बॉम्बे हाईकोर्ट ने शुक्रवार को महाराष्ट्र सरकार को सख्त निर्देश जारी करते हुए अदालत में स्टाफ की भारी कमी को दूर करने के लिए त्वरित कार्रवाई करने को कहा। इस मुद्दे पर हाईकोर्ट द्वारा स्वतः संज्ञान (suo motu) लिए गए मामले की सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति ए.एस. गडकरी और न्यायमूर्ति कमल खाता ने सरकार को इस समस्या के समाधान के लिए तुरंत कदम उठाने की आवश्यकता पर बल दिया।
सुनवाई के दौरान, न्यायमूर्ति गडकरी ने स्टाफ की कमी से हो रहे व्यावहारिक प्रभावों को रेखांकित किया, जिसमें डिजिटल दस्तावेज़ों और याचिकाओं को संभालने में होने वाली देरी शामिल थी। उन्होंने कहा, “हममें से कुछ को स्कैन की गई याचिकाएँ भी नहीं मिलतीं… यदि 50 मामलों में सुनवाई होनी हो, तो उनमें से केवल 10 ही ठीक से स्कैन किए जाते हैं। तकनीकी स्टाफ का कहना है कि स्कैनिंग संभव नहीं है या सिस्टम ठीक से काम नहीं कर रहा है।”
अदालत ने स्पष्ट किया कि केवल रिक्त पदों को भरना ही समाधान नहीं है, बल्कि ऐसे कर्मचारियों की भर्ती जरूरी है जो तकनीकी रूप से सक्षम हों और आधुनिक न्यायिक आवश्यकताओं को पूरा कर सकें। विशेष रूप से वाणिज्यिक मुकदमों की बढ़ती संख्या और नए हाईकोर्ट भवन के निर्माण को देखते हुए स्टाफ की आवश्यकता और बढ़ेगी।
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स्टाफ की कमी का यह मुद्दा दिसंबर 2024 में एक अवमानना मामले की सुनवाई के दौरान पहली बार गंभीरता से सामने आया था, जब अदालत ने पाया कि अपर्याप्त स्टाफ के कारण न्यायिक कार्य प्रभावित हो रहा है। इसमें दस्तावेज़ों के प्रबंधन की समस्याएँ, अपर्याप्त भंडारण व्यवस्था और डिजिटल प्रणाली के प्रभावी उपयोग में बाधाएँ शामिल थीं, जिससे मामलों की तैयारी और सुनवाई में देरी हो रही थी।
हाईकोर्ट रजिस्ट्री का प्रतिनिधित्व कर रहे अधिवक्ता पी.एम. पलशीकर और अधिवक्ता आदित्य उदेशी ने अदालत को सूचित किया कि दिसंबर 2024 में राज्य सरकार को स्टाफ की आवश्यकता पर एक विस्तृत प्रस्ताव भेजा गया था। इसके अलावा, अगले 15 वर्षों की स्टाफिंग आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए एक और प्रस्ताव गुरुवार को सरकार को सौंपा गया।
इस पर, अतिरिक्त सरकारी वकील (AGP) अभय पटकी ने अदालत को आश्वस्त किया कि सरकार इन प्रस्तावों पर विचार करेगी और कोई बाधा उत्पन्न नहीं होने देगी। उन्होंने सुझाव दिया कि इस मुद्दे को जल्द से जल्द हल करने के लिए विधि और न्याय विभाग के प्रधान सचिव के साथ बैठक आयोजित की जानी चाहिए।
बॉम्बे हाईकोर्ट के इस सख्त रुख से साफ है कि अदालत की कार्यप्रणाली को सुचारू रूप से चलाने के लिए स्टाफ की कमी दूर करना अनिवार्य हो गया है और सरकार को इस दिशा में तुरंत ठोस कदम उठाने होंगे।