निजी सहायता प्राप्त स्कूलों में नियुक्त शिक्षकों पर लागू नहीं होता नियम 12A: मद्रास हाईकोर्ट ने शिक्षक की नियुक्ति को मंज़ूरी न देने का आदेश रद्द किया

 मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै पीठ ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया है कि तमिलनाडु राज्य और अधीनस्थ सेवा नियमों के नियम 12A, जिसमें तमिल भाषा परीक्षा उत्तीर्ण करना अनिवार्य बताया गया है, का निजी सहायता प्राप्त विद्यालयों के शिक्षकों पर कोई प्रभाव नहीं है। न्यायमूर्ति शमीम अहमद की एकल पीठ ने जिला शिक्षा अधिकारी के 2018 के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें याचिकाकर्ता की पूर्व नियुक्ति अवधि को अनुमोदन देने से इंकार कर दिया गया था।

पृष्ठभूमि

यह याचिका कुमारी के. द्वारा दायर की गई थी, जो कन्याकुमारी जिले के कोल्लेमकोड स्थित कॉनकॉर्डिया लूथेरन हाई स्कूल में बी.टी. सहायक के पद पर 15 जून 2011 को नियुक्त की गई थीं। चूंकि याचिकाकर्ता की मातृभाषा मलयालम है, इसलिए शिक्षा अधिकारियों ने उनसे तमिल भाषा परीक्षा उत्तीर्ण करने की शर्त रखी।

कुमारी ने यह परीक्षा 25 मई 2015 को उत्तीर्ण की, जिसके बाद उनकी नियुक्ति को मंज़ूरी उसी तारीख से दी गई। लेकिन उनकी पूर्व सेवा अवधि (15.06.2011 से 24.05.2015) को मान्यता नहीं दी गई। इसके विरुद्ध उन्होंने यह रिट याचिका WP(MD) No. 27439 of 2022 दायर की।

याचिकाकर्ता का पक्ष

याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि नियम 12A केवल सरकारी सेवकों पर लागू होता है, जिन्हें TNPSC के माध्यम से नियुक्त किया जाता है। निजी सहायता प्राप्त स्कूलों के शिक्षक ‘तमिलनाडु मान्यता प्राप्त निजी विद्यालय (नियमन) अधिनियम, 1973’ और उसके अधीन नियमों के अधीन आते हैं। इस अधिनियम में तमिल भाषा परीक्षा को नियुक्ति की पूर्व शर्त नहीं माना गया है। उन्होंने मद्रास हाईकोर्ट के पूर्व निर्णयों का भी उल्लेख किया।

याचिकाकर्ता ने जिन मामलों का हवाला दिया:

  • एस. मोहम्मद बाशा बनाम कॉलेजिएट एजुकेशन निदेशक, 2002 (3) CTC 336
  • जेल्डन विलफ्रेड वायोला मामला, 2009 (2) TNLJ 101
  • फादर जीवर्गीज मैथ्यू मामला, WP(MD) No.11689 of 2017
  • एस. रेजानी बनाम तमिलनाडु राज्य, WP(MD) No.16143 of 2016

सरकारी पक्ष का तर्क

राज्य सरकार ने उत्तर में कहा कि नियम 12A के अनुसार किसी भी सेवा में सीधी नियुक्ति तभी संभव है जब व्यक्ति को तमिल भाषा का पर्याप्त ज्ञान हो। यह भी कहा गया कि तमिल भाषा को प्रोत्साहन देने के लिए 2010 में एक अधिनियम भी पारित किया गया था। इसलिए जब तक याचिकाकर्ता ने तमिल भाषा परीक्षा पास नहीं की थी, तब तक उसकी सेवा को मान्यता नहीं दी जा सकती थी।

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न्यायालय का अवलोकन

न्यायमूर्ति शमीम अहमद ने मामले की सुनवाई के बाद स्पष्ट किया:

“तमिलनाडु राज्य और अधीनस्थ सेवा नियमों के नियम 12A का निजी सहायता प्राप्त विद्यालयों के शिक्षकों पर कोई प्रभाव नहीं है।”

न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता की नियुक्ति तमिलनाडु मान्यता प्राप्त निजी विद्यालय (नियमन) अधिनियम, 1973 और तमिलनाडु अल्पसंख्यक विद्यालय (मान्यता और अनुदान भुगतान) नियम, 1977 के अधीन हुई थी, और इनमें तमिल भाषा परीक्षा को नियुक्ति की शर्त नहीं माना गया है।

एस. मोहम्मद बाशा के फैसले का उल्लेख करते हुए न्यायालय ने दोहराया:

“राज्य सरकार ऐसे कारणों से नियुक्ति की मंजूरी नहीं रोक सकती जो केवल सरकारी सेवकों पर लागू होते हैं। निजी विद्यालयों के लिए ये नियम बाध्यकारी नहीं हैं।”

न्यायालय का निर्णय

न्यायालय ने माना कि याचिकाकर्ता को 15.06.2011 से बी.टी. सहायक के रूप में नियुक्ति की मंजूरी मिलनी चाहिए थी। इसलिए 09.11.2018 को जारी जिला शिक्षा अधिकारी का आदेश अवैध और नियमों के विरुद्ध है।

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आदेश:

  • याचिकाकर्ता की नियुक्ति को 15.06.2011 से मंजूरी दी जाए।
  • सभी सेवा लाभ और बकाया वेतन दो महीने के भीतर अदा किया जाए।
  • मासिक वेतन नियमित रूप से दिया जाए।

कोई लागत आदेश नहीं दिया गया।

मामले का शीर्षक: के. कुमारी बनाम तमिलनाडु राज्य एवं अन्य
मामला संख्या: WP(MD) No. 27439 of 2022

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