बॉम्बे हाईकोर्ट ने गोवा स्थित दक्षिणपंथी संगठन सनातन संस्था द्वारा दायर मानहानि मुकदमों को गोवा से महाराष्ट्र स्थानांतरित करने का आदेश दिया है। ये मुकदमे तर्कवादी नरेंद्र दाभोलकर के बेटे हामिद दाभोलकर और कुछ पत्रकारों के खिलाफ दायर किए गए थे। अदालत ने कहा कि आरोपियों द्वारा जताई गई जान के खतरे की आशंका “युक्तिसंगत और वास्तविक” है।
सनातन संस्था ने 2017 और 2018 में गोवा के पोंडा अदालत में हामिद दाभोलकर और पत्रकारों, जिनमें निखिल वागले भी शामिल हैं, के खिलाफ मानहानि के मुकदमे दायर किए थे। संस्था का आरोप था कि इन लोगों ने उसके खिलाफ झूठे और मानहानिकारक बयान दिए जिससे उसकी साख को नुकसान हुआ। आरोपी पक्ष ने मुकदमों को गोवा से बाहर स्थानांतरित करने की मांग की, यह कहते हुए कि संस्था की गोवा में मजबूत पकड़ होने के कारण उनकी जान को खतरा है।
3 सितम्बर को पारित और 4 सितम्बर को सार्वजनिक आदेश में न्यायमूर्ति एन. जे. जमदार ने याचिका स्वीकार कर मुकदमों को स्थानांतरित करने का निर्देश दिया। अदालत ने कहा, “यदि संस्था और याचिकाकर्ताओं के बीच की वैमनस्यता को देखा जाए तो इनकी आशंकाएं युक्तिसंगत और वास्तविक प्रतीत होती हैं।”

न्यायालय ने मुकदमों को महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले की अदालत में भेजने का आदेश दिया। हालांकि, संस्था के आग्रह पर आदेश की कार्यवाही छह सप्ताह के लिए स्थगित कर दी गई।
हाईकोर्ट ने पुणे सत्र अदालत के उस निर्णय का भी हवाला दिया जिसमें 2024 में नरेंद्र दाभोलकर की हत्या के मामले में दो लोगों को दोषी ठहराया गया था। अदालत ने माना था कि सनातन संस्था और अन्य दक्षिणपंथी संगठनों ने दाभोलकर की अंधविश्वास विरोधी मुहिम का कड़ा विरोध किया था और गवाहों ने आरोपियों और संस्था के बीच संबंध स्थापित किए थे।
भले ही सीबीआई हत्या के मास्टरमाइंड की पहचान नहीं कर पाई, लेकिन सत्र अदालत के निष्कर्ष आरोपियों की आशंकाओं को मजबूत करने के लिए पर्याप्त थे।
हाईकोर्ट ने यह भी रेखांकित किया कि संस्था और समान विचारधारा की आलोचना करने वाले अन्य प्रमुख व्यक्तियों — कार्यकर्ता गोविंद पंसारे (फरवरी 2015), प्रोफेसर एम. एम. कलबुर्गी (अगस्त 2015) और पत्रकार गौरी लंकेश (सितंबर 2017) — की भी हत्या कर दी गई थी। इससे हामिद दाभोलकर और पत्रकारों की आशंका को और गंभीरता मिली।
हामिद दाभोलकर, जिन्होंने अपने पिता की हत्या के मामले में गवाह के रूप में बयान दिया था, आज भी संस्था की विचारधारा की आलोचना करते हैं। अदालत ने माना कि उनकी भूमिका और निरंतर आलोचना उन्हें अतिरिक्त जोखिम में डालती है।