कलकत्ता हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि आयकर रिटर्न को किसी व्यक्ति की आय का अंतिम या निर्णायक प्रमाण नहीं माना जा सकता, और भरण-पोषण की राशि ऐसी होनी चाहिए जिससे पत्नी की वह जीवनशैली बनी रह सके, जो वह विवाह के दौरान जीती थी। जस्टिस विभास रंजन दे ने पत्नी की मासिक भरण-पोषण राशि को ₹20,000 से बढ़ाकर ₹25,000 कर दिया, साथ ही हर दो साल में 5% की स्वचालित वृद्धि का आदेश भी दिया ताकि महंगाई का असर समायोजित हो सके।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला एक विवाहित जोड़े से जुड़ा है जिनका एक पुत्र है। वैवाहिक विवाद के बाद पत्नी को दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 125 के तहत ₹30,000 प्रति माह भरण-पोषण स्वीकृत किया गया था। पति के सेवानिवृत्त होने के बाद, उन्होंने CrPC की धारा 127 के तहत परिस्थितियों में बदलाव के आधार पर भरण-पोषण घटाने की अर्जी दी। न्यायिक मजिस्ट्रेट, 5वीं अदालत, बैरकपुर ने 30.12.2023 के आदेश द्वारा भरण-पोषण ₹20,000 प्रति माह कर दिया, जो आदेश की तारीख से लागू माना गया।
पत्नी ने इस कटौती को चुनौती देते हुए पुनरीक्षण याचिका दायर की, जबकि पति ने भी पुनरीक्षण याचिका दाखिल कर इसे और घटाने व इसे अपनी सेवानिवृत्ति की तारीख से लागू कराने की मांग की। हाईकोर्ट ने दोनों याचिकाओं को एक साथ सुनकर फैसला सुनाया।

दोनों पक्षों की दलीलें
पत्नी की ओर से: पत्नी के वकील ने तर्क दिया कि “भरण-पोषण दान नहीं, बल्कि पति का कानूनी दायित्व है।” उन्होंने कहा कि पति ने शेयर मार्केट, प्रोविडेंट फंड, ग्रेच्युटी, दो दुकानों और एक फ्लैट से होने वाली आय छुपाई है। निचली अदालत ने इन पहलुओं को देखते हुए भी गलत तरीके से भरण-पोषण घटा दिया। वकील ने कहा कि भरण-पोषण से पत्नी की वह गरिमा और जीवन स्तर बना रहना चाहिए, जो विवाह के दौरान था, खासकर यह देखते हुए कि पत्नी गृहिणी हैं और उनका व्यस्क पुत्र अब भी उन पर निर्भर है।
पति की ओर से: पति के वकील ने पत्नी के आरोपों से इनकार किया और 2024-2025 के आयकर रिटर्न पर भरोसा जताया, जिसमें पति की सालाना आय ₹5,13,890 (लगभग ₹42,824 मासिक) दर्शाई गई। उनका कहना था कि मजिस्ट्रेट द्वारा ₹20,000 का भरण-पोषण उचित था। वकील ने यह भी कहा कि पत्नी को फिक्स्ड डिपॉजिट से आय है, पुत्र ट्यूशन से कमा रहा है, और पति के पास चिकित्सा खर्च, बीमा, किराया और ₹15,000 मासिक ड्राइवर का वेतन जैसे कई खर्च हैं। साथ ही, सेवानिवृत्ति लाभ की ₹70,58,000 की राशि से कर्ज चुकाया गया और बाकी बहन को बिना ब्याज का ऋण दिया गया।
हाईकोर्ट का विश्लेषण और निर्णय
जस्टिस विभास रंजन दे ने दो मुख्य मुद्दे तय किए: भरण-पोषण में कटौती का कानूनी औचित्य और संशोधन की प्रभावी तिथि। कोर्ट ने कहा, “व्यक्ति का आयकर रिटर्न उसकी आय का निर्णायक प्रमाण नहीं हो सकता क्योंकि यह मुख्यतः करदाता द्वारा दी गई जानकारी पर आधारित होता है… इसमें कम रिपोर्टिंग की संभावना रहती है।”
कोर्ट ने कहा कि आय आंकलन में केवल वर्तमान आय नहीं, बल्कि उसकी क्षमता, पिछली आय और संपत्तियों को भी देखा जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा, “भरण-पोषण अब सिर्फ न्यूनतम जीविका का साधन नहीं, बल्कि जीवनशैली की स्थिरता बनाए रखने का उपकरण बन चुका है। अलगाव के बाद का भरण-पोषण विवाह के समय की पत्नी की जीवनशैली के अनुरूप होना चाहिए।”
कोर्ट ने पति की अपनी स्वीकारोक्ति पर ध्यान दिया: “यह विडंबना है कि पति ड्राइवर को ₹15,000 मासिक वेतन देने को तैयार हैं, लेकिन पत्नी को ₹20,000 भरण-पोषण देने को तैयार नहीं, जो उसके साथ वर्षों तक रही और जिससे उसका एक पुत्र है।”
कोर्ट ने अंतिम आदेश में कहा कि वह भरण-पोषण राशि को फिर से आंकलन कर ₹25,000 प्रति माह करेगी और हर दो वर्ष में 5% स्वचालित वृद्धि होगी। प्रभावी तिथि के मामले में, कोर्ट ने CrPC की धारा 127 देखी और पाया कि कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है, इसलिए मजिस्ट्रेट के आदेश की तारीख (30.12.2023) से इसे लागू किया जाएगा।
अंतिम आदेश
- पति पत्नी को ₹25,000 प्रति माह भरण-पोषण देंगे।
- हर दो साल में 5% की स्वचालित वृद्धि लागू होगी।
- यह आदेश 30.12.2023 की तारीख से प्रभावी रहेगा।