एनएसईएल धोखाधड़ी मामले में निदेशकों और फर्मों को आरोपी बनाए जाने के आदेश को बॉम्बे हाईकोर्ट ने बरकरार रखा

बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में नेशनल स्पॉट एक्सचेंज लिमिटेड (NSEL) भुगतान डिफॉल्ट मामले में सात और पक्षों को आरोपी बनाए जाने की पुष्टि की है, जिससे कथित वित्तीय गड़बड़ी की गंभीरता उजागर होती है। इस फैसले से निचली अदालत के उस आदेश को समर्थन मिला है, जिसमें विभिन्न वित्तीय संस्थानों के पांच निदेशकों और दो कॉरपोरेट संस्थाओं को आरोपी के रूप में पेश करने का निर्देश दिया गया था।

यह विवाद 2013 में सामने आया था, जब एनएसईएल को ₹5,574 करोड़ के भुगतान संकट का सामना करना पड़ा था, जिससे लगभग 13,000 निवेशकों को भारी नुकसान उठाना पड़ा। नव-नामित आरोपी व्यक्तियों और संस्थाओं पर निवेशकों को गुमराह करने, आपराधिक साजिश रचने और एनएसईएल प्लेटफॉर्म पर अवैध व्यापार गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए जाली दस्तावेज तैयार करने का आरोप है।

READ ALSO  बलात्कार मामले में पद्म सम्मानित संत को अंतरिम राहत, कलकत्ता हाईकोर्ट ने दिए इन-कैमरा सुनवाई के आदेश

2023 में, एनएसईएल ने निम्नलिखित लोगों और फर्मों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की मांग की थी — इंडिया इंफोलाइन कमोडिटीज लिमिटेड के निदेशक निर्मल जैन; आनंद राठी कमोडिटीज लिमिटेड के निदेशक प्रीति गुप्ता और रूपकिशोर भुतड़ा; जियोजित कॉमट्रेड लिमिटेड के निदेशक शाइनी जॉर्ज और मनीष गुप्ता; तथा दो कंपनियां इंडिया इंफोलाइन फाइनेंस लिमिटेड और आनंद राठी फाइनेंशियल सर्विसेज लिमिटेड

Video thumbnail

महाराष्ट्र निवेशकों के हितों की सुरक्षा अधिनियम (MPID) के तहत गठित विशेष अदालत ने इन आरोपों की गंभीरता को देखते हुए इन व्यक्तियों और संस्थाओं को मामले में आरोपी के रूप में शामिल करने की अनुमति दी थी।

इस आदेश को चुनौती देते हुए, आरोपियों ने बॉम्बे हाईकोर्ट का रुख किया और अपने खिलाफ कार्रवाई को अवैध बताते हुए कहा कि उन्हें एक सह-आरोपी की याचिका के आधार पर मामले में जोड़ा गया है, जो कि गलत है। हालांकि, न्यायमूर्ति भारती डांगरे और न्यायमूर्ति मंजूषा देशपांडे की खंडपीठ ने इन याचिकाओं को खारिज कर दिया।

READ ALSO  मुख्तार अंसारी की गैंगेस्टर कोर्ट में हुई पेशी, अपनी सुरक्षा के मद्देनजर अपनी बैरक में सीसीटीवी लगवाने के लिए जज से लगाई गुहार

कोर्ट ने कहा कि यदि कोई व्यक्ति अपराध में शामिल है और पुलिस द्वारा आरोपी नहीं बनाया गया है, तो अदालत का यह कर्तव्य है कि वह ऐसे व्यक्ति के खिलाफ भी कार्रवाई करे। न्यायमूर्ति डांगरे ने कहा, “यदि अदालत पर ऐसा कर्तव्य डाला गया है, तो सिर्फ इस वजह से कि अदालत का ध्यान किसी सह-आरोपी ने इस ओर आकर्षित किया है, अदालत इस कर्तव्य से पीछे नहीं हट सकती।”

READ ALSO  महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों के लिए यूपी में नहीं मिलेगी अग्रिम जमानत- धारा 438 सीआरपीसी में संशोधन का प्रस्ताव विधानसभा में पेश
Ad 20- WhatsApp Banner

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles