बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक अहम निर्णय में कहा है कि डेवलपर्स अनुबंधीय शर्तों का हवाला देकर हाउसिंग सोसायटी और फ्लैट खरीदारों को संपत्ति का स्वामित्व देने वाली कन्वेयंस डीड (Conveyance Deed) को अनिश्चितकाल तक टाल नहीं सकते। न्यायमूर्ति अमित बोरकर ने स्पष्ट किया कि ऐसा करना महाराष्ट्र फ्लैट स्वामित्व अधिनियम (MOFA), 1963 का उल्लंघन है, जो कन्वेयंस डीड निष्पादन के लिए चार महीने की सख्त समयसीमा निर्धारित करता है।
यह फैसला लोक हाउसिंग एंड कंस्ट्रक्शन लिमिटेड की याचिका पर आया, जिसमें कंपनी ने जिला उप-पंजीयक, सहकारी समितियां द्वारा 2017 में पारित उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें लोक एवरस्ट को-ऑपरेटिव हाउसिंग सोसायटी (CHS), मुलुंड को एकतरफा डीड कन्वेयंस प्रदान किया गया था। इस डीड में इमारत, जमीन और साझा सुविधाओं का हस्तांतरण शामिल था।
डेवलपर का तर्क था कि जिस लेआउट में उक्त इमारत स्थित है, उसमें अन्य भवनों का निर्माण बाकी है, ऐसे में प्लॉट को अलग कर सोसायटी को स्वामित्व देना व्यावहारिक नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि बिक्री अनुबंध और सरकारी निर्णय के अनुसार संपत्ति का हस्तांतरण पूरे प्रोजेक्ट के पूर्ण होने के बाद ही होगा।

लेकिन न्यायमूर्ति बोरकर ने इस तर्क को खारिज करते हुए कहा कि प्रारंभिक समझौते हुए तीन दशक से अधिक बीत चुके हैं और अब तक कोई कन्वेयंस डीड निष्पादित नहीं की गई है, जो खरीदारों के अधिकारों का घोर उल्लंघन है। उन्होंने कहा कि MOFA और महाराष्ट्र फ्लैट स्वामित्व नियम, 1964 में स्पष्ट प्रावधान हैं कि संपत्ति का हस्तांतरण तय समय में होना चाहिए और निजी अनुबंध इन कानूनी नियमों को ओवरराइड नहीं कर सकते।
अदालत ने यह भी उल्लेख किया कि लोक एवरस्ट सोसायटी वर्ष 2006 में पंजीकृत हुई थी, जबकि फ्लैटों की बिक्री 1995 में शुरू हो गई थी, लेकिन डेवलपर ने 2017 तक कोई कन्वेयंस डीड नहीं की, और अंततः एकतरफा डीड कन्वेयंस का सहारा लेना पड़ा। इससे यह स्पष्ट होता है कि डेवलपर ने जानबूझकर अपने वैधानिक दायित्वों की अनदेखी की।
न्यायमूर्ति बोरकर ने दो टूक कहा कि अनुबंधीय शर्तों के आधार पर कन्वेयंस डीड में देरी को उचित नहीं ठहराया जा सकता। उन्होंने यह भी दोहराया कि MOFA की धारा 11 एक महत्वपूर्ण प्रावधान है, जो फ्लैट आवंटित होने के बाद स्वामित्व को सोसायटी को स्थानांतरित करने का कानूनी अधिकार देती है और डेवलपर का नियंत्रण समाप्त हो जाता है।
