँच की पृष्ठभूमि संसद द्वारा वक्फ (संशोधन) विधेयक का पारित होना है, जिसे दोनों सदनों में जोरदार बहस के बाद 5 अप्रैल, 2025 को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की स्वीकृति मिली थी। संशोधन ने महत्वपूर्ण कानूनी और सार्वजनिक चर्चा को जन्म दिया है, जो देश भर में वक्फ संपत्तियों के शासन में प्रस्तावित परिवर्तनों की विवादास्पद प्रकृति को दर्शाता है।