कोलकाता हाईकोर्ट 7 मई से लगभग 32,000 प्राथमिक विद्यालय शिक्षकों की सेवा समाप्ति से जुड़े मामलों पर सुनवाई शुरू करेगा। यह जानकारी सोमवार को दी गई। मामला पश्चिम बंगाल बोर्ड ऑफ प्राइमरी एजुकेशन और अन्य पक्षकारों द्वारा एकल पीठ के 2023 के फैसले के खिलाफ दायर अपीलों से संबंधित है।
न्यायमूर्ति अभिजीत गांगोपाध्याय ने 12 मई, 2023 को एकल पीठ पर सुनवाई करते हुए उन शिक्षकों की नियुक्ति रद्द करने का आदेश दिया था, जिन्हें 2016 में 2014 की शिक्षक पात्रता परीक्षा (TET) के आधार पर चयन प्रक्रिया के तहत नियुक्त किया गया था, लेकिन जिन्होंने अनिवार्य शिक्षक प्रशिक्षण पाठ्यक्रम पूरा नहीं किया था।
प्राथमिक शिक्षा बोर्ड और अन्य अपीलकर्ताओं ने इस निर्णय को चुनौती दी, जिसके बाद मामला उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश द्वारा गठित न्यायमूर्ति तपब्रत चक्रवर्ती और न्यायमूर्ति ऋतब्रत कुमार मित्रा की खंडपीठ को सौंपा गया।
सुनवाई के दौरान, प्रभावित शिक्षकों के एक वर्ग का प्रतिनिधित्व कर रहे अधिवक्ता प्रतीक धर ने अदालत को बताया कि संबंधित शिक्षक फरवरी 2017 से कार्यरत हैं और उन्हें बिना उचित कारण सेवा से नहीं हटाया जाना चाहिए। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि एकल पीठ द्वारा जिन दस्तावेजों के आधार पर नियुक्तियां रद्द की गईं, वे सभी पक्षों को पूरी तरह से उपलब्ध नहीं कराए गए थे।
वहीं, भर्ती किए गए अन्य शिक्षकों की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कल्याण बनर्जी ने दलील दी कि नियुक्ति प्रक्रिया को चुनौती देने का मुख्य उद्देश्य सभी नए नियुक्त शिक्षकों की सेवाएं समाप्त करना था। उन्होंने जोर देकर कहा कि यदि महत्वपूर्ण दस्तावेज वास्तव में छिपाए गए थे, तो उस आधार पर एकल पीठ का निर्णय अमान्य घोषित किया जाना चाहिए।
राज्य के महाधिवक्ता किशोर दत्ता ने अदालत को आश्वस्त किया कि मामले से संबंधित कागजातों की सॉफ्ट कॉपी किसी भी पक्ष को अनुरोध करने पर उपलब्ध कराई जाएगी, जिससे आगे की प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित की जा सके।
यह मामला उस हालिया सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सामने आया है, जिसमें 3 अप्रैल को पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा सहायता प्राप्त विभिन्न स्कूलों में 25,753 शिक्षकों और कर्मचारियों की नियुक्तियां “दोषपूर्ण और दूषित चयन प्रक्रिया” के आधार पर रद्द कर दी गई थीं। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई द्वारा सत्यापित शिक्षकों को सेवाएं जारी रखने की छूट दी थी, लेकिन ग्रेड ‘सी’ और ‘डी’ कर्मचारियों को इस राहत से बाहर रखा गया था।