करीबी रिश्तेदारों को दिए गए मौखिक मृत्यु-पूर्व बयानों के आधार पर दोषसिद्धि में सावधानी की आवश्यकता: सुप्रीम कोर्ट

एक महत्वपूर्ण निर्णय में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने करीबी रिश्तेदारों को दिए गए मौखिक मृत्यु-पूर्व बयानों के आधार पर दोषसिद्धि में सावधानी की आवश्यकता पर बल दिया। यह निर्णय न्यायमूर्ति सी.टी. रविकुमार और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ द्वारा मध्य प्रदेश राज्य बनाम रमजान खान एवं अन्य (आपराधिक अपील संख्या 2129/2014) के मामले में सुनाया गया। अपील में 2013 में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट द्वारा हत्या के आरोपी तीन व्यक्तियों को बरी किए जाने के फैसले को पलटने की मांग की गई थी।

मामले की पृष्ठभूमि

यह मामला नसीम खान की हत्या से संबंधित है, जो 1 अक्टूबर, 1996 को मध्य प्रदेश के कराईखेड़ा गांव के कुएं के पास हुई थी। अभियोजन पक्ष के अनुसार, अभियुक्तों- रमजान खान, मुसाफ खान और हबीब खान ने नसीम खान पर दरांती, कुल्हाड़ी और डंडे से हमला किया, जिससे उसकी मौत हो गई। ट्रायल कोर्ट ने 1998 में आरोपी को दोषी ठहराया था, जिसमें मृतक की मां सितारा बी (पीडब्लू-8) के सामने कथित तौर पर दिए गए मृत्यु पूर्व बयान के साथ-साथ नसीम खान के भाइयों हसीन खान (पीडब्लू-5) और फरीद खान (पीडब्लू-9) के प्रत्यक्षदर्शी बयानों सहित मौखिक गवाही पर बहुत अधिक भरोसा किया गया था।

ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई और 35,000 रुपये का जुर्माना लगाया। हालांकि, मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने गवाहों की गवाही, विशेष रूप से मृत्यु पूर्व बयान में असंगतता और अविश्वसनीयता का हवाला देते हुए 2013 में इस सजा को पलट दिया।

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मुख्य कानूनी मुद्दे

सुप्रीम कोर्ट में अपील मुख्य रूप से दो कानूनी मुद्दों के इर्द-गिर्द घूमती है:

1. मौखिक मृत्यु पूर्व बयानों की विश्वसनीयता: अभियोजन पक्ष का मामला मृतक द्वारा अपनी मां सितारा बी को उसकी मृत्यु से कुछ क्षण पहले दिए गए मौखिक बयान पर निर्भर था। सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि मृत्यु से पहले दिए गए मौखिक बयान, खास तौर पर करीबी रिश्तेदारों को दिए गए बयान, भावनात्मक प्रभाव की संभावना और पुष्टि की कमी के कारण सावधानीपूर्वक जांच की आवश्यकता रखते हैं।

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2. प्रत्यक्षदर्शी गवाहों की गवाही का पुनर्मूल्यांकन: न्यायालय ने यह भी मूल्यांकन किया कि मृतक के नाबालिग भाइयों, पीडब्लू-5 और पीडब्लू-9 की गवाही सुसंगत और विश्वसनीय थी या नहीं। बचाव पक्ष ने तर्क दिया कि उनके बयानों में चूक और विरोधाभास थे, जिससे उनकी विश्वसनीयता पर संदेह होता है।

सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणियां

न्यायमूर्ति सी.टी. रविकुमार ने निर्णय लिखते हुए कहा कि मृत्यु से पहले दिया गया बयान दोषसिद्धि का एकमात्र आधार बन सकता है, लेकिन इससे पूर्ण विश्वास पैदा होना चाहिए। न्यायालय ने कहा, “जब घोषणा मौखिक होती है और करीबी रिश्तेदार को दी जाती है, तो न्याय की विफलता से बचने के लिए और भी अधिक सावधानी की आवश्यकता होती है।” पीठ ने आगे कहा कि ट्रायल कोर्ट ने मृत्यु से पहले दिए गए बयान का मूल्यांकन करने में पर्याप्त सावधानी नहीं बरती, जिसकी पुष्टि अन्य विश्वसनीय साक्ष्यों से नहीं हुई थी।

न्यायालय ने पिछले निर्णयों का हवाला देते हुए इस बात पर जोर दिया कि मौखिक मृत्यु-पूर्व कथन साक्ष्य के रूप में स्वाभाविक रूप से कमज़ोर होता है और दोषसिद्धि को बनाए रखने के लिए अतिरिक्त स्वतंत्र साक्ष्य द्वारा इसकी पुष्टि की जानी चाहिए। इसने आगे कहा कि “मृत्यु-पूर्व कथन साक्ष्य का एक ठोस टुकड़ा नहीं है, लेकिन इसका उपयोग शिकायतकर्ता की गवाही की पुष्टि या खंडन करने के लिए किया जा सकता है।”

निर्णय

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सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि हाईकोर्ट ने साक्ष्य का सही मूल्यांकन किया था और अभियुक्त को संदेह का लाभ दिया था। इसने फैसला सुनाया कि गवाहों की गवाही में असंगतता और विरोधाभास, साथ ही मौखिक मृत्यु-पूर्व कथन के लिए पुष्टि की कमी ने दोषसिद्धि को अस्थिर बना दिया।

राज्य की अपील को खारिज करते हुए न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि “हाईकोर्ट का बरी होना साक्ष्य के एक उचित संभावित दृष्टिकोण पर आधारित था, और हस्तक्षेप अनुचित होगा।”

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