बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने एक कड़े शब्दों वाले आदेश में अमरावती के एक सेवानिवृत्त शिक्षक श्रीकृष्ण बी. ठकारे के खिलाफ Contempt of Courts Act, 1971 के तहत आरोप तय किए हैं। ठकारे पर आरोप है कि उन्होंने स्कूल ट्रिब्यूनल के एक पीठासीन अधिकारी पर झूठे और बेबुनियाद रिश्वत के आरोप लगाए। अदालत ने पाया कि ठकारे के बयान “केवल विरोधाभासी ही नहीं हैं, बल्कि यह दर्शाते हैं कि अवमाननाकर्ता की मंशा झूठे बयान देने और निराधार आरोप लगाने की थी,” जिससे “न्यायिक अधिकारी/अदालत की गरिमा को ठेस पहुंची है।”
मामले की पृष्ठभूमि:
यह मामला Contempt Petition Reference Case No. 1 of 2024 से संबंधित है, जो कि Contempt of Courts Act, 1971 की धारा 15(2) के तहत शुरू किया गया था। यह मामला स्कूल ट्रिब्यूनल के पीठासीन अधिकारी द्वारा की गई एक विधिवत अनुशंसा के आधार पर उठाया गया।
श्रीकृष्ण बी. ठकारे ने वर्ष 2016 में ट्रिब्यूनल के समक्ष तीन अपीलें (संख्या 10, 39 और 67) दायर की थीं। इनमें उन्होंने यह दावा किया था कि उन्हें पदावनत कर दिया गया और एक कनिष्ठ कर्मचारी को गलत तरीके से हेडमास्टर बना दिया गया। उनकी सभी अपीलें खारिज कर दी गईं।

3 सितंबर 2024 को जब उनकी पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई होनी थी, तब उन्होंने दावा किया कि पीठासीन अधिकारी ने ₹2,00,000 की रिश्वत की मांग की। इसके बाद, 11 सितंबर 2024 को उन्होंने भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (ACB) में शिकायत की कि स्कूल प्रबंधन ने अनुकूल निर्णय पाने के लिए संबंधित अधिकारी को ₹5,00,000 की रिश्वत दी थी।
कानूनी प्रश्न:
- न्यायालय की अवमानना: क्या एक न्यायिक अधिकारी पर लगाए गए झूठे और बेबुनियाद भ्रष्टाचार के आरोप आपराधिक अवमानना (Criminal Contempt) की श्रेणी में आते हैं?
- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनाम न्यायपालिका की गरिमा: क्या भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलने के अधिकार और न्यायिक संस्थाओं को कलंक और झूठे आरोपों से बचाने के बीच संतुलन संभव है?
- न्यायिक प्रक्रिया में निष्पक्षता: क्या आरोपी को अपनी बात रखने और बचाव का पूरा अवसर मिला?
हाईकोर्ट में कार्यवाही:
20 मार्च 2025 को इस मामले की सुनवाई बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ के दो न्यायाधीशों—जस्टिस नितिन डब्ल्यू. सांबरे और जस्टिस श्रीमती वृषाली वी. जोशी—ने की।
श्री ठकारे की ओर से अधिवक्ता श्री डी. ए. सोनवणे ने पैरवी की, जिन्हें Legal Aid Services Authority के माध्यम से नियुक्त किया गया था। राज्य की ओर से अतिरिक्त लोक अभियोजक श्री एन. एस. औटकड़ उपस्थित हुए।
अदालत ने पाया कि ठकारे की शिकायत में विरोधाभास हैं:
- पैरा 23 में उन्होंने आरोप लगाया कि स्कूल प्रबंधन ने निर्णय अपने पक्ष में करवाने के लिए ₹5,00,000 की रिश्वत दी।
- वहीं पैरा 24 में उन्होंने दावा किया कि उनसे खुद ₹2,00,000 की रिश्वत मांगी गई थी।
अदालत ने कहा:
“इन बयानों से यह स्पष्ट होता है कि अवमाननाकर्ता की मंशा पीठासीन अधिकारी के विरुद्ध झूठे और निराधार आरोप लगाने की थी। यह न केवल न्यायालय की अवमानना है, बल्कि अदालत और पीठासीन अधिकारी को कलंकित करने का एक प्रयास भी है, जिससे उनकी गरिमा कम होती है।”
कोर्ट का निर्णय:
हाईकोर्ट ने ठकारे के खिलाफ निम्नलिखित औपचारिक आरोप तय किया:
“आपने स्कूल ट्रिब्यूनल के पीठासीन अधिकारी के समक्ष अपमानजनक आचरण किया, और उन पर रिश्वत की मांग का निराधार आरोप लगाया, जो अदालत और पीठासीन अधिकारी को कलंकित करने का प्रयास है।”
हालांकि आरोप तय किए जाने के बाद भी श्री ठकारे ने अपना रुख नहीं बदला। उनके वकील द्वारा जब उन्हें आरोप की व्याख्या करके समझाया गया, तब भी उन्होंने कहा कि उनके आरोप सही हैं और वे उन पर कायम हैं।
फिर भी, अदालत ने उन्हें जवाब दाखिल करने के लिए दो सप्ताह का समय दिया है। इस मामले की अगली सुनवाई अब 3 अप्रैल 2025 को होगी।