मैनपुरी ज़िला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग ने डॉ. भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय, आगरा को 2010 में बी.एससी. पास करने वाली छात्रा को डिग्री जारी न करने के लिए सेवा में कमी का दोषी ठहराया है। आयोग के अध्यक्ष श्री शशि भूषण पांडे और सदस्य श्रीमती नितिका दास की पीठ ने विश्वविद्यालय को दो महीने के भीतर डिग्री जारी करने और कुल ₹46,000 मुआवज़ा व खर्च का भुगतान करने का आदेश दिया। यह निर्णय 16 जुलाई 2025 को सुनाया गया।
मामले की पृष्ठभूमि
शिकायतकर्ता अधिवक्ता श्वेता मिश्रा ने डॉ. भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय, आगरा के कुलपति के खिलाफ शिकायत दाखिल की थी। उन्होंने बताया कि उन्होंने बाबूराम यादव पी.जी. कॉलेज, करहल (जो विश्वविद्यालय से संबद्ध है) से 2010 में बी.एससी. उत्तीर्ण किया था।
1 जनवरी 2022 को उन्होंने ऑनलाइन ₹500 शुल्क जमा करके अपनी डिग्री के लिए आवेदन किया था। बावजूद इसके, विश्वविद्यालय ने डिग्री जारी नहीं की। मिश्रा ने आयोग को बताया कि उन्होंने विश्वविद्यालय से कई बार संपर्क किया, जहां उन्हें डिग्री घर भेजने का आश्वासन मिला, पर डिग्री कभी नहीं पहुंची।

निराश होकर उन्होंने 27 दिसंबर 2022 को औपचारिक शिकायत दर्ज की और जब उस पर भी कोई कार्रवाई नहीं हुई, तो 6 जून 2024 को वकील के माध्यम से विधिक नोटिस भेजा, जिसका भी कोई उत्तर नहीं आया। अंततः उन्होंने उपभोक्ता आयोग में ₹2,00,000 हर्जाने, ₹20,000 मानसिक पीड़ा, ₹5,000 संविदात्मक नुकसान, और ₹30,000 विधिक खर्च की मांग के साथ शिकायत दाखिल की।
पक्षकारों की दलीलें
शिकायतकर्ता की ओर से अधिवक्ता श्री नरेंद्र सिंह कश्यप ने दलील दी कि छात्रा द्वारा सभी औपचारिकताएं पूरी करने के बावजूद विश्वविद्यालय द्वारा डिग्री न देना घोर लापरवाही और सेवा में भारी कमी है, जिससे शिकायतकर्ता को मानसिक पीड़ा और व्यावसायिक हानि हुई। उन्होंने अंकतालिका, ऑनलाइन आवेदन, शुल्क रसीद, शिकायत पत्र और विधिक नोटिस साक्ष्य में प्रस्तुत किए।
दूसरी ओर, विश्वविद्यालय की ओर से कोई उपस्थिति या पक्ष रखा ही नहीं गया। नोटिस सेवा की पुष्टि 16 अक्टूबर 2024 को मानी गई थी और लगातार अनुपस्थित रहने पर 30 नवंबर 2024 को एकतरफ़ा कार्यवाही की गई।
आयोग का विश्लेषण
आयोग ने प्रस्तुत साक्ष्यों के आधार पर मामले का निपटारा किया। आयोग ने पाया कि शिकायतकर्ता ने 2010 में द्वितीय श्रेणी में बी.एससी. उत्तीर्ण किया था और 1 जनवरी 2022 को विधिवत आवेदन व शुल्क जमा किया था। आयोग ने कहा, “निश्चित रूप से यह माना जाएगा कि वादिनी का कथन सत्य है”।
आयोग ने यह स्पष्ट किया कि यह मामला शैक्षणिक संस्थानों द्वारा धोखाधड़ी का नहीं है, बल्कि सेवा में कमी का स्पष्ट मामला है। आयोग ने कहा, “बी.एससी. उत्तीर्ण करने के बाद और सभी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद डिग्री प्राप्त करना वादिनी का अधिकार है, जिसे विश्वविद्यालय ने नहीं दिया…”। आयोग ने यह भी कहा, “डिग्री न मिलने से वादिनी को मानसिक पीड़ा हुई और वह अपने एक महत्वपूर्ण अधिकार से वंचित रही”।
आख़िरी आदेश
आयोग ने विश्वविद्यालय के खिलाफ शिकायत स्वीकार करते हुए ये आदेश पारित किए:
- डिग्री जारी करना: विश्वविद्यालय को दो महीने के भीतर शिकायतकर्ता को बी.एससी. डिग्री प्रदान करनी होगी।
- मुआवज़ा: विश्वविद्यालय को मानसिक व शारीरिक पीड़ा के लिए ₹40,000 आयोग के खाते में दो महीने के भीतर जमा करने होंगे।
- विधिक खर्च: नोटिस और मुकदमेबाज़ी खर्च के लिए ₹6,000 अतिरिक्त राशि जमा करनी होगी।
- संविदात्मक नुकसान: आयोग ने ₹5,000 अलग से संविदात्मक नुकसान के दावे को यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि यह सेवा में कमी के मुआवज़े में शामिल माना जाएगा।
साथ ही, शिकायतकर्ता को आदेश की प्रमाणित प्रति एक महीने के भीतर विश्वविद्यालय को सौंपने के निर्देश दिए गए हैं ताकि आदेश का पालन सुनिश्चित हो सके।