हाईकोर्ट का आदेश: क्रॉस-एग्ज़ामिनेशन से इनकार प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन, मोबाइल यूज़र के खिलाफ लोक अदालत का आदेश रद्द

बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक महत्त्वपूर्ण फैसले में उस आदेश को रद्द कर दिया है, जिसमें स्थायी लोक अदालत (PLA) ने मोबाइल सेवा प्रदाता कंपनी मैट्रिक्स सेल्युलर के पक्ष में ₹23,981 की वसूली का निर्देश दिया था। अदालत ने कहा कि PLA द्वारा गवाह की जिरह (cross-examination) की अनुमति देने से इनकार करना, और वह भी बिना किसी कारण बताए, प्राकृतिक न्याय और निष्पक्ष सुनवाई के सिद्धांतों का उल्लंघन है।

न्यायमूर्ति एम. एस. सोनक और न्यायमूर्ति जितेन्द्र जैन की खंडपीठ ने बिंदु नारंग द्वारा दायर याचिका स्वीकार करते हुए 27 दिसंबर 2017 के आदेश को खारिज कर दिया। याचिका अनुच्छेद 226 और 227 के तहत दायर की गई थी।

विवाद की पृष्ठभूमि

14 दिसंबर 2014 को याचिकाकर्ता बिंदु नारंग ने दुबई यात्रा से पहले मुंबई एयरपोर्ट पर मैट्रिक्स सेल्युलर से ₹3,500 का एक निश्चित डाटा प्लान वाला सिम कार्ड खरीदा था। लेकिन यात्रा के बाद उन्हें ₹28,543 की बिलिंग हुई, जिसे चुकाने की अंतिम तिथि 31 जनवरी 2015 थी। न चुकाने पर यह राशि ₹29,143 तक पहुंच सकती थी।

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मैट्रिक्स सेल्युलर ने PLA के समक्ष 2015 में एक आवेदन देकर ₹23,981 की वसूली की मांग की। नारंग ने अपने जवाब में तर्क दिया कि ग्राहक अनुबंध प्रपत्र पर उनके हस्ताक्षर नहीं हैं, और न ही उसमें उनकी तस्वीर है। साथ ही उन्होंने कंपनी के गवाह की जिरह की अनुमति मांगी, जिसे PLA ने 26 सितंबर 2017 को बिना कोई कारण बताए खारिज कर दिया।

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अदालत की कानूनी विश्लेषण

हाईकोर्ट ने कहा कि PLA ने याचिकाकर्ता द्वारा मांगी गई जिरह की अनुमति न देने के निर्णय में किसी भी प्रकार का कारण नहीं दर्शाया। अदालत ने कहा:

“PLA द्वारा बिना कारण बताए क्रॉस-एग्ज़ामिनेशन की अनुमति न देना, प्राकृतिक न्याय और निष्पक्ष सुनवाई के सिद्धांतों के विरुद्ध है, जिनका पालन Section 22-D के अनुसार अनिवार्य है।”

अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि भले ही PLA पर सिविल प्रक्रिया संहिता या भारतीय साक्ष्य अधिनियम लागू न हो, लेकिन वह निष्पक्षता और समानता के सिद्धांतों से बंधी होती है।

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कोर्ट ने Adaman Timber Industries v. CCE [(2016) 15 SCC 785] और Jodhpur Vidyut Vitaran Nigam Ltd. v. Suresh Kumar & Anr. [2025 (2) RLW 1549 (Raj)] में स्थापित कानूनी सिद्धांतों का हवाला देते हुए कहा कि जब तथ्यों पर विवाद हो और गवाहों के हलफनामे पर विरोधाभासी दस्तावेज हों, तब जिरह का अधिकार देना आवश्यक हो जाता है।

दस्तावेज़ों में विरोधाभास

अदालत ने पाया कि दोनों पक्षों द्वारा प्रस्तुत ग्राहक अनुबंध प्रपत्रों में अंतर था — एक में फोटो है, दूसरे में नहीं; एक में खाता संख्या है, दूसरे में नहीं; और एक में क्रेडिट कार्ड चार्ज करने की सहमति है, जो दूसरे में नहीं है। इसके अलावा, कंपनी के गवाह श्री कल्पेश टंकारिया ने हलफनामे में दावा किया कि उन्होंने स्वयं प्लान समझाया, जबकि वे एयरपोर्ट पर कार्यरत नहीं थे।

इस संदर्भ में अदालत ने कहा:

“ऐसे विरोधाभासी तथ्यों की मौजूदगी में PLA को कंपनी के गवाह से जिरह की अनुमति देनी चाहिए थी।”

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निष्कर्ष और आदेश

अंततः हाईकोर्ट ने 27 दिसंबर 2017 और 26 सितंबर 2017 के PLA के आदेशों को रद्द कर दिया और याचिका को स्वीकृत किया।

याचिकाकर्ता ने कोर्ट में प्रस्ताव दिया कि उसने पहले अंतरिम आदेश के तहत जमा की गई राशि को ग्रामीण क्षेत्र के एक विद्यालय ट्रस्ट को दान में देने की स्वेच्छा जताई है। कोर्ट ने इस प्रस्ताव की सराहना करते हुए रजिस्ट्ररी को निर्देश दिया कि वह वह राशि — ब्याज सहित — “पद्ममणि जैन श्वेतांबर तीर्थ पेढ़ी, पाबल” को ट्रांसफर करे।

मामले का नाम: बिंदु नारंग बनाम मैट्रिक्स सेल्युलर (इंटरनेशनल) सर्विसेज प्रा. लि. व अन्य
याचिका संख्या: रिट पिटिशन 2977 / 2018

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